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“न गवर्नर, न राष्ट्रपति…किसी को डेडलाइन नहीं दे सकता कोर्ट”, सुप्रीम कोर्ट ने पलटी 3 महीने वाली सीमा

CJI BR Gavai की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने साफ किया कि गवर्नर और राष्ट्रपति द्वारा बिलों पर लिए जाने वाले फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. न्यायिक समीक्षा तभी संभव है जब बिल कानून बन जाए.

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Supreme Court 5 Judges Bench On 3 Month Timeline For Governor
सर्वोच्च न्यायालय. (फाइल फोटो)
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रिदम कुमार
20 नवंबर 2025 (Updated: 20 नवंबर 2025, 02:27 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 20 नवंबर को गवर्नर द्वारा राज्य के बिलों को रोकने और उनकी डेडलाइन तय करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने दो जजों द्वारा तीन महीने की डेडलाइन तय करने वाले फैसले को पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि अदालत राष्ट्रपति या गवर्नर को बिलों पर हस्ताक्षर करने के लिए कोई तय समय सीमा नहीं दे सकती. 

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने इसे संविधान की भावना और ‘सेपरेशन ऑफ पावर’ के सिद्धांत खिलाफ बताया. कोर्ट ने यह भी माना कि वह खुद इस पर फैसला नहीं ले सकती क्योंकि संविधान में गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए किसी तय समय सीमा का प्रावधान नहीं है. ऐसा करना न्यायपालिका द्वारा उनकी शक्तियों को “छीनना” जैसा होगा.

कोर्ट ने बताए विकल्प

सुप्रीम कोर्ट ने डिम्ड असेंट यानी तय समय बीतने पर बिल को मंजूर माने जाने को भी गलत बताया. कोर्ट ने आर्टिकल 200 और 201 का जिक्र करते हुए कहा कि राज्यपाल के पास सिर्फ तीन ही विकल्प हैं. 
- पहलाः बिल को मंजूरी देना
- दूसराः बिलों को दोबारा विचार के लिए भेजना 
- तीसराः राष्ट्रपति के पास भेजना

संवाद पर जोर

कोर्ट ने टिप्पणी की कि भारतीय संघवाद की किसी भी परिभाषा में यह स्वीकार्य नहीं होगा कि राज्यपाल किसी बिल को बिना सदन को वापस भेजे अनिश्चितकाल तक रोके रखें. साथ ही कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को टकराव या बाधा पैदा करने के बजाय संवाद और सहयोग की भावना को अपनाना चाहिए.

कोर्ट में चुनौती कब

अदालत ने यह भी कहा कि गवर्नर और राष्ट्रपति द्वारा बिलों पर लिए जाने वाले फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. न्यायिक समीक्षा तभी संभव है जब बिल कानून बन जाए. कोर्ट ने कहा कि अगर गवर्नर बेहद लंबी और बिना वजह देरी करें तो कोर्ट सीमित दखल देकर सिर्फ इतना कह सकता है कि वे जल्द से जल्द फैसला लें. 

SC ने पहले क्या कहा था

इससे पहले जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने 8 अप्रैल को इस मामले पर फैसला सुनाया था. तब कोर्ट ने गवर्नर या राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले विधेयकों को लटकाने से बचाने के लिए डेडलाइन तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर बिलों को या तो मंजूर करना होगा या वापस लौटाना होगा. 

यह भी पढ़ेंः 'भेजे गए बिलों पर 3 महीने में लें फैसला... ' सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति के लिए तय की समय-सीमा

साथ ही यह भी कहा था कि अगर तीन महीने से ज्यादा बिलों को लटकाया जाता है तो राज्यों को सूचित करना होगा और देरी की वजह बतानी होगी. यह पहली बार था जब सर्वोच्च अदालत ने बिलों के लेकर कोई समय सीमा तय की थी. लेकिन गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे पलट दिया.

वीडियो: राष्ट्रपति के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राष्ट्रपति सलाह मांगने का अधिकार रखती हैं

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