कर्मचारी को हुआ कैंसर, कंपनी ने 2 महीने इलाज कराया, जब काम करने लायक हुए तो नौकरी छीन ली
संतोष पटोले के मुताबिक जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो डॉक्टरों ने उन्हें सर्टिफिकेट देकर काम पर लौटने की अनुमति दे दी. लेकिन उनकी कंपनी ने उन्हें 'एक जवाब' देकर बाहर कर दिया.

महाराष्ट्र के पुणे में एक शख्स को कथित तौर पर कैंसर होने के कारण नौकरी से निकाल दिया गया. शख्स ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने दो महीने उसका इलाज कराया, लेकिन तीसरे महीने टर्मिनेशन लेटर यानी नौकरी से निकालने का आदेश थमा दिया. शख्स का कहना है कि कंपनी ने उस पर गलत आरोप लगाकर नौकरी से निकाल दिया.
आजतक से जुड़े आदित्य दीपक भंवर की रिपोर्ट के अनुसार कंपनी का नाम SLB मल्टीनेशनल है. यह एक आईटी कंपनी है, जो कि पुणे के येरवडा क्षेत्र में स्थित है. यहां संतोष पटोले नाम के कर्मचारी काम करते थे. आईटी सेक्टर में उन्हें 21 साल का अनुभव है. संतोष ने बताया कि इस साल अप्रैल में उन्हें कंपनी के एनुअल हेल्थ चेकअप में थायरॉयड नोड्यूल इस्थमस कैंसर होने का पता चला था.
अचानक नौकरी से निकालारिपोर्ट आने पर उन्होंने तुरंत अपना इलाज शुरू कराया. इसके लिए मई और जून की मेडिकल लीव ली. उन्होंने कहा कि जून तक कंपनी ने उनके इलाज का खर्चा उठाया. जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो डॉक्टरों ने 1 जुलाई को उन्हें सर्टिफिकेट देकर काम पर लौटने की अनुमति भी दे दी. संतोष के मुताबिक जुलाई में वह काम पर आने की तैयारी कर ही रहे थे कि 23 जुलाई को कंपनी ने अचानक उन्हें टर्मिनेट करने का लेटर थमा दिया. इससे अचानक उनका रोजगार छिन गया और खर्चों के साथ महंगे इलाज की जिम्मेदारी भी उन पर आ गई.
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संतोष के अनुसार कंपनी ने उन्हें यह कहकर नौकरी से निकाला कि एक प्रोजेक्ट पर उनके फैसले से कंपनी को ढाई से तीन करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. हालांकि संतोष ने इस आरोप को पूरी तरह से झूठ बताया है. उन्होंने कहा कि जिस प्रोजेक्ट की कंपनी बात कर रही है, वह अभी तक अमल में ही नहीं लाया गया है, फिर नुकसान कैसे हो सकता है. उन्होंने कहा कि कंपनी ने उनके किसी भी तर्क को सुनने से इनकार कर दिया और बीमारी के बीच में ही नौकरी से निकाल दिया. इससे उनके लिए इलाज कराना भी कठिन हो गया है. उन्होंने कहा है कि उन पर मानसिक और आर्थिक दबाव दोनों बढ़ गया है.
वहीं इस पूरे मामले पर कंपनी के मैनेजमेंट से जब प्रतिक्रिया मांगी गई तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया. बहरहाल इस मामले ने एक बार फिर से कर्मचारियों के अधिकार और उनकी सुरक्षा को लेकर बहस छेड़ दी है.
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