The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • Supreme Court raises questions on UP anti conversion law Citing Constitution and secularism

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी धर्मांतरण कानून पर उठाए गंभीर सवाल, 5 FIR रद्द, निजी स्वतंत्रता पर चिंता जताई

SC on UP anti-conversion law: Supreme Court ने कहा कि वह कानून की वैधता पर फैसला नहीं ले रहा है, लेकिन उसे लगता है कि प्रारंभिक तौर पर यह कानून किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता को प्रभावित करता है. कोर्ट ने इसके लिए संविधान की भावना और प्रस्तावना का भी हवाला दिया.

Advertisement
Supreme Court raises questions on UP anti conversion law Citing Constitution and secularism
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कानून की वैधता पर सुनवाई नहीं कर रहा. (Photo: ITG/File)
pic
सचिन कुमार पांडे
24 अक्तूबर 2025 (Published: 02:50 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून (2021) पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन कराना चाहता है, उसे बहुत ही कठिन प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है. साथ ही कोर्ट ने पाया कि इस कानून से किसी व्यक्ति के निजी मामलों में सरकारी दखल बढ़ जाता है. यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. इसके अलावा कोर्ट का मानना है कि यह संविधान की मूल धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ भी जा सकता है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट जबरन धर्मांतरण से जुड़े मामलों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इसमें छह अलग-अलग केस शामिल थे. कोर्ट ने इनमें से पांच मामलों में FIR रद्द करने का आदेश दिया. वहीं एक केस पर आगे विचार करने की जरूरत बताई. मामलों पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर कई अहम टिप्पणियां कीं.

SC ने क्या कहा?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि वह कानून की वैधानिकता पर सुनवाई नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसके कई प्रावधानों पर टिप्पणी करना जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत अगर यूपी में कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन कराना चाहता है तो उसे जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होती है. इसके बाद मजिस्ट्रेट को हर मामले में पुलिस जांच करवानी होती है. इससे व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता में सरकारी दखलअंदाजी बढ़ जाती है.

साथ ही कोर्ट ने पाया कि कानून के तहत धर्म बदलने वाले व्यक्ति की निजी जानकारी सार्वजनिक की जाती है. कोर्ट के मुताबिक ऐसे में पता लगाना जरूरी है कि कहीं यह नियम संविधान में दिए गए निजता के अधिकार का उल्लंघन तो नहीं है. कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान धर्म, विचार और विश्वास की स्वतंत्रता देता है. यह देश की धर्मनिरपेक्षता का हिस्सा है. लेकिन कानून के कुछ प्रावधान अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के अधिकारों से टकरा सकते हैं.

कोर्ट ने पुराने मामलों का दिया हवाला 

कोर्ट ने इसके लिए केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न अंग है. कोर्ट ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना किसी व्यक्ति को धर्म, विचार, आस्था और विश्वास चुनने की स्वतंत्रता देती है. इसके अलावा कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में केएस पुट्टस्वामी और शाफिन जहां जैसे मामलों का भी हवाला दिया, जिनमें निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सबसे ऊपर बताया गया है. कोर्ट का कहना है कि वह कानून की वैधता पर फैसला नहीं ले रहा, लेकिन प्रारंभिक तौर पर यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता को प्रभावित जरूर करता है.

क्या कहता है धर्मांतरण विरोधी कानून?

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2021 में धर्म परिवर्तन रोकथाम अधिनियम पास किया था. इसमें प्रावधान था कि अगर किसी व्यक्ति को यूपी में अपना धर्म बदलना है तो उसे 60 दिन पहले मजिस्ट्रेट को घोषणा पत्र देना होता है कि वह बिना किसी दबाव के ऐसा कर रहा है. इसके बाद जो व्यक्ति यह धर्म परिवर्तन करवा रहा है, उसे भी 30 दिन पहले मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होती है. इसके बाद मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस से इसकी जांच कराई जाती है.

एक बार धर्म परिवर्तन हो जाने के बाद व्यक्ति को फिर से 60 दिन के अंदर मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होती है. जिसमें उसे अपनी पहचान से जुड़ी जानकारी देनी होती है. इसके बाद यह जानकारी नोटिस बोर्ड पर सार्वजनिक की जाती है. व्यक्ति को फिर 21 दिन के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होकर अपनी पहचान और जानकारी की पुष्टि करनी होती है.

यह भी पढ़ें- दिल्ली की हवा सुधरेगी? 29 अक्टूबर को होगी आर्टिफिशियल बारिश, बुराड़ी में हुआ ट्रायल सफल

अभी क्या मामला था?

कोर्ट अभी जबरन धर्मांतरण से जुड़े कई मामलों की याचिका के एक समूह पर सुनवाई कर रहा था. इसमें एक मामला फतेहपुर के इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया में कथित सामूहिक धर्मांतरण के आयोजन से जुड़ा था. इसमें विश्व हिंदू परिषद के एक सदस्य ने मामला दर्ज कराया था, जिसमें 35 नामजद और 20 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया था. वहीं एक अन्य मामले में प्रयागराज स्थित Sam Higginbottom University of Agriculture Technology and Science (SHUATS) के कुलपति और अन्य अधिकारियों के खिलाफ ईसाई धर्म में जबरन सामूहिक धर्मांतरण के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने Surrogacy Law पर सरकार को क्यों लगाई फटकार?

Advertisement

Advertisement

()