मंदिर में नहीं गए, अनुशासन तोड़ा, CJI सूर्यकांत बोले- ‘आप सैनिकों की बेइज्जती कर रहे हैं’
CJI Surya Kant ने कहा कि अधिकारी किस तरह का मैसेज देना चाह रहे हैं. यह एक आर्मी अधिकारी की सबसे बड़ी अनुशासनहीनता है. उन्होंने कहा कि आप अपने सैनिकों की बेइज्जती कर रहे हैं. जानिए क्या है पूरा मामला.

सुप्रीम कोर्ट ने एक आर्मी ऑफिसर की बर्खास्तगी को रद्द करने से इनकार कर दिया और उनकी याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने माना कि ऑफिसर ने मिलिट्री डिसिप्लिन (अनुशासन) का पालन नहीं किया और अपने सीनियर के आदेश का उल्लंघन किया. ऑफिसर का नाम सैमुअल कमलेसन है और वह ईसाई धर्म के हैं. उन पर आरोप है कि उन्होंने रेजिमेंट की धार्मिक परेड में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने सैमुअल कमलेसन के व्यवहार को गलत माना था और उन्हें सर्विस से टर्मिनेट करने का आदेश दिया था. सैमुअल ने इसके खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी. हाई कोर्ट ने भी उनके टर्मिनेशन यानी बर्खास्तगी को सही माना था. इस पर सैमुअल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली.
सुप्रीम कोेर्ट में क्या-क्या हुआ?मामले की सुनवाई CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने की. सैमुअल कमलेसन की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने कोर्ट को बताया,
अधिकारी को सिर्फ इसलिए निकाला गया था, क्योंकि उन्होंने अपनी पोस्टिंग की जगह पर स्थित एक मंदिर के सबसे अंदर वाले पवित्र जगह में जाने से मना कर दिया था. वह उस जगह पर जाने को तैयार थे, जहां सभी धर्मों के लिए पूजा का स्थान होता है.
इस पर CJI सूर्यकांत ने कहा कि क्या एक डिसिप्लिन्ड फ़ोर्स में इस तरह का झगड़ालू व्यवहार जायज है. इस पर अधिकारी के एडवोकेट ने कहा,
जिस जगह पर उनकी पोस्टिंग हुई थी, वहां पर कोई 'सर्वधर्म स्थल' नहीं था. वहां केवल एक गुरुद्वारा और एक मंदिर था. अधिकारी मंदिर के बाहर खड़े थे, क्योंकि वह 'एक ईश्वर वाले धर्म' पर यकीन रखते हैं, ऐसे में मंदिर की पवित्र जगह पर जाना उनके ईसाई धर्म के खिलाफ होता. वह झगड़ालू आदमी नहीं हैं, बल्कि एक अनुशासित व्यक्ति हैं.
जवाब में CJI सूर्यकांत ने कहा कि वह किस तरह का मैसेज दे रहे हैं. उन्हें सिर्फ इसी बात के लिए निकाल देना चाहिए था. यह एक आर्मी अधिकारी की सबसे बड़ी अनुशासनहीनता है. इस पर एडवोकेट गोपाल ने संविधान के आर्टिकल 25 का हवाला दिया, जिसमें हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की आजादी है. उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति सेना में शामिल होता है, इसका मतलब यह नहीं कि वह आर्टिकल 25 का अपना मौलिक अधिकार खो देगा.
इस पर जस्टिस बागची ने एक पादरी (ईसाई धर्मगुरू) के बयान का हवाला देते हुए कहा कि पवित्र जगह में जाने से ईसाई धर्म के नियमों का उल्लंघन नहीं होता. इसके जवाब में अधिकारी के एडवोकेट ने कहा कि पादरी ने सभी धर्मों वाली जगह को लेकर ऐसा कहा था, मंदिर को लेकर नहीं. इस पर CJI ने कहा,
अधिकारी को लगाई फटकारउस जगह पर एक गुरुद्वारा भी था, क्योंकि रेजिमेंट में सिख सैनिक थे. गुरुद्वारा सबसे सेक्युलर जगहों में से एक है. जिस तरह से वह व्यवहार कर रहे हैं, क्या वह दूसरे धर्मों का अपमान नहीं कर रहे हैं? धार्मिक अहंकार इतना ज़्यादा है कि उन्हें दूसरों की परवाह नहीं है. उन्हें कोई धार्मिक रस्म निभाने की जरूरत नहीं थी.
इस पर एडवोकेट ने कहा कि वह उस टुकड़ी के लीडर थे, ऐसे में उन्हें रस्मों को भी लीड करना होता. उन्होंने कहा कि अधिकारी पवित्र जगह पर जाने को तैयार थे, लेकिन उन्होंने किसी भी रस्म को करने से इनकार कर दिया था. एडवोकेट के मुताबिक अधिकारी के एक सीनियर ने इसे मुद्दा बनाया, उनके साथ जबरदस्ती की और बार-बार उन्हें मंदिर के अंदर जाने के लिए कहा. एडवोकेट ने तर्क दिया कि धार्मिक रस्मों के लिए अधिकारी से जबरदस्ती नहीं की जा सकती. उन्हें किसी देवता की पूजा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. संविधान इसकी आजादी देता है. जवाब में CJI ने कहा कि अधिकारी ने सभी धर्मों वाली जगह पर घुसने से भी इनकार कर दिया था. वहीं जस्टिस बागची ने कहा,
आर्टिकल 25 जरूरी धार्मिक बातों के लिए सुरक्षा देता है, हर धार्मिक भावना के लिए नहीं. आपको ज्यादातर लोगों की सामूहिक आस्था का सम्मान करना होगा. ईसाई धर्म में मंदिर या किसी दूसरी धार्मिक जगह में घुसने पर रोक कहां है. जब कोई पादरी आपको सलाह देता है, तो आप उसे वहीं छोड़ देते हैं. आप अपनी पर्सनल समझ नहीं रख सकते कि आपका धर्म क्या इजाज़त देता है. वह भी यूनिफॉर्म में.
वहीं CJI सूर्यकांत ने आगे कहा कि लीडर को मिसाल बनकर लीड करना होता है. आप अपने सैनिकों की बेइज्ज़ती कर रहे हैं. बेंच ने अधिकारी के व्यवहार पर नाराजगी जाहिर कि. इस पर उनके वकील ने उनकी सजा को कम करने का अनुरोध किया और कहा कि उनकी सर्विस बेदाग रही है, लेकिन कोर्ट ने इससे भी मना कर दिया. CJI ने कहा,
आप 100 चीजों में बहुत अच्छे हो सकते हैं, लेकिन भारतीय सेना अपने धर्मनिरपेक्ष नजरिए के लिए जानी जाती है. जब आप वहां डिसिप्लिन बनाए नहीं रख सकते, तो आप अपने ही सैनिकों की भावनाओं का सम्मान करने में नाकाम रहे हैं.
अंत में बेंच ने बर्खास्तगी को जारी रखने का आदेश दिया. इस पर वकील ने कहा कि इससे गलत संदेश जाएगा. जवाब में CJI ने कहा कि इससे कड़ा संदेश जाएगा. बताते चलें कि सैमुअल कमलेसन को मार्च 2017 में इंडियन आर्मी की तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन किया गया था. इसमें सिख, जाट और राजपूत जवानों के 3 स्क्वाड्रन शामिल हैं. सैमुअल को स्क्वाड्रन B का ट्रूप लीडर बनाया गया था, जिसमें सिख जवान थे.
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हाई कोर्ट से भी नहीं मिली थी राहतलाइव लॉ के अनुसार कमलेसन ने कोर्ट को बताया था कि उनके रेजिमेंट में धार्मिक जरूरतों और परेड के लिए सिर्फ एक मंदिर और एक गुरुद्वारा था, न कि कोई सर्व धर्म स्थल. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि उस जगह पर कोई चर्च नहीं था. वह अपने सैनिकों के साथ हर हफ़्ते होने वाली धार्मिक परेड और त्योहारों के लिए मंदिर और गुरुद्वारा जाते थे, लेकिन जब पूजा या हवन या आरती वगैरह हो रही होती थी, तो उन्होंने मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से या पवित्र जगह में जाने से छूट मांगी थी.
वहीं सेना के अधिकारियों का तर्क था कि कमलेसन को कई बार कमांडेंट और अन्य अधिकारियों ने रेजिमेंट का महत्व समझाने की कोशिश की थी, इसके बावजूद वह इसकी परेड में शामिल नहीं हुए थे. कहा गया कि उन्हें कई बार सेना के अनुशासन और तौर-तरीकों के बारे में समझाने की कोशिश की गई, लेकिन उनके व्यवहार में बदलाव नहीं हुआ. हाई कोर्ट ने भी कमलेसन की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि अधिकारी ने अपने धर्म को अपने सीनियर के कानूनी आदेश से ऊपर रखा, जो साफ तौर पर अनुशासनहीनता थी. कोर्ट ने कहा था कि एक आम नागरिक को यह थोड़ा कठोर और दूर की कौड़ी लग सकता है, लेकिन सेना के लिए जरूरी अनुशासन का स्टैंडर्ड अलग है.
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