बहू ने ननद पर दहेज उत्पीड़न का केस किया, कोर्ट ने साफ कहा- '498A का गलत इस्तेमाल हो रहा'
Delhi High Court On IPC Section 498A: कोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा की सिंगल बेंच ने एक महिला द्वारा अपनी ननद के खिलाफ दायर आपराधिक मामले को खारिज कर दिया. इस दौरान उन्होंने 498A के गलत इस्तेमाल को लेकर कई अहम कॉमेंट्स किए.

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी वैवाहिक विवाद में पत्नी की तरफ से पति के रिश्तेदारों को ‘दुर्भावनापुर्ण रूप से फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति’, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A का गलत इस्तेमाल है. कोर्ट का कहना है कि निर्दोष लोगों के उत्पीड़न को रोकने के लिए इसके दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए.
IPC के तहत धारा 498A वो कानून है, जो पति या ससुराल वालों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता (मारपीट, दहेज की मांग आदि) करने को अपराध मानता है. इसमें ऐसी अपराधों के लिए तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है. ये अब बदलकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 हो गई है.
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा की सिंगल बेंच ने एक महिला द्वारा अपनी ननद के खिलाफ दायर आपराधिक मामले को खारिज कर दिया. इस दौरान उन्होंने 498A के गलत इस्तेमाल को लेकर कई अहम कॉमेंट्स किए. उन्होंने कहा,
निःसंदेह IPC की धारा 498-ए महिलाओं को उनके पतियों और ससुराल वालों द्वारा क्रूरता से बचाने के लिए बनाई गई थी. हालांकि, बिना उचित जांच-पड़ताल के, बाहरी और दुर्भावनापूर्ण कारणों से, वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति इसका घोर दुरुपयोग होगी. निर्दोष व्यक्तियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए इसके गलत इस्तेमाल को रोका जाना चाहिए.
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर आरोप कानूनी जांच में खरे उतरते हैं और प्रथम दृष्टया सही साबित होते हैं, तभी मुकदमे की कार्यवाही जारी रहनी चाहिए. क्योंकि ऐसा दृष्टिकोण निर्दोष लोगों को गैरजरूरी मुकदमेबाजी और वैवाहिक विवादों में आने वाली मुश्किलों, उत्पीड़न और अपमान से बचाता है. अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा,
निराधार और मनगढ़ंत आरोपों के जरिए धारा 498ए का गलत न्यायिक प्रणाली पर अतिरिक्त बोझ डालता है. इससे आरोपी व्यक्ति के निजी जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसे झूठे मामले उस कानून की भी बदनामी करते हैं, जिसका असल मकसद महिलाओं की सुरक्षा करना था.
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस अरुण मोंगा के मुताबिक, ये कोर्ट का कर्तव्य है कि वो उन व्यक्तियों के उत्पीड़न को रोके, जिनकी कथित वैवाहिक क्रूरता में कोई ठोस संलिप्तता नहीं है.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि IPC की 'धारा 498A' संविधान के ‘आर्टिकल 14’ (बराबरी का हक) का उल्लंघन नहीं करती है. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए इस कानून की मंशा सही है. सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा कि अगर इसका गलत इस्तेमाल हो रहा हो, तो हर केस को अलग-अलग देखा जाना चाहिए.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच 15 अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें कहा गया था कि धारा 498A का महिलाएं गलत इस्तेमाल कर रही हैं. याचिका में कहा गया कि ये कानून पुरुषों के साथ भेदभाव करता है.
वीडियो: धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की?