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कतई ज़हर भरा है डॉलफिन का ये 'चुम्मा', वो भी सायनाइड से ज्यादा ज़हरीली मछली का

सायनाइड से भी 1,200 गुना जहरीला होता है पफर फिश का ‘टेट्रोडोटॉक्सिन’ जहर. ये डॉलफिन फिर भी बेधड़क इन मछलियों का ‘बोसा’ लेती हैं.

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dolphin puffer fish toxic high
AI से बनाई गई सांकेतिक तस्वीर और फिल्म 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' पोस्टर
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राजविक्रम
26 फ़रवरी 2024 (Updated: 27 फ़रवरी 2024, 10:36 IST)
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साल था 1995, उमेश मेहरा (Umesh Mehra) की एक फिल्म आती है. जिसका नाम था ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’. फिल्म में एक दिव्य गाना था. जिसके बोल थे, ‘जहर है कि प्यार है तेरा चुम्मा’. सुनने में तो यहां तक आता है कि ये गाना गाने में आज के सिंगर्स के होंठ कांपते हैं. खैर फिल्म में तो ये गाना अक्षय कुमार (Akshay Kumar) का किरदार अपनी प्रेमिका के लिए गाता है. लेकिन समंदर में एक मछली है. जिनका ऐसा ही नायाब प्यार देखने मिलता है. होता ये है कि समंदर में एक बेहद जहरीली मछली (Poisonous fish) रहती है. जिसका नाम है पफर फिश (Puffer Fish). कोई इंसान इसके साथ छेड़-छाड़ करे तो ‘टें बोलने’ (जान जाने) का पूरा खतरा रहता है. लेकिन डॉलफिन (Dolphin) इनका ‘चुम्मा’ लेती हैं. सवाल ये कि जहरीला चुम्मा आखिर क्यों लेती हैं?

dolphin tetrodotoxin
सांकेतिक तस्वीर, सोर्स: सी आई डी, सोनी टीवी

बात हजम नहीं हो रही ना? कोई जीव दूसरे जीव पर ‘पप्पियों’ से हमला आखिर क्यों करेगा. जवाब मिलेगा, बराबर मिलेगा. लेकिन पहले नीचे लगे सबूत देखकर तसल्ली कर लें कि यहां पर डॉलफिन को बदनाम करने की कोई कोशिश नहीं की जा रही है. ये कटु सत्य है…

यहां जिन दो जीवों की बात हो रही है उनमें से एक है, डॉलफिन. दूसरी है पफर फिश. ‘जहरीले चुम्मे’ की पड़ताल करने से पहले दोनों के बारे एक-एक करके जान लेते हैं.

कैंडिडेट 1- डॉलफिन

पहले तो एक बात बता दें कि डॉलफिन टेक्निकली मछली नहीं है. ये हैं ‘केटेशियन्स’ (Cetaceans) यानी समुद्री स्तनधारी (mammals). स्तनधारी का मोटा-मोटी मतलब गर्म खून वाले जीव. गर्म खून वाले जानवर जैसे बंदर, शेर वगैरह. बात थोड़ी अजीब है लेकिन जीव वैज्ञानिक डॉलफिन, व्हेल आदि को इसी कुनबे में रखते हैं. मतलब डॉलफिन को स्तनधारी या मैमल मानते हैं. 

इसके अलावा डॉलफिन की बुद्धि भी काफी चर्चा में रहती है. कुछ लोग तो इसे इंसानों से भी ज्यादा तेज दिमाग वाली मानते हैं. इससे पहले आपको लगे कि ये सब क्यों बताया जा रहा है, बता दें कि ये सब डॉलफिन की इस हरकत से जुड़ी जानकारी है. इसके अलावा डॉलफिन के तेज दिमाग का एक उदाहरण 1990 की अजूबा पिच्चर (फिल्म) में भी देखने मिलता है. फिल्म में डॉलफिन को अमिताभ बच्चन के किरदार की मां के तौर पर दिखाया गया था. फिल्म न देखी हो तो सब इंतजाम नीचे है. 
 

कैंडिडेट 2- पफर फिश  

अब बात उस मछली की जो डॉलफिन के बोसों का शिकार होती है. बोसा यानी माथे का चुंबन. ये मछली है पफर फिश. इसको कुदरत ने दो कमाल की शक्तियां दी हैं. एक ये कि जब भी इनको कोई खतरा महसूस होता है. ये फूल कर फुलक्का (गुब्बारा) हो जाती हैं. ताकि शिकारी इनका विकराल रूप देखकर सदमे में आ जाए. और इनकी जान बच जाए. दूसरी शक्ति है इनका कतई जहरीला जहर. जिससे जुड़ा है ये पूरा ‘चुम्मा कांड’. इस पर विस्तार से बात करते हैं.

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सायनाइड से 1,200 गुना जहरीला है इसका जहर; टेट्रोडोटॉक्सिन

हॉलीवुड फिल्मों में जब अमेरिकी खूफिया पुलिस किसी रूसी जासूस को पकड़ लेती है. तो टार्चर शुरू होने से पहले जासूस एक ताबीज तोड़कर मुंह में डालता है और जान देता है. मिनटों में जान ले लेने वाला वो जहर होता है, सायनाइड. यानी जुबान पर लगते ही मौत. इंसानों के लिए सबसे खतरनाक जहरों में से एक, सायनाइड. 

नेशनल जियोग्राफिक (National Geographic) की मानें तो इस मछली का जहर सायनाइड से भी 1,200 गुना जहरीला होता है. ये जहर है टेट्रोडोटॉक्सिन. ऊपर से एक पफर फिश में इतना जहर होता है कि वो अकेले 30 इंसानों की जान ले ले. अब आता है वही पुराना सवाल…इतनी ही जहरीली है पफर फिश तो डॉलफिन इनके साथ ऐसा क्यों करती हैं?

डॉलफिन भी कहती होंगी, कड़क है! 

डॉलफिन ऐसा क्यों करती हैं, एक्सपर्ट्स के इस पर अपने-अपने विचार हैं. कुछ का मानना है कि ये डॉलफिन पफर फिश के जहरीले जहर का इस्तेमाल नशा करने के लिए करती हैं. जी हां नशा करने के लिए. दरअसल टेट्रोडोटॉक्सिन एक तरह का न्यूरोटॉक्सिन (neurotoxin) है. न्यूरोटॉक्सिन यानी दिमागी तंत्र पर असर डालने वाला जहर. ये जहर शिकार के दिमागी तंत्र को ठप्प करके उसकी जान ले लेता है. लेकिन डॉलफिन्स के साथ ऐसा नहीं होता. वो इस जहर का इस्तेमाल करती हैं ‘भंड’ होने के लिए. ये हम भरोसे के साथ नहीं कह रहे. ऐसा कुछ जानकारों का मानना है. 

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फिल्म: हेरा फेरी

इस रिश्ते के पीछे के खेल के बारे में साइंटिस्ट अभी पता नहीं लगा पाए हैं. जैसे कि जहर से डॉलफिन की जान क्यों नहीं जाती. लेकिन कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि टेट्रोडोटॉक्सिन के असर से डॉलफिन नशे जैसी एक अवस्था में पहुंच जाती हैं. दरअसल ये पफर फिश को मुंह में दबाकर बहुत थोड़ा सा जहर लेती हैं. जिससे उन्हें नशे का एहसास होता है. अब डॉलफिन ऐसा क्यों करती हैं? इस पर कोई ठोस जवाब तो डॉलफिन ही दे पाएंगी. लेकिन याद हो, शुरुआत में हमने आपको बताया था. डालफिन बहुत बुद्घिमान जानवर हैं, इंसानों की तरह. तो एक अंदाजा ये भी लगा सकते हैं कि ये भी इंसानों की तरह फुरसत के कुछ पल खोजती होंगी. 

वीडियो: साइंसकारी: नशा करने और स्मार्टफोन चलाने में क्या कॉमन है?

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