दादा की संपत्ति के लिए पोती ने पिता-बुआ पर केस ठोका, कोर्ट ने कहा- 'कोई हिंदू व्यक्ति अगर...'
एक महिला ने अपने पिता और बुआ के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. लेकिन कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का हवाला देते हुए मामला खारिज कर दिया.

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई भी हिंदू व्यक्ति अपनी पैतृक संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता, अगर उसके माता-पिता ज़िंदा हैं. पैतृक संपत्ति यानी वह संपत्ति होती है जो दादा-दादी से बच्चों को मिलती है. इस मामले में अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 का हवाला दिया है.
कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम में साफ लिखा है कि अगर कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत के मरता है, तो उसकी संपत्ति केवल क्लास-I वारिसों में बंटेगी और बाकी लोग इसमें शामिल नहीं होंगे. क्लास-I वारिसों में बेटे और बेटियां आते हैं, लेकिन पौत्र-पौत्री (grandchildren) तब तक वारिस नहीं होते जब तक उनके माता या पिता जीवित हैं.
दरअसल, एक महिला ने दादा की संपत्ति को लेकर अपने पिता और बुआ के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. उसका कहना था कि यह संपत्ति उसके दादा की थी और इसलिए पैतृक संपत्ति मानी जाएगी, जिसमें उसका भी हिस्सा बनता है. लेकिन पिता और बुआ ने कहा कि दादा की मृत्यु के बाद संपत्ति सिर्फ उन्हें मिली है और बेटी यानी पोती का इसमें कोई हक़ नहीं है.
हाई कोर्ट ने माना कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से पहले, दादा या परदादा से मिली संपत्ति को पैतृक संपत्ति माना जाता था और बेटे का उसमें जन्म से हिस्सा होता था. लेकिन 1956 में कानून बदलने के बाद अब स्थिति अलग है. अब जब किसी व्यक्ति को क्लास-I वारिस के तौर पर संपत्ति मिलती है, तो वह उसकी निजी और पूर्ण संपत्ति हो जाती है. इसे संयुक्त पारिवारिक संपत्ति नहीं माना जा सकता.
लेकिन अदालत ने साफ कहा कि जब दादा की मृत्यु हुई तब पिता जीवित थे, इसलिए संपत्ति सीधे पिता और बुआ को मिली. पिता का हिस्सा उनकी निजी संपत्ति है, उसमें उनकी बेटी का कोई अधिकार नहीं बनता. इसी आधार पर अदालत ने महिला का मुकदमा खारिज कर दिया.
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