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'भेजे गए बिलों पर 3 महीने में लें फैसला... ' सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति के लिए तय की समय-सीमा

Supreme Court ने कहा है कि राष्ट्रपति को विचार करने के लिए भेजे गए बिलों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए. ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के लिए एक स्पष्ट समय-सीमा तय की है.

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Supreme Court has set a deadline The bills sent to the President should be decided within three months
सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों से जुड़े मामले में एक अहम फैसला सुनाया है (फोटो: आजतक)
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अर्पित कटियार
12 अप्रैल 2025 (Updated: 12 अप्रैल 2025, 11:28 AM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों से जुड़े मामले में एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रपति को विचार करने के लिए भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए. ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के लिए एक स्पष्ट समय-सीमा तय की है. यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले के लिए कोई समय-सीमा तय नही की गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल का अपना फैसला सार्वजनिक करते हुए कहा कि इस अवधि (तीन महीने) से आगे किसी भी देरी के मामले में संबंधित राज्य को सूचित करना होगा और देरी की वजह बतानी होगी. कोर्ट का ये फैसला उस वक्त आया जब तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने की कार्रवाई को "गैरकानूनी और त्रुटिपूर्ण" बताया.

इस दौरान कोर्ट ने सरकारिया कमीशन और पुंछी कमीशन का भी जिक्र किया, जिसमें सिफारिश की गई थी कि अनुच्छेद 201 के तहत मामलों को निपटाने के लिए एक निश्चित समयसीमा अपनाई जानी चाहिए. वहीं, पुंछी आयोग ने भी अनुच्छेद 201 में समयसीमा निर्धारित करने का सुझाव दिया था.

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पीठ की तरफ से लिखते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत जब राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक को विचार करने के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है, तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं, मंजूरी देना या मंजूरी न देना. पीठ ने आगे कहा,

“अनुच्छेद 201 की एक विशेषता जो कई सालों से केंद्र और राज्य के बीच मतभेद की वजह रही है, वह है समय-सीमा की कमी. जिसके भीतर राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विधेयक को विचार के लिए सुरक्षित रखे जाने के बाद उसे मंजूरी देने या न देने का एलान करना होता है.”

पीठ ने कहा कि अगर राज्यपाल, राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक भेजते हैं और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकार के लिए कोर्ट के समक्ष जाकर कार्रवाई का विरोध करने का रास्ता खुला होगा.

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