दरगाह के पास दीप जलाने का फैसला देने वाले जज ने अब गृह मंत्रालय का ही फैसला रद्द कर दिया
मामला अर्श विद्या परंपरा नाम के एक ट्रस्ट से जुड़ा है. साल 2017 में स्थापित अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट वेदांत और संस्कृत भी सिखाता है. साथ ही प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने का काम भी करता है.
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मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन फिर चर्चा में हैं. उन्होंने एक ट्रस्ट के FCRA रजिस्ट्रेशन के आवेदन को खारिज करने का फैसला रद्द कर दिया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ये आवेदन खारिज किया था. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन ने भगवद्गीता को लेकर भी टिप्पणी की. कहा कि ये सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि 'मोरल साइंस' भी है.
मामला अर्श विद्या परंपरा नाम के एक ट्रस्ट से जुड़ा है. साल 2017 में स्थापित अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट वेदांत और संस्कृत भी सिखाता है. साथ ही प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने का काम भी करता है.
ट्रस्ट को फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) के तहत मंजूरी चाहिए थी. लेकिन गृह मंत्रालय ने उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि ये एक धार्मिक ट्रस्ट जैसा लगता है. मंत्रालय ने इसकी वजह ये बताई कि ट्रस्ट गीता पढ़ाता और योग सिखाता है.
ट्रस्ट ने साल 2021 में FCRA रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था. लेकिन उनका रिक्वेस्ट सालों तक पेंडिग रहा. साल 2024 और 2025 में गृह मंत्रालय की ओर से ट्रस्ट से स्पष्टीकरण की मांग की गई. इसके बाद जनवरी 2025 में ट्रस्ट की ओर से एक नया आवेदन भेजा गया, जिसे सितंबर 2025 में खारिज कर दिया गया.
गृह मंत्रालय ने आवेदन खारिज करने के पीछे तर्क दिया कि ट्रस्ट का फोकस भगवद्गीता, उपनिषद, वेदांत और संस्कृत पढ़ाने पर है. इसलिए यह एक धार्मिक संगठन है.
अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ पहुंच गया मद्रास हाई कोर्ट. मामला सुनवाई के लिए जस्टिस स्वामीनाथन की बेंच के समक्ष आया. उन्होंने केंद्रीय मंत्रालय के फैसले को सीधा खारिज कर दिया. कहा कि ट्रस्ट का FCRA आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि वो गीता और योग सिखाता है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि रिजेक्शन ऑर्डर में तर्कों की कमी है. इसमें सही तरीके से प्रक्रिया को भी फॉलो नहीं किया गया है. जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने मंत्रालय को वेदांत शिक्षा पर फोकस करने वाले इस चैरिटेबल ट्रस्ट के आवेदन पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया.
रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने भगवद्गीता और उसकी शिक्षाओं की प्रकृति के बारे में पिछली न्यायिक टिप्पणियों का रेफरेंस लिया. कोर्ट ने कहा,
भगवद्गीता कोई धार्मिक किताब नहीं है. बल्कि यह मोरल साइंस है. इसलिए भगवद गीता को किसी एक धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता. यह भारतीय सभ्यता का एक हिस्सा है.
कोर्ट ने गृह मंत्रालय के इस तर्क को भी खारिज कर दिया की वेदांत, संस्कृत और योग सिखाने से कोई ट्रस्ट एक धार्मिक संस्था बन जाता है. बेंच ने कहा कि वेदांत एक दार्शनिक प्रणाली है और योग कल्याण के लिए एक सार्वभौमिक अभ्यास है. केवल ऐसी शिक्षाएं देने से कोई संगठन धार्मिक नहीं बन जाता.
FCRA की धारा 11 के तहत इस ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगाई गई थी. यह धारा निर्धारित करती है कि कोई भी व्यक्ति या संगठन जो सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक या सामाजिक उद्देश्य के लिए काम करता है, भारत के बाहर से विदेशी पैसा तभी स्वीकार कर सकता है. इसके लिए उस संगठन को केंद्र सरकार से FCRA सर्टिफिकेट लेना होगा.
महाभियोग की मांग उठी थी
बता दें कि जस्टिस जीआर स्वामीनाथन वही जज हैं जिन्होंने तमिलनाडु की थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर दरगाह के पास दीप जलाने का आदेश दिया था. उनके इस फैसले के बाद लोकसभा के कई सांसदों ने जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ना को ज्ञापन सौंपा था. इन सांसदों का आरोप था कि जस्टिस स्वामीनाथन दक्षिणपंथी झुकाव रखते हैं और उनके फैसले इससे प्रभावित रहे हैं.
थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी का पूरा विवाद क्या है, ये जानने के लिए आप हमारी ये रिपोर्ट पढ़ सकते हैं.
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