"साइंस ईश्वर को साबित नहीं कर सकती", जावेद अख्तर से भिड़ जाने वाले मुफ्ती शमाइल नदवी कौन हैं?
Mufti Shamail Nadwi मलेशिया की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी (IIUM) से ‘Islamic Revealed Knowledge and Human Sciences’ में Phd कर रहे हैं. उनकी Phd सितंबर 2028 में पूरी होगी.

‘Does God Exist?’… नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में 21 दिसंबर 2025 को एक डिबेट आयोजित हुई. जिसमें मशहूर शायर-गीतकार और नास्तिक होने का दावा करने वाले जावेद अख्तर एक तरफ थे. और दूसरी तरफ थे इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती शमाइल नदवी (Mufti Shamail Nadwi). लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी इस डिबेट को मॉडरेट कर रहे थे. डिबेट के बाद सोशल मीडिया पर लोग आस्था, तर्क और नैतिकता के धड़ों पर बंट गए. इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल ये पूछा गया कि मुफ्ती शमाइल नदवी कौन हैं? जावेद अख्तर को तो लोग जानते हैं, पर 'साइंस (Science) यानी विज्ञान ये साबित ही नहीं कर सकता कि ईश्वर है या नहीं है', कहने वाले नदवी का बैकग्राउंड क्या है? पहले ये जानते हैं. फिर बताएंगे डिबेट में क्या हुआ.
इस्लामिक स्टडीज की पढ़ाईकोलकाता में जन्मे मुफ्ती शमाइल नदवी का पूरा नाम मुफ्ती शमाइल अहमद अब्दुल्लाह नदवी है. वो एक भारतीसय इस्लामिक स्कॉलर है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नदवी एक धार्मिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जहां बचपन से ही कुरान और हदीस की शिक्षा का माहौल रहा. उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय मदरसों में हुई, जिसके बाद उन्होंने लखनऊ के प्रसिद्ध इस्लामी संस्थान दारुल उलूम नदवतुल उलमा से ग्रेजुएशन किया. उनकी लिंक्डइन बायो के मुताबिक यहां उन्होंने इस्लामिक स्टडीज की पढ़ाई की. इसके बाद तफ्सीर, उलूमुल कुरान और इफ्ता (फतवा देने की ट्रेनिंग) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.

मुफ्ती शमाइल नदवी मलेशिया की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी (IIUM) से ‘Islamic Revealed Knowledge and Human Sciences’ में Phd भी कर रहे हैं. उनकी Phd सितंबर 2028 में पूरी होगी. दारुल उलूम नदवतुल उलमा से नदवी ने Islamic Jurisprudence में MPhil भी किया हुआ है.
मरकज अल-वह्यैन के फाइंडरलिंक्डइन बायो के अनुसार नदवी मरकज अल-वह्यैन के फाइंडर हैं. ये एक ऑनलाइन इस्लामिक संस्थान है जिसकी स्थापना 2021 में हुई थी. मरकज की खासियत ये है कि यहां शिक्षा मुफ्त या बहुत कम फीस पर उपलब्ध है, और लाखों छात्र इससे जुड़े हुए हैं. मुफ्ती शमाइल खुद यहां मुख्य शिक्षक हैं, और उनके लेक्चर्स की सरल भाषा युवाओं को बहुत पसंद आती है.

इसके अलावा, 2024 में उन्होंने वह्यैन फाउंडेशन की नींव रखी, जो एक चैरिटेबल इस्लामी ट्रस्ट है. ये फाउंडेशन शिक्षा, कल्याण, गरीबों की मदद और धार्मिक मार्गदर्शन के क्षेत्र में काम करता है. कोलकाता में स्थित ये संस्था स्थानीय समुदाय की सेवा के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रीय है. मुफ्ती शमाइल कोलकाता की प्रसिद्ध कोबी बागान मस्जिद में खतीब और मुफस्सिर-ए-कुरान के रूप में भी सेवाएं दे रहे हैं, जहां उनके जुमे के खुत्बे और तफ्सीर सेशन्स बड़ी संख्या में लोग सुनने आते हैं.
सोशल मीडिया पर सक्रीयमुफ्ती शमाइल नदवी की असली पहचान सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर है. उनके यूट्यूब चैनल, इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर लाखों फॉलोअर्स हैं. वो पश्चिमी विचारधाराओं का तार्किक खंडन करते हैं, इस्लाम को जीवन का सच्चा और पूर्ण तरीका बताते हैं तथा मुस्लिम उम्माह में एकता की अपील करते हैं. उनके लेक्चर्स में आधुनिक मुद्दों जैसे एथिज्म, फेमिनिज्म, साइंस और धर्म के संबंध पर खुलकर चर्चा होती है, जो युवाओं को आकर्षित करती है.

इन सब के अलावा मुफ्ती शमाइल नदवी का खुद का बिजनेस भी है. नदवी की वेबसाइट के मुताबिक वो शहजार फूड्स नाम का एक ऑनलाइन फूड स्टोर भी चलाते हैं. ये ऑनलाइन स्टोर में अलग-अलग तरह के ऑर्गैनिक फूड्स, सूखे मेवे और नट्स बेचता है. स्टोर की वेबसाइट में दावा किया गया है कि ये 100% शुद्ध शहद और बेहतरीन कश्मीरी केसर उपलब्ध कराते हैं. इसका स्टोर कलकत्ता में है.
नदवी ने क्या कहा?'साइंस (Science) यानी विज्ञान ये साबित ही नहीं कर सकता कि ईश्वर है या नहीं है.' मुफ्ती शमाइल नदवी ने ये दावा बहस के दौरान किया. उनका कहना है कि विज्ञान दरअसल खुदा या ईश्वर के अस्तित्व को न तो सीधे तौर पर साबित कर सकता है और न ही उसे पूरी तरह नकार सकता है. दोनों के लिए साइंस कोई मानक नहीं बन सकता और ऐसा वो खुद नहीं कह रहे हैं बल्कि वैज्ञानिक संस्थाएं ये बात कह रही हैं.
नदवी ने ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ (National Academy of Sciences) का उदाहरण दिया और कहा एकेडमी का साफ कहना है कि विज्ञान के पास ऐसे तरीके (processes) मौजूद नहीं हैं, जिनके जरिए ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित या अप्रमाणित किया जा सके. इसके पीछे नदवी वजह बताते हैं कि चूंकि विज्ञान का दायरा अनुभवजन्य साक्ष्यों (Empirical Evidence) तक सीमित है. इसलिए वो ईश्वर को साबित कर पाने में सफल नहीं हो सकता.
Empirical Evidence वो होते हैं जिन्हें हम देख सकते हैं, माप सकते हैं, प्रयोग के माध्यम से जांच सकते हैं.
नदवी कहते हैं,
“Empirical Evidence (अनुभवजन्य साक्ष्य) का ताल्लुक हमारे नेचुरल और फिजिकल वर्ल्ड से है, जबकि ईश्वर नॉन-फिजिकल (गैर-भौतिक) और सुपरनैचुरल (अलौकिक) रियलिटी है. लिहाजा नॉन फिजिकल रियलिटी को आप उस टूल के साथ नहीं चेक कर सकते जिसका काम फिजिकल रियलिटी को तलाश करना है.”
उनका कहना है कि विज्ञान सिर्फ भौतिक संसार को ही अनुभव कर सकता है. यानी जो चीजें देखी-सुनी या महसूस की जा सकती हैं, विज्ञान उन्हीं के बारे में प्रमाण या अप्रमाण दे सकता है. लेकिन इसके जरिए मेटा फिजिकल रिएलिटी को साबित नहीं किया जा सकता. ये इसके लिए गलत औजार है. ये वही काम है कि आप मेटल डिटेक्टर से प्लास्टिक डिटेक्ट करने की कोशिश करें. जो जाहिर तौर पर सही नहीं है.
रिलीजन क्या विज्ञान को रोकने का काम करता है? बहस के बीच ये सवाल आने पर नदवी ने कहा कि रिलीजन यानी धर्म साइंस को कभी नहीं रोकता. धर्म ‘साइंटिज्म’ को रोकता है. साइंस और साइंटिज्म में फर्क है. साइंस का मतलब होता है कि हम नेचर और भौतिक जगत की व्यवस्था को समझें. इस प्रक्रिया को साइंस कहा जाता है. जबकि साइंटिज्म ये है कि आप मान लें कि ज्ञान हासिल करने का सही और एकमात्र सोर्स सिर्फ विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धतियां ही हैं.
वीडियो: जावेद अख्तर ने 'क्या ईश्वर का अस्तित्व है?' डिबेट के दौरान डायनासोर का ज़िक्र क्यों किया?

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