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घरेलू हिंसा की धारा 498a पुरुषों से भेदभाव कर रही? सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है. कोर्ट के मुताबिक, IPC की धारा 498A संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं करती है. इस मामले में कोर्ट ने और क्या कहा, यहां पढ़ें.

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Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने IPC 498A को महिलाओं के लिए जरूरी बताया. (Supreme Court)
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मौ. जिशान
15 अप्रैल 2025 (Published: 10:47 PM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल को साफ कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की 'धारा 498A' संविधान के ‘आर्टिकल 14’ (बराबरी का हक) का उल्लंघन नहीं करती है. IPC के तहत 498A वो कानून है जो पति या ससुराल वालों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता (मारपीट, दहेज की मांग आदि) करने को अपराध मानता है. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए इस कानून की मंशा सही है. सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा कि अगर इसका गलत इस्तेमाल हो रहा हो, तो हर केस को अलग-अलग देखा जाना चाहिए.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि धारा 498A का महिलाएं गलत इस्तेमाल कर रही हैं. याचिका में कहा गया कि यह कानून पुरुषों के साथ भेदभाव करता है.

कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

कोर्ट को हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता. यह दलील कि ऐसा प्रावधान (धारा 498A IPC) संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है, पूरी तरह से गलत और भटकाने वाला है. आर्टिकल 15 साफ तौर पर महिलाओं की सुरक्षा आदि के लिए एक विशेष कानून बनाने का अधिकार देता है. यह (गलत इस्तेमाल) केस-दर-केस के आधार पर जांचना चाहिए.

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि दुनिया के कई देशों में घरेलू हिंसा का कानून सभी के लिए है, चाहे वो महिला हो या पुरुष. लेकिन भारत में सिर्फ महिलाओं को ही यह अधिकार दिया गया है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

हम अपनी संप्रभुता बनाए रखते हैं. हमें दूसरों की नकल क्यों करनी चाहिए? बल्कि उन्हें हमारी नकल करनी चाहिए.

कोर्ट ने यह भी कहा,

यहां हर कानून का गलत इस्तेमाल हो सकता है. क्या आप चाहते हैं कि हम कोई आम टिप्पणी करें? ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहां महिलाओं को पीड़ित किया गया हो. ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कानून का गलत इस्तेमाल किया गया हो. इसलिए यह कोर्ट का काम है कि वो हर केस को उसके खास तथ्यों के आधार पर तय करे.

इससे पहले कई अदालतें कह चुकी हैं कि कभी-कभी महिलाएं घरेलू हिंसा के कानून का गलत इस्तेमाल कर अपने पति और ससुरालवालों को फंसा देती हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इसका यह मतलब नहीं कि कानून को ही गलत ठहराया जाए.

IPC 498A अब BNS 85

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A अब बदलकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 हो गई है. इसमें पति या उसका परिवार के विवाहित महिला के साथ क्रूरता करने को अपराध माना गया है. इसके मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

आर्टिकल 14

भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि भारत में हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार है. मतलब यह कि कानून की नजर में सभी एक समान हैं. किसी के साथ उसके धर्म, जाति, लिंग या जगह के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

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