The Lallantop
Advertisement

क्यूबा ने अपने ऊपर हमले के लिए अमेरिका को 'थैंक्यू' क्यों कहा था?

CIA के एक सीक्रेट ऑपरेशन की कहानी.

Advertisement
Img The Lallantop
Bay of Pigs Invasion में अमेरिका की करारी हार हुई. कोल्ड वॉर के दौर में वो किसी आघात से कम नहीं था.
pic
अभिषेक
23 दिसंबर 2020 (Updated: 23 दिसंबर 2020, 09:44 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

तारीख़- 23 दिसंबर

ये तारीख़ जुड़ी है एक रिहाई से. जब एक देश ने बेबी फ़ूड और दवाओं के एवज में क़ैदियों की अदला-बदली की. ये लोग उस देश में तख़्तापलट के इरादे से पहुंचे थे, लेकिन क़ैदी बन गए. इस पूरी घटना ने एक महाशक्ति की जगहंसाई करवा दी थी. एक दिलचस्प बात पता है? जिस देश पर हमला हुआ, उसने हमला करनेवालों को थैंक्यू कहा था. ये क़िस्सा क्या है? जानते हैं विस्तार से.
साल 1959. क्यूबा में क्रांति हुई. फिदेल कास्त्रो की गुरिल्ला सेना ने बटिस्टा सरकार को उखाड़ फेंका. राष्ट्रपति बटिस्टा जितनी संपत्ति ले जा सकते थे, वो लेकर क्यूबा से भाग गए. फिदेल कास्त्रो कम्युनिस्ट थे. उनका झुकाव सोवियत संघ की तरफ था. कोल्ड वॉर के दौर में सोवियत का दोस्त मतलब अमेरिका का दुश्मन था.
वैसे भी बटिस्टा अमेरिका के पिछलग्गू थे. वो सेना में जनरल के पद पर थे. 1940 में तख़्तापलट कर पहली बार राष्ट्रपति बने. टर्म खत्म हुआ तो फ्लोरिडा में रहने चले गए. फिर वापस लौटे. 1952 के साल में. उनको राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेना था. लेकिन हार नजदीक देखकर उन्होंने लोगों को भरमाया. बोले कि कार्लोस प्रियो सोकारास हारने के बाद भी पद नहीं छोड़ेंगे. इसी भरम के दम पर उन्होंने सैन्य विद्रोह कर दिया. घंटे भर के भीतर सरकार बदल गई.
1940-44 और 1952-58 तक क्यूबा के राष्ट्रपति रहे बटिस्टा.
1940-44 और 1952-58 तक क्यूबा के राष्ट्रपति रहे बटिस्टा.


इस विद्रोह में अमेरिका ने उनकी मदद की थी. अब फेवर लौटाने की बारी थी. बटिस्टा ने बखूबी लौटाया. यूं कहें कि दिल खोलकर लुटाया. एक समय ऐसा आया, जब क्यूबा  के खेतों पर अमेरिकी व्यापारियों का एकछत्र राज हो गया था. स्थानीय लोग मज़दूर भर रह गए. बटिस्टा सरकार ने ‘हड़ताल के अधिकार’ को भी खत्म कर दिया था. विरोध की गुंज़ाइश मिटा दी गई थी.
इसलिए, जब कास्त्रो की क्रांति में बटिस्टा सरकार गई, अमेरिका को तगड़ा झटका लगा. जो भी संपत्तियां अमेरिकी लोगों के हाथ में थी, उन्हें कास्त्रो ने नैशनलाइज़ कर दिया. उन्होंने बटिस्टा समर्थकों को ठिकाने लगाना भी शुरू किया. जो अभी तक कास्त्रो की सरकार को पलटने का ख़्वाब देख रहे थे, उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा. इनमें से अधिकतर अमेरिका पहुंचे.
उधर अमेरिका भी कास्त्रो से परेशान था. राष्ट्रपति आइजनहॉवर इस समस्या से जल्दी निजात पाना चाहते थे. अमेरिका हर वैसी जगह पर टांग अड़ाने के लिए तैयार था, जहां कम्युनिस्ट धड़ा मज़बूत हो रहा हो. CIA को काम पर लगाया गया. प्लान बना. मार्च, 1960 में आइज़नहॉवर ने प्लान पर मुहर लगा दिया.
अब CIA ने अपना काम शुरू किया. क्यूबा से भागे लोगों को पहले फ्लोरिडा और फिर ग्वाटेमाला के खुफिया ठिकानों पर ट्रेन किया गया. इन्हें नाम मिला ‘ब्रिगेड 2506’. ट्रेनिंग के दौरान ब्रिगेड के एक मेंबर की मौत हो गई थी. उसी के नंबर के आधार पर ब्रिगेड का नाम रखा गया था. इन्हें विद्रोह के लिए तैयार किया जा रहा था. CIA का प्लान था कि ये लोग क्यूबा में घुसकर हमला करें और स्थानीय लोगों की मदद से कास्त्रो की सरकार गिरा दें.
1961 में जॉन फिट्ज़गेराल्ड केनेडी सबसे कम उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपति बने.
1961 में जॉन फिट्ज़गेराल्ड केनेडी सबसे कम उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपति बने.


जब तक ब्रिगेड तैयार होती, तब तक अमेरिका में राष्ट्रपति बदल चुका था. मगर प्लान कायम रहा. जॉन एफ़ कैनेडी ने फरवरी, 1961 में हमले की मंज़ूरी दे दी. हमले की प्लानिंग क्या थी? तय हुआ कि पहले यूएस एयरफ़ोर्स के लड़ाकू विमान क्यूबन एयरबेस को तबाह करेंगे. उसके बाद ‘ब्रिगेड 2506’ ज़मीन के रास्ते अचानक से हमला बोलेगी.
15 अप्रैल, 1961. अमेरिकी एयरफ़ोर्स के आठ लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी. इन प्लेन्स को क्यूबा में बम गिराना था. पर इनमें से अधिकतर निशाना चूक गए. अमेरिका ने इन प्लेन्स को क्यूबन एयरफ़ोर्स के कलर से पेंट किया था. जब इसकी तस्वीरें बाहर आईं, अमेरिका की खूब थू-थू हुई. ये देखकर कैनेडी ने दूसरे एयर अटैक का प्लान कैंसिल कर दिया. 
ब्रिगेड 2506 की लैंडिंग के लिए ‘बे ऑफ़ पिग्स’ का किनारा चुना गया. ये क्यूबा का सुदूर दक्षिणी इलाका है. उस तरफ़ किसी का ध्यान नहीं जाता था. और, वहां छिपने के लिए भी बढ़िया जगह थी. 17 अप्रैल को ब्रिगेड को वहां पहुंचा दिया गया. 
तब तक क्यूबा सरकार सतर्क हो चुकी थी. कास्त्रो ने अपनी एयरफ़ोर्स को आसमान की कमान संभालने का आदेश दिया. साथ ही, 20 हज़ार सैनिकों को बे ऑफ़ पिग्स की तरफ रवाना किया गया. ब्रिगेड 2506 को ऐसे स्वागत की उम्मीद नहीं थी. अमेरिकी फ़ाइटर प्लेन्स भी इस हमले की जद में आए. चार अमेरिकी सैनिक मारे गए. दो लड़ाकू विमान और दो जहाज तबाह कर दिए गए.
हमले में अमेरिकी एयरफ़ोर्स और ब्रिगेड 2506 को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
हमले में अमेरिकी एयरफ़ोर्स और ब्रिगेड 2506 को भारी नुकसान उठाना पड़ा.


19 अप्रैल तक धुंध साफ हो चुकी थी. ‘ब्रिगेड 2506’ के सौ से ज़्यादा सैनिक मारे गए थे. कुछ समंदर के रास्ते भाग गए थे. लगभग 1200 सैनिकों को क्यूबन आर्मी ने अरेस्ट कर लिया.
इन्हें छुड़ाने के लिए अमेरिका को खासी मशक्कत करनी पड़ी. बैकडोर से खूब सारी मीटिंग्स चलीं. समझौते हुए. आखिरकार, फिदेल कास्त्रो क़ैदियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गए. इसके एवज में उन्होंने अमेरिका से 5.3 करोड़ डॉलर्स के बेबी फ़ूड और दवाएं लीं.
23 दिसंबर, 1962 के दिन, रिहा हुए क़ैदियों का पहला जत्था अमेरिका पहुंचा. हफ़्ते भर बाद मियामी में एक सेरेमनी हुई. ब्रिगेड 2506 का झंडा कैनेडी को सौंपा गया. उन्होंने एक वादा किया, जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है. कैनेडी ने कहा,
‘मुझे यकीन है कि एक दिन ये झंडा ब्रिगेड 2506 को आज़ाद हवाना में वापस किया जाएगा.’
ये वादा आज तक पूरा नहीं हो सका है. बाद के सालों में फिदेल कास्त्रो की हत्या के कई प्रयास हुए, पर कभी कामयाबी हाथ नहीं लगी.
जाते-जाते एक मीटिंग का क़िस्सा भी पढ़ लीजिए. ये उस वक़्त की बात है, जब क़ैदियों की रिहाई को लेकर मीटिंग्स चल रही थी. अगस्त, 1961 में उरुग्वे में एक सम्मेलन हुआ. इसमें कैनेडी के स्पीच-राइटर रिचर्ड गुडविन और कास्त्रो के साथी चे ग्वेरा भी आए थे.
सम्मेलन के बाद पार्टी हुई. इस दौरान गुडविन और ग्वेरा मिले. गुडविन ने इस बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया. चे ग्वेरा ने कहा था,
‘मैं अमेरिका को शुक्रिया कहना चाहूंगा कि उन्होंने हमारे ऊपर हमला किया. इस हमले ने क्यूबा को अमेरिका के बराबर लाकर खड़ा कर दिया.’

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement