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'मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समय आ गया है', सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

कोर्ट की ये टिप्पणी फाउंडेशन ऑफ इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट और उसके पत्रकार अजय आशीर्वाद महाप्रस्थ की अपील पर सुनवाई के दौरान आई. मामला 2016 में पब्लिश किए गए एक आर्टिकल से जुड़ा है.

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Supreme Court judge says it’s high time to decriminalise defamation
दो जजों वाली बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एमएम सुंदरेश ने ये टिप्पणी की. (फोटो- X)
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प्रशांत सिंह
22 सितंबर 2025 (Updated: 22 सितंबर 2025, 08:56 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि (Defamation) के मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर जोर दिया है. 22 सितंबर को एक सुनवाई के दौरान जस्टिस एमएम सुंदरेश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि वक्त आ गया है कि अब मानहानि को ‘अपराधमुक्त’ (decriminalize) किया जाए.

'मानहानि को अपराधमुक्त करना चाहिए'

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट की ये टिप्पणी फाउंडेशन ऑफ इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट और उसके पत्रकार अजय आशीर्वाद महाप्रस्थ की अपील पर सुनवाई के दौरान आई. मामला 2016 में पब्लिश किए गए एक आर्टिकल से जुड़ा है. ऑनलाइन न्यूज पोर्टल द वायर में छपे इस आर्टिकल का टाइटल “Dossier Call JNU “Den of Organised Sex Racket”; Students, Professors Allege Hate Campaign” था. 

आर्टिकल में दावा किया गया था कि कैसे एक ‘कैंपेन के तहत डोजियर तैयार करके जेएनयू को सेक्स रैकेट का अड्डा साबित करने की कोशिश’ की जा रही है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि इस कैंपेन में यूनिवर्सिटी की ही एक प्रोफेसर भी शामिल है.

बाद में उस प्रोफेसर ने इस आर्टिकल को लेकर पत्रकार और द वायर के खिलाफ मानहानि केस दायर किया था. उन्होंने इस आर्टिकल को अपनी ‘प्रतिष्ठा पर हमला’ बताते हुए संस्थान और उसके रिपोर्टर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया था. प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि आर्टिकल से ऐसा लगता है कि कथित डोजियर उन्होंने ही तैयार किया था, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है.

शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, दिल्ली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 7 जनवरी, 2017 को पोर्टल के संपादक और पत्रकार को तलब किया. हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने 2023 में समन रद्द कर दिया. लेकिन बाद में जस्टिस सुंदरेश की ही बेंच ने 24 जुलाई, 2024 को समन रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले को रिवर्स कर दिया और मामले को वापस हाई कोर्ट भेज दिया.

कपिल सिब्बल ने क्या बताया?

द वायर ने सुप्रीम कोर्ट में इस समन को चुनौती दी थी. उसकी तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत की टिप्पणी से सहमति जताई और कहा कि मानहानि कानूनों में सुधार जरूरी है. सिब्बल ने बताया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कुछ आपराधिक मानहानि मामलों में उन्हें जारी समन को चुनौती देते हुए अपील दायर की है. जो इसी तरह के सवाल खड़े करती हैं. 

अब सुप्रीम कोर्ट के दो जजों वाली बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एमएम सुंदरेश ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा है, 

"अब समय आ गया है कि इन सबको अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाए."

2016 में कोर्ट ने क्या कहा था?

सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी 2016 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अलग है. उस समय सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने आपराधिक मानहानि को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया था. कोर्ट ने कहा था कि प्रतिष्ठा का अधिकार अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) के तहत मौलिक है. ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) पर उचित प्रतिबंध लगाता है. लेकिन अब जस्टिस सुंदरेश की टिप्पणी से लगता है कि समय बदल चुका है.

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