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जब वो आदमी चीफ जस्टिस बना जिसे पीएम नेहरू कतई नहीं चाहते थे

आज सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने शपथ ली है. जानिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से जुड़े तीन किस्से.

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CJI पद की शपथ लेते पतंजली शास्त्री.
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लल्लनटॉप
3 अक्तूबर 2018 (Updated: 3 अक्तूबर 2018, 09:48 AM IST) कॉमेंट्स
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Abhishek Kumar

यह लेख दी लल्लनटॉप के लिए अभिषेक कुमार ने लिखा है. अभिषेक दिल्ली में रहते हैं और सिविल सेवाओं की तैयारी करते हैं. रहने वाले बिहार के हैं. फिलहाल वो अलग-अलग कोचिंग में छात्रों को पढ़ाते हैं.



साल था 1951. नवंबर का महीना. तब सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ आठ जज हुआ करते थे. संसद का सेन्ट्रल हॉल में ही सुप्रीम कोर्ट अस्थाई तौर पर चला करता था जहां से 1956 में अपने वर्तमान बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ. प्रधानमंत्री नेहरू नहीं चाहते थे कि वरिष्ठतम न्यायाधीश पतंजलि शास्त्री चीफ जस्टिस बनें. तब उन्हें समझाया गया कि यदि शास्त्री की जगह किसी अन्य को नियुक्त किया गया तो सुप्रीम कोर्ट के 6 जज एक साथ इस्तीफा दे देंगे. नेहरू को झुकना पड़ा और पतंजलि शास्त्री ही चीफ जस्टिस बने.


पतंजली शास्त्री को शपथ दिलाते राजेंद्र प्रसाद.
पतंजली शास्त्री को शपथ दिलाते राजेंद्र प्रसाद.

दूसरा वाकया, 1973 का है जब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की वरिष्ठता की अनदेखी कर ए. एन. रे को चीफ जस्टिस बनाया गया. नाराज तीनों जजों ने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने वालो में जस्टिस के एस हेगडे़ भी शामिल थे. हेगड़े 1977 में लोकसभा अध्यक्ष बनाए गये एवं 1977 में ही (जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर रुक्मिणी देवी अरुण्डेल के नाम को हवा दे दी).चंद्रशेखर ने आचार्य कृपलानी के साथ जस्टिस हेगड़े का नाम भी राष्ट्रपति पद के लिये सुझाया. लेकिन अंततः सहमति बनी लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी के नाम पर (बाद मे 1979 में यही रेड्डी जनता पार्टी के काल बने). तब हेगडे़ को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया. बाद में के एस हेगडे़ के सुपुत्र संतोष हेगडे़ भी सुप्रीम कोर्ट में जज बने.

तीसरा वाकया इमरजेन्सी के दौर का है जब वरिष्ठतम जज एच. आर. खन्ना की अनदेखी कर एम. एच. बेग को चीफ जस्टिस बनाया गया. दरअसल उन दिनों शिवकान्त शुक्ला vs ADM जबलपुर का केस सुप्रीम कोर्ट में आया था. जिसमें तीन जजों की बेंच ने 2-1 से फैसला दिया था कि 'Right to life can be suspended during emergency', जिसमें खन्ना का मत इसके विपरीत था जिससे यह फैसला सर्वसम्मत न होकर 2-1 से हुआ. इस फैसले के परिप्रेक्ष्य में खन्ना ने अपनी बेटी को लिखे पत्र में उद्धृत किया 'I am going to cost Chief Justiceship of India'. आखिर में खन्ना की आशंका ही सच साबित हुई.




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