कबूतरों को दाना चुगाते हैं तो ये खबर पढ़ लीजिए, बड़ा खतरा देख इन सरकारों ने बैन लगाया
कबूतरों की तादाद कंट्रोल नहीं हो रही है. उनकी बीट से बीमारियां फैल रही हैं. डॉक्टरों ने इसके खतरे बताए हैं. जिसके बाद कई राज्य सरकारों ने बैन तक लगा दिया है.

सुबह-सुबह किसी चौक पर अनाज बिखेरो, कबूतरों का झुंड आ जाता है, मन खुश हो जाता है ना? पुण्य कमाने का बढ़िया तरीका लगता है. लेकिन अब ये पुरानी आदत शहरों के लिए बड़ा सिरदर्द बन गई है. कबूतरों की तादाद कंट्रोल नहीं हो रही है. उनकी बीट से फेफड़े की बीमारियां फैल रही हैं. नतीजा? महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सार्वजनिक जगहों पर कबूतरों को दाना खिलाने पर बैन लग गया है. और ये ट्रेंड अब और शहरों में आने वाला है.
कबूतरों की बढ़ती आबादी और उनकी बीट से होने वाली बीमारियों के कारण कई राज्यों में इस पर प्रतिबंध लग रहे हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक में ये मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चा में है. कर्नाटक में हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना खिलाने पर पूरी तरह रोक लगा दी है. विभाग का कहना है कि जहां कबूतरों से लोगों को असुविधा या स्वास्थ्य खतरा हो, वहां ये गतिविधि पूरी तरह प्रतिबंधित है.
बेंगलुरु जैसे घने शहरों में अनाज खिलाने से कबूतरों की संख्या अनियंत्रित हो जाती है. जिससे फुटपाथ, बेंच और मूर्तियों पर बीट जमा हो जाती है. उल्लंघन करने वालों को मौके पर चेतावनी, जुर्माना या भारतीय न्याय संहिता के तहत मुकदमा तक झेलना पड़ सकता है. हालांकि, NGOs द्वारा नियंत्रित कुछ निर्धारित जोन बनाए जा सकते हैं, लेकिन खुले में खिलाना पूरी तरह बंद है.
महाराष्ट्र में ये विवाद और भी तीखा है. मुंबई में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के खतरे के कारण कबूतरों को दाना खिलाने पर बैन लगाने की बात थी. इसके चलते 50 से ज्यादा कबूतरखाने बंद कर दिए गए. दादर जैसे इलाकों में तिरपाल लगाकर जगहें कवर की गईं, लेकिन विरोध में लोग इन्हें फाड़ रहे हैं. जैन समुदाय के लोग इसे अहिंसा और पुण्य से जोड़कर विरोध कर रहे हैं, यहां तक कि भूख हड़ताल की धमकी दी जा रही है. पुणे और ठाणे में भी स्थानीय निकायों ने जुर्माना लगाना शुरू कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि ये जन स्वास्थ्य के व्यापक हित में है.
दिल्ली में भी बैन लग सकता हैदिल्ली में भी MCD ने 2024-25 में बैन पर विचार किया, लेकिन अभी लागू नहीं हुआ. कई सोसाइटीज ने बॉम्बे हाई कोर्ट का हवाला देकर याचिकाएं दी हैं. विरोध करने वाले कहते हैं कि ये परंपरा अहिंसा का प्रतीक है और बैन से कबूतर भूखे मर जाएंगे. वहीं, पशुओं के अधिकार के लिए काम करने वाले नियंत्रित जोन बनाने की मांग कर रहे हैं.
डॉक्टर क्या कहते हैं?डॉक्टरों के अनुसार, कबूतरों की बीट और पंखों से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी हेड डॉक्टर विवेक नांगिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया,
"कबूतरों की बीट और पंख से एलर्जी से लेकर गंभीर फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं. लंबे समय तक संपर्क में रहने से हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस यानी 'पिजन फैंसियर लंग' हो सकता है."
सूखी बीट हवा में उड़कर सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंच जाती है, जिससे अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस बढ़ जाता है. इसमें हिस्टोप्लाज्मा और क्रिप्टोकोकस जैसे फंगस पनपते हैं, जो संक्रमण फैलाते हैं. बच्चे, बुजुर्ग और पहले से फेफड़ों की बीमारी वाले लोग सबसे ज्यादा जोखिम में हैं. इसके अलावा, बीट इमारतों को खराब करती है और सफाई का खर्च बढ़ाती है. दाना खिलाने से कबूतरों की आबादी प्राकृतिक सीमा से ज्यादा हो जाती है, जो अन्य पक्षियों जैसे गौरैया को नुकसान पहुंचाती है.
तो क्या करें?ज्यादा दाना मत खिलाइए. आसपास सफाई रखिए. मास्क पहनिए. अगर ज्यादा बीट वाली जगह पर जाना हो तो और सतर्क रहिए. शहरों में प्रदूषण पहले से कमर तोड़ रहा है, ऊपर से ये कबूतर वाली आफत. हमें संतुलन चाहिए. न कबूतर मरें, न इंसान के फेफड़े खराब हों.
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