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रिवर राफ्टिंग कर रही लड़की का वीडियो वायरल, हाईकोर्ट ने Google, फेसबुक से हटाने का आदेश दिया

Rishikesh River Rafting Video: Delhi High Court ने ट्रैवल कंपनी को आदेश दिया कि लड़की का वीडियो तुरंत हटाया जाए. कोर्ट ने इस मामले में Right To Privacy का हवाला दिया है.

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girl doing river rafting in rishikesh video goes viral high court directs google facebook to remove video
ऋषिकेश में रिवर राफ्टिंग एक प्रमुख आकर्षण है (PHOTO- AajTak)
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मानस राज
22 अप्रैल 2025 (Published: 08:26 AM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने गूगल, फेसबुक और एक्स को रिवर राफ्टिंग (Girl River Rafting Video) कर रही एक महिला का वीडियो तुरंत हटाने का आदेश दिया है. इस वीडियो को महिला की अनुमति के बिना तमाम प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड किया गया था. वीडियो अपलोड होने के बाद महिला को मानसिक उत्पीड़न और ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने इसे महिला की निजता का उल्लंघन मानते हुए आदेश दिया कि वीडियो को न सिर्फ हटाया जाए बल्कि दोबारा अपलोड होने से भी रोका जाए.

क्या है पूरा मामला?

महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में लगाई गई अपनी याचिका में कहा था कि मार्च 2025 में वो छुट्टियां मनाने उत्तराखंड के ऋषिकेश गई थी. इस दौरान उसने एक ट्रैवल एजेंसी के जरिए रिवर राफ्टिंग के लिए बुकिंग की. अगर आप रिवर राफ्टिंग करने जाएं तो आप भी चाहेंगे कि आपके इस एडवेंचर को आप कैमरे में कैद करें. महिला ने भी ऐसा ही किया. राफ्टिंग करने से पहले इंस्ट्रक्टर लोगों को ये भी समझाता है कि कब किस तरह की लहरों में कैसे हाथ चलाना है.

महिला ने इंस्ट्रक्टर से गो-प्रो एक्शन कैमरा में रिकॉर्डिंग की सुविधा ली. यहां महिला का कहना है कि उसने केवल प्राइवेट इस्तेमाल के लिए वीडियो की इजाजत दी थी. लेकिन ट्रैवल एजेंसी ने ये वीडियो बिना महिला की इजाजत के कई प्लेटफॉर्म्स मसलन फेसबुक, एक्स आदि पर अपलोड कर दिया. वीडियो में महिला काफी डरी हुई दिख रही थी जो कि स्वाभाविक था. लेकिन इसको लेकर लोगों ने उसे इंटरनेट पर ट्रोल करना शुरू कर दिया. उसका मजाक उड़ाया गया इसलिए उसे साइबर बुलिंग, ट्रोलिंग और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा.

इसे अपनी निजता का उल्लंघन मानते हुए महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट के जस्टिस सचिन दत्ता ने इस मामले में सुनवाई करते हुए गूगल, फेसबुक और एक्स को आदेश दिया कि महिला के वीडियो को तुरंत हटाया जाए. साथ ही ये सुनिश्चित किया जाए कि वीडियो दोबारा कहीं अपलोड न हो. कोर्ट ने केंद्र सरकार, सोशल मीडिया कंपनियों, राफ्टिंग इंस्ट्रक्टर और ट्रैवल एजेंसी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी. कोर्ट ने सरकार को भी इस मामले में जरूरी कार्रवाई करने को कहा है.

प्राइवेसी पर कानून

भारत में निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से प्राप्त होता है. आसान भाषा में कहें तो, संविधान का अनुच्छेद 21 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा. उदाहरण के लिए अगर किसी को कानूनन जेल की सजा हुई है, तभी उसके स्वतंत्रता के अधिकार को वापस लिया जाएगा. हालांकि संविधान में 'निजता का अधिकार' शब्द का जिक्र नहीं मिलता. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसलों में इस अधिकार को भी अनुच्छेद 21 के ही एक अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी है.

केएस पुट्टास्वामी केस

प्राइवेसी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के इस जजमेंट को मिसाल मानी जाती है. दरअसल, साल 2014 में नरेंद्र मोदी पहली बार पीएम बने. उनकी सरकार आने के बाद हर नागरिक का आधार कार्ड बनवाने पर जोर दिया गया. कहा गया कि हर नागरिक के पास उसकी यूनिक पहचान संख्या होनी चाहिए. 2016 से गांव-गांव में कैंप लगने लगे और लोगों ने आधार कार्ड बनवाया. इसके बाद सरकार ने पैन कार्ड से आधार कार्ड लिंक कराना अनिवार्य कर दिया. फिर कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड होना जरूरी है. 

आधार कार्ड के लिए नागरिकों की बायोमेट्रिक जानकारी यानी उनकी आंखों की पुतलियों की इमेज और फिंगरप्रिंट लिये जाते हैं. सरकार के इस फैसले पर खासा बवाल हुआ. कहा गया कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. नागरिकों की इतनी पर्सनल डिटेल का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज केएस पुट्टास्वामी ने सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया. सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लताड़ दिया. 24 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 

निजता का अधिकार, लोगों का मूलभूत अधिकार है.

बाबा साहेब ने किया था समर्थन

1895 में पहली बार भारत में निजता के अधिकार की वकालत की गई. फिर 1925 में कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया में इसका जिक्र हुआ. मोतीलाल नेहरू ने भी 1928 की रिपोर्ट में निजता पर जोर दिया. 1947 में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने भी निजता की वकालत की. इसके अलावा विश्व स्तर पर भी इसकी वकालत की गयी. यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट, 1948 के अनुच्छेद 12 में भी निजता के अधिकार का जिक्र है.

दुनिया में निजता

वैसे तो निजता के अधिकार का ज़िक्र किसी भी देश के संविधान में प्रत्यक्ष रूप से नहीं है. लेकिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, स्वीडन, जापान, आइसलैंड जैसे देशों ने निजता की वकालत की है. इन देशों में कानून बनाते समय नागरिकों की निजता का ध्यान रखा जाता है. अमेरिका ने तो निजता के हनन पर दंड के नियम भी बनाये हैं. तो अगर आपकी 'निजता के अधिकार' का हनन होता है, तो आप सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का और अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट का दरवाज़ा आपके लिए खुला है.

(यह भी पढ़ें:"तू बाहर मिल, देखते हैं कैसे जिंदा जाती है", दिल्ली की महिला जज को कोर्ट में किसने दी धमकी?)

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