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चंद्रकांत झा : दिल्ली का हत्यारा, जो मर्डर करके लाश को देखते हुए खाना खाता था!

तिहाड़ के बाहर लाश के टुकड़े रखता था, दिल्ली पुलिस को चिट्ठी में गाली लिखकर भेजता था!

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chandrakant jha indian butcher
चंद्रकांत झा का पुलिस स्केच (साभार : नेटफ्लिक्स)
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सिद्धांत मोहन
27 जुलाई 2022 (Updated: 29 जुलाई 2022, 12:19 PM IST)
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वो मर्डर करता था. मर्डर करने के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े करता था. टुकड़ों को कपड़ों और अखबार में लपेटकर बांध देता था. कसकर. फिर दिल्ली के तिहाड़ जेल की ऑटो पकड़ता था. गेट नंबर 3 पर एक खास पुलिसकर्मी को ताड़ता था, अगर वो पुलिसवाला वहां मौजूद रहता था तो लाश के टुकड़े वहां फेंक देता था. बाकी टुकड़े कहीं और और लाश की खोपड़ी को यमुना नदी में फेंक देता था. आत्मा की शांति के लिए. और फिर दिल्ली पुलिस को चिट्ठी लिखता था. चिट्ठी में गालियां लिखता था. और पुलिस को बताता था कि लाश तिहाड़ जेल के गेट नंबर 3 पर है, मुझे पकड़ सकते हो तो पकड़ लो. चिट्ठी में अपना नाम लिखता था - CC. दिल्ली पुलिस ने जब इस हत्यारे को पकड़ा, तब तक वो 7 लोगों को मार चुका था. 7 लोगों को. लेकिन सजा मिली तीन में. दो में फांसी मिली और एक में उम्र कैद. बाद में फांसी की सजा को कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया. अब है तिहाड़ जेल का बंदी.

ये कहानी चंद्रकांत झा की है. बिहार के मधेपुरा के गांव घोषई का रहने वाला. कभी सब्जी बेचता था तो कभी रिक्शा चलाता था. कभी-कभी सामान की ढुलाई करता था. पल्लेदारी. लेकिन दिल्ली का सीरियल किलर बन गया. खूनी हत्यारा. सजा मिलने के 9 साल बाद अब फिर से चर्चा में है. क्यों? क्योंकि आई है एक वेब सीरीज. netflix पर. नाम है - Indian Predator: The Butcher of Delhi.

पहला मर्डर और आगे की कहानी

साल 1998 में किया पहला मर्डर.  दिल्ली का आदर्श नगर इलाका हमेशा की तरह शांत था. लोगबाग अपने काम में व्यस्त थे. इसी बीच एक लाश की खबर दौड़ी. लाश का सिर नहीं था. चंद्रकांत झा अपना पहला मर्डर कर चुका था. लेकिन ये बात कि ये मर्डर भी चंद्रकांत ने किया है, पुलिस को कई सालों बाद पता चली. अरेस्ट किया गया. लेकिन सबूतों के अभाव में साल 2003 में छोड़ दिया गया.

चंद्रकांत बाहर आया. अब उसे एक के बाद एक हत्या करनी थी. हत्या के लिए वो किसी भी व्यक्ति को नहीं चुनता था. वो अपने गांव के लोगों या अपने साथ काम कर रहे लोगों को ही निशाना बनाता था.जुलाई 2003 में एक और लाश मिली. अलीपुर में एक कॉलेज के पास से. इस लाश का भी सिर गायब था. ये मर्डर भी चंद्रकांत ने किया था. लाश थी बिहार के रहने वाले शेखर की. जब पकड़ा गया था, तब जाकर चंद्रकांत ने पुलिस को बताया कि उसने शेखर को क्यों मारा? उसने कहा था,

"शेखर बहुत शराब पीता था. झूठ बोलता था. इसलिए मैंने उसे मार दिया."

लेकिन साल 2003 में जब शेखर की लाश मिली थी, तब तक चंद्रकांत की संलिप्तता के बारे में किसी को कुछ नहीं पता था. जांच तफ्तीश में एक धीमापन था. पांच महीने बीते. नवंबर 2003. अब लाश मिलने की जगह बदलने वाली थी. अब सिलसिला शुरू होना था सीधे दिल्ली पुलिस को चैलेंज देने का. तिहाड़ जेल की गेट संख्या एक. प्लास्टिक के बैग में बंद एक लाश मिली. सिर गायब. बाद में पता चला कि चंद्रकांत इस हत्या के भी पीछे शामिल था. और मरने वाला था बिहार का रहने वाला उमेश.

ये हत्या क्यों की? चंद्रकांत ने जवाब दिया था,

"ये झूठ बोलता था और विश्वास के लायक नहीं था"

लेकिन ये तो उस समय की बात है, जब चंद्रकांत को पकड़ा गया. एक लंबे समय तक लाश मिल रही थी और चंद्रकांत पकड़ा नहीं जा रहा था. पुलिस परेशान थी. लेकिन कुछ समय तक शांति रही. लगभग 2 साल तक.

साल 2006. अब चंद्रकांत एक और आदमी की हत्या तो करने ही वाला था, साथ ही दिल्ली पुलिस को चिट्ठी भी लिखकर चैलेंज भी करने वाला था.

20 अक्टूबर की तारीख. तिहाड़ का गेट नंबर 3. एक लाश मिली. लाश की सूचना दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को बाकायदा कॉल करके दी गई थी. पुलिस पहुंची. लाश प्लास्टिक में पैक थी. हिस्से अलग-अलग थे. सिर गायब था. लाश के पास दिल्ली पुलिस के लिए एक चिट्ठी भी थी. चिट्ठी में दिल्ली पुलिस के लिए बहुत सारी गालियां लिखी हुई थीं. और चुनौती थी

"अभी और कत्ल करूंगा. पकड़ सको तो पकड़ लो."

कातिल ने हरिनगर थाने के थाना प्रभारी को हरिनगर के ही पीसीओ से फोन किया और कहा कि हिम्मत है तो मुझे पकड़कर दिखाओ.

शुरू में लाश मिलने की चिट्ठी ही मीडिया में आई थी, लेकिन अखबारों को कुछ समय बाद सूत्रों की मदद से धमकी भरी चिट्ठी भी हाथ लग गई. चिट्ठी के कुछ हिस्से अखबारों में छपे. कोई लाश के टुकड़े-टुकड़े करके देश की सबसे सेक्योर जेल के गेट पर रख दे रहा था और चिट्ठी-फोन से चुनौती दे रहा था. दिल्ली पुलिस की बहुत किरकिरी हुई.

पुलिस जांच में जुटी हुई थी. 25 अप्रैल 2007. एक और लाश मिली. ठीक उसी जगह. ठीक उसी तरह. चिट्ठी-फोन-सबकुछ था. धमकी और चैलेंज भी. इस बार इस मामले की जांच कर रहे ACP श्याम सुंदर यादव ने सीधे बात भी की.

पुलिस के लिए गुत्थी उलझती जा रही थी. कुछ समय बाद पुलिस को एक और लाश मिली. तिहाड़ गेट पर ही. और लाश बहुत सख्ती से बंधी हुई थी. पुलिस के लोग केस की गुत्थी के साथ लाश पर बंधी गांठों को भी नहीं खोल पा रहे थे. तभी एक युवक ने भीड़ के बीच से आकर लाश की बांधों को चाकू से काटकर खोल दिया और चला गया. इस बार की चिट्ठी में धमकी भी थी और इस बात का ऐलान कि वो अभी और मर्डर करेगा. मर्डर न करे तो cc रह नहीं पाता.

पुलिस ने मुखबिरों की मदद से लोकेशन लॉक की और सादे कपड़ों में पुलिस वाले गश्त करने लगे. एक दिन जांच में काम कर रहे एक अधिकारी को चंद्रकांत का घर मिल गया. उसने रेड मारी. चंद्रकांत अरेस्ट हो गया.

अरेस्ट होने के बाद चंद्रकांत ने बताया,

"उस दिन जब आप लाश नहीं खोल पा रहे थे, तो मैंने ही आकर चाकू से लाश खोली थी."

अरेस्ट होने के बाद कोर्ट में पेशी हुई. चंद्रकांत बाहर आया. मीडिया खड़ी थी. चंद्रकांत ने कहा,

"हो सकता है पुलिस जितना बता रही हो, मैंने उससे ज्यादा मर्डर किये हों."

चंद्रकांत ने पुलिस को अपने घर का पता बताया. पुलिस ने छापा मारा और घर से मिले खून से सने चाकू. पूछताछ में चंद्रकांत ने बताया था कि लोगों को मारने के पहले वो एक छोटे से कैमरे से लोगों की फ़ोटो खींचता था. उसी कमरे में वो लोगों को मारता था और उनकी लाश को देखते हुए खाना खाता था. चंद्रकांत ने पुलिस को बताया कि वो लाशों के सिर काटने के बाद उन्हें यमुना नदी में फेंक देता था. क्योंकि वो आत्मा को शांति देना चाहता था. पुलिस ने गोताखोरों की मदद से छानबीन की. खोपड़ी बरामद हो गई.

दिल्ली पुलिस ने चंद्रकांत के खिलाफ कुल 2 चार्जशीट दाखिल की. पहली चार्जशीट अगस्त 2007 में दाखिल की गई, इसमें चंद्रकांत पर 6 क़त्ल का आरोप लगाया गया था. इसके 7 महीने बाद मार्च 2008 में दिल्ली पुलिस ने दूसरी चार्जशीट दाखिल की और चंद्रकांत पर सात कत्ल के आरोप लगाए. 2013 में कोर्ट ने चंद्रकांत को दोषी करार दिया. उसे फांसी और उम्र कैद की सजा एक साथ मिली. बाद में चंद्रकांत की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया.

आजतक के तनसीम हैदर की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद चंद्रकांत को अपने ऊपर बने किसी वेब सीरीज की कोई जानकारी नहीं है. जानकारी के मुताबिक, परिवार के लोग कभी-कभार मिलने जेल आते हैं.खुद के बारे में, अपने केस के बारे में या परिवार के बारे में दूसरे कैदियों से बात करने से बचता है. कभी-कभी परिवार के लोग मिलने जेल में आते हैं. 

कभी-कभी पैरोल पर चंद्रकांत भी बाहर आता है. 

ट्रेलर देखिए : 

 

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