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झारखंड के मंत्री बोले, 'संविधान बाद में, पहले शरीयत', BJP ने कहा- 'पाकिस्तान के दरवाजे खुले हैं'

विवाद होने पर हेमंत सोरेन के मंत्री ने अपना रुख बदलते हुए कहा कि संविधान और शरीयत दोनों ही उनके लिए बराबर अहमियत रखते हैं.

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Hafijul Hasan
झारखंड के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन. (ANI)
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सौरभ
14 अप्रैल 2025 (Published: 11:58 PM IST)
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झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन के एक बयान पर विवाद खड़ा हो गया. उन्होंने कहा कि एक ‘मुस्लिम के लिए पहले शरीयत’ है और फिर देश का संविधान. हालांकि, जब इस बयान पर विवाद हुआ तो उन्होंने सफाई दी. उन्होंने अपना रुख बदलते हुए कहा कि संविधान और शरीयत दोनों ही उनके लिए बराबर अहमियत रखते हैं.

 ‘मुस्लिम के लिए पहले शरीयत, फिर संविधान'

झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन एक चैनल से बातचीत कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा,  

"शरीयत हमारे लिए बड़ा है. हम कुरान को सीने में रखते हैं और हाथ में संविधान. इस्लाम में पहले शरीयत को पकड़ा जाता है, फिर संविधान को."

शरीयत या शरिया इस्लामिक कानून है जो मुसलमानों को नैतिक और धार्मिक जीवन के सिद्धांत बताता है. यह अल्लाह के आदेशों का रास्ता माना जाता है और कई मुस्लिम देशों में लागू होता है.

बीजेपी का हमला

यह वीडियो झारखंड बीजेपी ने सोशल मीडिया पर शेयर किया. झारखंड बीजेपी ने हसन के बयान पर हमला करते हुए कहा,

"जिनके सीने में शरीयत है, उनके लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश के दरवाजे खुले हैं. भारत बाबा साहेब के संविधान से ही चलेगा और वही सबसे ऊपर रहेगा."

UP में एनडीए सहयोगी निषाद पार्टी के नेता और यूपी सरकार के मंत्री संजय निषाद की भी इस मामले में प्रतिक्रिया आई. उन्होंने कहा,

"जो शरीयत मानना चाहते हैं, उनके लिए पाकिस्तान बना था. उन्हें वहीं चले जाना चाहिए. सरकार ने मुसलमानों को राशन और रोजगार दिया है. लेकिन जो शरीयत की बात करें, उनके लिए वीजा बनवा देते हैं, पाकिस्तान भेज देते हैं."

विवाद के बाद हसन की सफाई

विवाद बढ़ने के बाद हसन ने अपने बयान पर सफाई भी दी. उन्होंने कहा,

"मैंने कहा था कि शरीयत मेरे सीने में है और बाबा साहेब का संविधान मेरे हाथ में है. दोनों हमारे लिए एक जैसे जरूरी हैं."

उन्होंने आगे कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्ति में भी उन्हें संविधान हाथ में पकड़े दिखाया जाता है. हसन ने कहा कि वो भी गरीब तबके से आते हैं और आंबेडकर ने आरक्षण दिया, जिससे वे भी आगे बढ़ सके.

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