वीरपांड्या कट्टबोम्मन: सात-सात कुत्तों को दौड़ा देने वाले खरगोश थे इनके राज्य के जंगल में
इन्होंने अंग्रेजों को 'डूगने' लगान की जगह धूनी दे दी थी
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citypatriots.com से साभार
जब दक्षिण में सोलहवीं सदी के आस-पास विजयनगर राज्य टूटा, तो 72 छोटे राज्यों में बंट गया जिन्हें 'पलयम' कहते थे. इन पलयमों पर 'पलयकार' (अंग्रेजी में पॉलिगर भी कहते हैं) नाम के गवर्नर राज करते थे, जो मदुरै के नायक राजाओं को रिपोर्ट करते थे. इन पलयकारों में सबसे जबराट पलयकार हुए थे वीरपांड्या कट्टबोम्मन, जिन्होंने हारकर भी अंग्रेजों को वो धूनी दी कि सात पुश्तों तक याद रहे. आज के दिन बड्डे है.वीरपांड्या, कट्टबोम्मन कुनबे से थे. 3 जनवरी 1760 को जगवीरा कट्टबोम्मन और अरुमुगत्तम्मल के यहां ये पैदा हुए. जगवीरा कट्टबोम्मन पंचालनकुरुचि (आज के तूतीकोरिन के पास) के पलयकार थे. वीरपांड्या को 'कारुथैयाह' माने 'काला राजकुमार' कहते थे. इनके दो भाई भी थे. एक दलवी कुमारसामी जिसे 'सेवाथैयाह' माने 'गोरा राजकुमार' कहते थे, और एक दुराईसिंगम, जिसे 'ऊमैथुरै' माने 'गूंगा' कहते थे.
किला भी जबराट जगह था इनका
वीरपांड्या की राजधानी पंचालनकुरुचि के बारे में भी दिलचस्प किस्सा है. कहते हैं कि सालिकुलम के जंगलों में शिकार करते हुए कट्टबोम्मन कुनबे से एक योद्धा ने देखा कि एक खरगोश सात कुत्तों का पीछा कर रहा है. उन्हें लगा कि इस जगह में कोई तिलिस्म है जो वीरता पैदा करता है. उन्होंने उसी जगह एक किला बनवाया जिसका नाम पंचालनकुरुचि रखा. 2 फरवरी 1790 को वीरपांड्या इसी पंचालनकुरुचि के 47वें राजा बने. इसी किले से वीरपांड्या ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.

पंचालनकुरुचि किले का खंडहर. तमिलनाडु आर्काइव्ज की साइट से साभार
ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ भसड़
आरकोट के नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी से ढेर सारा लोन लिया था. लेकिन लौटा नहीं पाए. अंग्रेजों ने तगादा किया तो गर्दन बचाने को कह दिया कि हमारे बदले का टैक्स आप ले लो. अंग्रेजों ने इस बहाने लूट मचा दी. उनकी ताकत के आगे सब पलयकार झुके लेकिन वीरपांड्या ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हुक्म बजाने से साफ़ इनकार कर दिया. अंग्रेज़ कलेक्टर जैकसन से मिलने तक नहीं गए. एक जगह मिले तो झड़प हो गई.
लड़ने में डरे अंग्रेज़
अंग्रेजों ने बात संभालने के लिए कलेक्टर का तबादला कर दिया. लेकिन ये भी टैक्स वसूलने पर अड़ा रहा. वीरपांड्या ने चिट्ठी लिखकर बताया कि सूखा पड़ा है, लगान नहीं दे सकते. लेकिन बात लड़ाई तक पहुंच ही गई. वीरपांड्या का खौफ इतना था कि उनके छोटे से किले को चारों तरफ से घेरने के बावजूद एक झड़प के बाद अंग्रेजों ने और फ़ौज के आने तक रुक जाना ठीक समझा.

पंचालनकुरुचि किले पर अंग्रेजों का हमला. tripadvisor.com से साभार
गुस्ताख अंग्रेज़: इमली के पेड़ पर दी फांसी
लड़ाई में वीरपांड्या नहीं जीत पाए लेकिन 16 अक्टूबर 1799 में पकड़े गए. अपने दुश्मन से बदला लेने की हड़बड़ी में अंग्रेजों ने इन पर मुकदमा 3 हफ़्तों में निपटा दिया और तिरुनेवेली के पास कायात्तर किले में सरेआम बाकी पलयकारों के सामने एक इमली के पेड़ पर फांसी दे दी थी. उनके साथियों को भी दर्दनाक मौत मिली.
हिम्मत और खुद्दारी का किस्सा

पंचालनकुरुचि का नया किला. पिक्चर: tripadvisor.in से साभार
अंग्रेज़ फ़ौज ने पंचालनकुरुचि का किला नेस्तोनाबूद कर दिया था, लेकिन वीरपांड्या की हस्ती नहीं मिटी. वीरपांड्या हिम्मत और खुद्दारी का एक किस्सा बनकर लोगों की यादों में रहे. 1972 में तब की तमिलनाडु सरकार ने उस जगह पर वीरपांड्या की याद में एक नया किला बनवाया. वीरपांड्या की शहादत के 200 साल पूरे होने पर भारत सरकार ने 16 अक्टूबर 1999 को एक डाक टिकट जारी किया. वीरपांड्या कट्टबोम्मन पर इसी नाम से 1959 में एक फिल्म बनी जो इंग्लैंड में भी रिलीज़ हुई थी, जिसे खूब पसंद किया गया था.

colnet.com से साभार
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