The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Balaji Temple of Chitrkoot, a temple which had Royal Patronage under Aurangzeb

उस मंदिर का किस्सा जिसे औरंगज़ेब ने बनवाया

औरंगज़ेब से जुड़ा एक डाउट दूर कर लें.

Advertisement
Img The Lallantop
औरंगज़ेब का पोर्टरेट Quora से
pic
निखिल
21 फ़रवरी 2018 (Updated: 22 फ़रवरी 2018, 10:37 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
औरंगज़ेब के 49 साल के राज में मुगल राज की सरहदें जहां तक गईं, वहां तक कोई और मुगल फिर नहीं पहुंचा. लेकिन इस सफर में औरंगज़ेब ने कई ग़लतियां कीं. कहते हैं कि औरंगज़ेब की फौज जहां-जहां जाती थी, मंदिर-गुरुद्वारे-मज़ारें ज़मींदोज़ करती जाती थीं. लेकिन उसने एक बार इसके ठीक उलट काम भी किया था, और इसके पुख्ता प्रमाण हैं.
देश-भर में ऐसे मंदिर हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इसे औरंगज़ेब ने तोड़ दिया था. भावनाएं सबूतों का इंतज़ार नहीं करतीं. इसलिए मंदिरों का तोड़ा जाना और फिर दोबारा बनवाया जाना, हिंदुस्तान में सबसे संवेदनशील मुद्दों में से है.

इस सब के उलट चित्रकूट में एक ऐसा मंदिर है, जिसके बारे में कहते हैं कि उसे खुद औरंगज़ेब ने बनवाया और उसके नाम जागीर भी लिखी.


fbfeature
चित्रकूट का बालाजी मंदिर

जब औरंगज़ेब पेट पकड़ कर बैठ गया

चित्रकूट का बालाजी मंदिर यहां के लोगों का अभिमान है. यहां भगवान बालाजी की एक सोने की मूर्ति है. यहां इस मूर्ति जितना ही महत्व रखने वाला एक फरमान भी है जो औरंगज़ेब का जारी किया हुआ है. बकौल इंडिया टुडे  मंदिर के बारे में यहां के लोगों की ज़ुबान पर किस्सा ये है कि जब औरंगज़ेब चित्रकूट आया, तो उसने मंदाकिनी नदी के किनारे एक शिव मंदिर गिराने का हुक्म दिया. लेकिन जब मंदिर गिराने की कोशिश हुई, तो पूरी फौज के पेट में भयंकर दर्द शुरू हो गया, खुद औरंगज़ेब के भी.
शाही हकीम को इत्तला भेजी गई. लेकिन उनके इलाज से कोई आराम न हुआ. तभी मालूम चला कि इक्का-दुक्का फौजी इस दर्द से बचे हुए हैं. उन्होंने बताया कि दर्द का इलाज पास साधु बालकदास के पास है. औरंगज़ेब शहंशाह था. लेकिन पेट दर्द ने उसे ऐसा तंग किया था कि सारा ताव भूलकर बालक दास के पास पहुंचा. बाबा ने मंतर दिया या घुट्टी, मालूम नहीं. पर औरंगज़ेब को आराम पड़ गया.  बदले में औरंगज़ेब ने हुक्म दिया कि चित्रकूट को बख्श दिया जाए और फौज आगे बढ़ गई. ये किस्सा 1683 से 1686 के बीच का बताया जाता है.

औरंगज़ेब का फरमान

औरंगज़ेब ने यहां एक बालाजी मंदिर भी बनवाया और वहां के पुजारी महंत बालक दास के नाम एक फरमान जारी किया. इस फरमान के तहत मंदिर को औरंगज़ेब का शाही संरक्षण मिला. रख-रखाव के लिए पास के आठ गांव मंदिर की जागीर में लिख दिए गए, जहां से महंत लगान ले सकते थे.
बकौल हिंदुस्तान टाइम्स  ये गांव आज के इलाहाबाद ज़िले के हमुठा, चित्रकूट, रोदरा, सरया, मदरी, जारवा और दोहरिया हैं. फरमान के हिसाब से मंदिर को 330 बीघे ज़मीन हमेशा के लिए लिए मिल गई, वो भी टैक्स फ्री. पास के बाज़ारों से वसूल करके मंदिर को उस ज़माने का एक रुपया रोज़ देने की बात भी फरमान में लिखी हुई है. फरमान पर औरंगज़ेब के रेवेन्यू (राजस्व) मंत्री सआदत खां की सील लगी हुई है और इसे बहरमंद खां नाम के कातिब ने लिखा है.

कुछ गलतियां भी हैं फरमान में

farman

इससे जुड़े सभी दस्तावेज़ मंदिर में बड़ी अच्छी तरह संभाल कर रखे गए हैं. पुराना होने की वजह से दरक रहे फरमान को एक मोटे कागज़ पर चिपका दिया गया है. लेकिन पुराने फरमान को रीस्टोर करने के फेर में कुछ गलतियां भी हो गई हैं. मसलन फरमान की शुरुआत 'अल्लाहो अकबर' से होती है. औरंगज़ेब ने अल्लाहो अकबर की जगह 'बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम' कहने का चलन शुरू करवाया था. ऐसे में उसके फरमान पर अल्लाहो अकबर गलती की तरह लगता है. लेकिन फरमान को देखने पर मालूम चलता है कि अल्लाहो अकबर बाद में लिख कर चिपकाया गया. इसके अलावा फरमान के पीछे लिखे 'ज़िम्न' (ये फुटनोट की तरह होता है) पर भी फरमान से पहले की तारीख है. ये फरमान से बाद की होनी चाहिए थी.
लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR) के तब के चेयरमैन और जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब का यही कहना था कि फरमान की भाषा, उस पर लगी सील और अफसरों के नाम उसके सही होने की ओर ही इशारा करते हैं. फरमान में हुई गलतियां उसे रीस्टोर करने के दौरान आई होंगी.
चूंकि औरंगज़ेब के फरमान वाली बात यहां लोगों में खूब मशहूर है, मंदिर से जुड़े किसी भी दस्तावेज़ को औरंगज़ेब का बता दिए जाने का चलन है. पन्ना के राजाओं ने इस मंदिर को जो अनुदान दिए थे, उनके बारे कुछ ताम्रपत्र (तांबे के पत्तों पर लिखे दस्तावेज़) हैं. इन्हें भी लोग औरंगज़ेब का बता देते हैं.  एक अंग्रेज़ जज के फारसी में लिखे एक आदेश के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है.

क्यों खास है फरमान?

मुगलों ने इस तरह के कई फरमान जारी किए गए थे. खासकर अकबर और शाहजहां के ज़माने में. लेकिन औरंगज़ेब के ज़माने में ऐसे कम ही फरमान आए. जो आए, ज़्यादातर औरंगज़ेब के सूबेदारों के थे. लेकिन चित्रकूट के बालाजी मंदिर के हक में जारी फरमान सीधे औरंगज़ेब का जारी किया है. इसलिए ये खास है और दुर्लभ भी.
ये पक्के तौर पर कहना मुश्किल है कि मंदिर औरंगज़ेब ने ही बनवाया था. इसके भी सबूत नहीं हैं कि औरंगज़ेब सचमुच चित्रकूट आया था या नहीं. लेकिन मंदिर की बनावट पक्के तौर पर मुगल है.
architecture

15 सितंबर 1987 के इंडिया टुडे के अंक में इस मंदिर और औरंगज़ेब के फरमान के बारे में तफसील से बताया गया है. पंकज पचौरी की लिखी इस रपट का सबसे मार्मिक हिस्सा वो है जिसमें मंदिर में रोज़ आ रहे द्वारकाप्रसाद सैनी का बयान है. 1922 से रोज़ मंदिर आते रहे सैनी ने कहा था, "अयोध्या के लोगों को जाकर बता दो, हमारे ठाकुर जी एक ऐसे मंदिर में रहते हैं और इस पर कोई भी लड़ता नहीं है."
सैनी के ऐसा कहने के बमुश्किल पांच साल तीन महीने बाद रामलला की जन्मभूमि क्लेम करने के मकसद से अयोध्या में बाबरी का विवादित ढांचा तोड़ दिया गया. भगवान राम ही थे जो वनवास के समय चित्रकूट में भी रहे थे. और यहीं के लोग न सिर्फ ये मानते हैं कि बालाजी  मंदिर औरंगज़ेब का बनाया हुआ है, बल्कि इस बात पर फख्र भी करते हैं.  



वीडियो देखें:

ये भी पढ़ेंः

वो 'औरंगज़ेब' जिसे सब पसंद करते हैं

औरंगजेब का वो बेटा जिसे नाखून और बाल तक कटवाना मना था

ये 9 बातें साबित करती हैं कि शिवाजी राज्य चाहते थे 'हिंदू राज्य' नहीं!

औरंगज़ेब रोड का नाम बदलने वाले भारत को इतिहास संपादन अमेरिका से सीखना चाहिए

अकबर और महाराणा प्रताप दोनों की ही ज़रूरत नहीं है

2017 आते-आते हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप जीत गए

Advertisement

Advertisement

()