एक दरगाह के पास दीप जला, हिंदू-मुस्लिम, सरकार-संसद और जजों में खलबली मच गई
तमिलनाडु की एक पहाड़ी पर दीप जलाने को लेकर विवाद ने माहौल गर्मा दिया है. विवाद के केंद्र में एक दरगाह और उसके पास में स्थित एक स्तंभ है, जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि पहले इस स्तंभ पर दीप जलाए जाते थे.
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अगले साल यानी 2026 में भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसका अंदाजा चुनाव आयोग की कवायद से लगता तो सामान्य बात थी. लेकिन, अगले साल चुनाव है, इसका पता दे रहा है राज्य की सियासत का एक गर्मागर्म मुद्दा. ‘एक बार फिर’ ऐसा मुद्दा, जिसके विवाद की जड़ें आपको सैकड़ों साल पीछे ले जाती हैं. मुद्दा धार्मिक है. हिंदू-मुस्लिम का एंगल है. दरगाह बनाम मंदिर की कार्यवाही कोर्ट में है. इस बार पार्टियों के साथ जज भी राजनीति के लपेटे में हैं और विवाद में प्रदेश की कार्यपालिका और न्यायपालिका सीधे-सीधे आमने-सामने है.
भाजपा ने सत्ताधारी डीएमके पर ‘हिंदुओं के पूजा के अधिकार को काटने’ का आरोप लगाया है. वहीं डीएमके का कहना है कि निजी लाभ के लिए जानबूझकर एक शांत हो चुके विवाद को भड़काया जा रहा है. आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि इस मामले में उन्हें कूदने की जरूरत नहीं है. कोर्ट और स्थानीय लोग इसे सुलझा लेंगे. लेकिन, उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि इसका फैसला तो हिंदुओं के पक्ष में ही आना चाहिए.
ये सब भूमिका पढ़ने के बाद आपको चुनावी कनेक्शन वाले देश के कई मंदिर-मस्जिद विवाद याद आ गए होंगे. इस बार वाले में क्या है?
इस बार वाले विवाद का नाम है- थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर दीप जलाने का झगड़ा. एक ऐसा विवाद, जिस पर फैसला देने वाले जज पर महाभियोग लाने के लिए 107 सांसदों ने स्पीकर को एप्लीकेशन दी है. जज ने आखिर ऐसा क्या फैसला दे दिया था? थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का विवाद है क्या? हिंदू और मुस्लिम पक्षों में किस बात पर तकरार हो रही है? विवाद का केंद्र बने उस स्तंभ की क्या महत्ता है, जिसे दरगाह अपने इलाके में बता रहा है और मंदिर वाले कह रहे हैं, सदियों पहले इस पर दीप जलाया जाता था? सब विस्तार से जानते हैं.
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का धार्मिक महत्वतमिलनाडु के मदुरै से 10 किमी की दूरी पर चादर ओढ़े लेटे किसी विशालकाय मनुष्य की तरह दिखने वाली एक पहाड़ी है. इसका नाम है थिरुप्परनकुंद्रम. हिंदू धर्म में विजय और युद्ध के देवता माने जाने वाले मुरुगन के 6 पवित्र आवास बताए गए हैं. उनमें से एक थिरुप्परनकुंद्रम भी है. पहाड़ी की तलहटी में एक भव्य मंदिर भी है, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.

इसी पहाड़ी के ऊपर एक दरगाह है जो 17वीं शताब्दी की बताई जाती है. नाम है सिकंदर बादुशा दरगाह. दरगाह के पास एक स्तंभ है, जहां कुछ लोगों का दावा है कि सदियों पहले इसी स्तंभ पर कार्तिगई दीपम त्योहार के मौके पर दीप जलाया जाता था.
कार्तिगई दीपम त्योहारकार्तिगई दीपम तमिलनाडु का वही त्योहार है, जैसा उत्तर भारत में दीपावली है. लेकिन इसे कार्तिगई की पूर्णिमा को मनाया जाता है. कार्तिगई महीना हिंदी के अगहन यानी मार्गशीर्ष महीने के आसपास होता है. अंग्रेजी कैलेंडर में नवंबर-दिसंबर चल रहा होता है. यह त्योहार भगवान मुरुगन के नाम से विख्यात भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. इसी कार्तिगई दीपम त्योहार पर परंपरा है कि उचीपिल्लैयार मंदिर पर दीप प्रज्ज्वलन किया जाता है. लेकिन इस बार राज्य के कुछ हिंदू संगठनों ने दावा किया कि दीप जलाने की यह परंपरा मूल रूप से पहाड़ी पर मौजूद एक स्तंभ पर थी, जो सिकंदर बादुशा नाम के दरगाह के पास मौजूद है. लेकिन, राज्य सरकार का कहना है कि इस स्तंभ पर दीप जलाने की परंपरा का कोई ठोस सबूत नहीं है.

पहाड़ी को लेकर यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ, जब इस साल फरवरी (2025) में कुछ मुस्लिम संगठनों ने मांग की कि थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का नाम बदलकर सिकंदर मलाई कर दिया जाए. इस मांग का सिलसिला भी एक साल पहले शुरू होता है, जिसके बारे में तमिलनाडु के एक पत्रकार प्रशांत शनमुगसुंदरम की ‘द वायर’ में छपी रिपोर्ट में बताया गया है. इसके मुताबिक, दिसंबर 2024 में राजपालयम के रहने वाले अबु ताहिर ने मन्नत पूरी होने पर पहाड़ी पर जाकर बकरियों और मुर्गियों की बलि देने की इजाजत मांगी थी. लेकिन पुलिस ने ऐसा करने से यह कहते हुए रोक दिया कि पहाड़ी पर पशु बलि देना जायज नहीं है.

इसके कुछ दिन बाद पहाड़ी की सीढ़ियों पर कथित तौर पर कुछ लोगों की मांस खाते तस्वीर सामने आ गई. हिंदू पक्ष के लोगों ने इसका कड़ा विरोध जताया और आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष और रामनाथपुरम से लोकसभा सांसद नवाज कानी इस ‘मांसभोज’ के सूत्रधार थे.
कानूनी लड़ाई का दौरइसके बाद शुरू हुआ, कानूनी झगड़ों का दौर. हिंदू मक्कल काची, हिंदू मुन्नानी समेत कुछ और हिंदुत्ववादी संगठनों ने कोर्ट में याचिका देकर पहाड़ी पर पशुबलि प्रतिबंधित करने की मांग की. साथ ही दरगाह के पास के कुछ खास हिस्सों में नमाज बैन करने की भी मांग की गई. इधर मुस्लिम पक्ष से अपील दाखिल की गई कि पहाड़ी को सिकंदर मलाई नाम दे दिया जाए. विरोध में हिंदू पक्ष से याचिका पड़ी कि इसका नाम कंधार मलाई या थिरुप्परनकुंद्रम मलाई रखा जाए. या फिर इसकी जैन विरासत के कारण इसे समनार मलाई भी कहा जा सकता है. इन तीनों में ‘मलाई’ का मतलब पहाड़ी होता है. सिकंदर अरबी मूल का शब्द है, जो इस्लामिक संकेत करता है. कंधार भगवान मुरुगन का ही एक नाम है. ‘समनार’ जैन को कहा जाता है.
हालांकि, इस साल जून (2025) में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पहाड़ी को थिरुपरनकुंद्रम मलाई के नाम से ही जाना जाएगा. साथ ही बिना दीवानी कोर्ट की इजाजत के पहाड़ी पर पशुबलि पर भी रोक लगा दी.
लेकिन इसने विवाद की जो चिंगारी जलाई थी, वो शांत नहीं हुई. रामा रविकुमार नाम के हिंदुत्ववादी नेता ने मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में याचिका दायर कर दावा किया कि दरगाह के पास एक स्तंभ 'दीपथून' है. ये वो जगह है, जहां सदियों पहले कार्तिगई दीपम पर्व पर दीपक जलाने की परंपरा थी. फिलहाल, दीप जलाने का ये काम एक दूसरी जगह किया जाता है, जिसे उचपिल्लैयार मंदिर कहा जाता है.
रविकुमार की इस याचिका पर 1 दिसंबर को फैसला देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने आदेश दिया कि तमिल परंपरा के हिसाब से मंदिर प्रशासन दीपथून पर ही दीपक जलाए. न कि उचपिल्लैयार मंदिर के ‘मंडपम’ में, जहां अभी तक दीपक जलाया जाता था. प्रदेश की डीएमके सरकार ने कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया और सांप्रदायिक तनाव का हवाला देते हुए दरगाह के पास दीपथून स्तंभ पर दीपक जलाने पर रोक लगा दी.
बीती 3 दिसंबर की शाम 6 बजे जब कार्तिगई दीपम का दीपक जला तो पिल्लैयार मंदिर में ही जला, दीपथून पर नहीं. इसका हिंदुत्ववादी संगठनों ने विरोध किया. कुछ लोगों ने जबरन पहाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की. नतीजतन पुलिस वालों से झड़प हुई और कुछ लोग घायल हुए.

हिंदुत्ववादी संगठनों ने राज्य सरकार के इस कदम के खिलाफ फिर कोर्ट में शिकायत की. जस्टिस स्वामीनाथन ने इस बार सख्त रुख दिखाते हुए कोर्ट कैंपस की सुरक्षा में लगे सीआईएसएफ कर्मियों के साथ 10 लोगों को प्रतीकात्मक रूप से दीपथून पर दीपक जलाने का आदेश दे दिया. साथ ही मंदिर के कार्यकारी अधिकारी और मदुरै पुलिस आयुक्त को 4 दिसंबर को कोर्ट में पेश होने का नोटिस जारी कर दिया.
हालांकि, दीपथून पर दीप जलाने की ये युक्ति भी काम नहीं आई. राज्य सरकार ने धारा 144 लगाकर दीपथून पर दीपक जलाने से रोक दिया.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केसबार एंड बेंच के अनुसार, 4 दिसंबर को तमिलनाडु सरकार ने थिरुप्परनकुंद्रम हिल्स पर दीप जलाने की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी. अब ये मामला कोर्ट में है. लेकिन विवाद की आंच प्रदेश की सियासत में साफ महसूस की जा रही है.
क्या कह रही है तमिलनाडु सरकार?
तमिलनाडु सरकार का इस पर कहना है कि इस इलाके में पिछले कई दशकों से, यानी 1920 से ही शांति बनी हुई है. 1994 में हिंदू भक्तजन सभा ने एक याचिका लगाई थी कि पहाड़ी की चोटी पर दीप जलाने की अनुमति दी जाए, ताकि सभी भक्तों को फायदा हो, जैसा कि तिरुवन्नामलाई में कार्तिगई दीपम पर होता है. लेकिन उस याचिका में दीपथून का नाम साफ-साफ नहीं लिखा था. डीएमके सरकार ने 2018 की एक डिविजन बेंच का फैसला भी पढ़कर सुनाया, जिसमें अदालत ने दीप जलाने की जगह को दरगाह के पास शिफ्ट करने की इजाजत नहीं दी थी, क्योंकि इससे इलाके की शांति और सौहार्द बिगड़ने का डर था.
सरकार का कहना है कि जस्टिस जीआर स्वामीनाथन को भी शांति बनाए रखने के लिए मौजूदा स्थिति को ही बनाए रखने के पक्ष में रहना चाहिए था. यानी दीप उचपिल्लैयार मंदिर के पास ही जलना चाहिए. सरकार की दलील है कि जिसे हिंदुत्ववादी संगठन दीप जलाने वाला पत्थर का खंभा’ कहते हैं, उसके ऐसा होने का कोई पक्का सबूत नहीं है. ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो बताता हो कि 1920 से पहले कभी दीप इस स्तंभ पर जलता था और बाद में किसी वजह से उसकी जगह बदल दी गई थी.
100 साल पहले भी उठा था विवाद100 साल पहले पहाड़ी के मालिकाना हक को लेकर सवाल कानून के समक्ष उठे थे. साल 1923 में मदुरै की अदालत ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि कुछ खेती की जमीन और दरगाह की जगह को छोड़कर पूरी पहाड़ी मुरुगन मंदिर की है. लेकिन बताया जा रहा है कि जिस दीप स्तंभ पर विवाद हो रहा है, वह दरगाह के हिस्से में आती है.
इस विवाद ने तमिलनाडु में कार्यपालिका यानी सरकार और न्यायपालिका यानी जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के फैसले में संघर्ष छेड़ दिया है. तमिलनाडु के इंडिया ब्लॉक के सांसदों समेत राज्यसभा और लोकसभा के 107 सदस्यों ने 9 दिसंबर 2025 को जीआर स्वामीनाथन पर महाभियोग की मांग करते हुए स्पीकर को एप्लीकेशन दी. इन सांसदों में प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव भी शामिल हैं. एप्लीकेशन में स्वामीनाथन को हटाने के तीन कारण बताए गए हैं.
कहा गया कि,
- जस्टिस स्वामीनाथन का आचरण 'निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्ष कामकाज पर गंभीर सवाल उठाता है.'
- साथ ही वो सीनियर एडवोकेट एम श्रीचरण रंगनाथन और एक खास समुदाय के एडवोकेट्स को फायदा पहुंचाते हैं.
- इसके अलावा जस्टिस स्वामीनाथन एक खास राजनीतिक विचारधारा के आधार पर फैसले देते हैं और इस तरह से फैसले देते हैं जो भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ हैं.
कुल मिलाकर विवाद से जुड़े तार कोर्ट में भी हैं. संसद में भी और आजकल मदुरै की सड़कों पर भी इसकी धमक खूब सुनी जा रही है.
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