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'क्या UCC लागू करने का समय नहीं आ गया?', दिल्ली हाई कोर्ट ने संसद को एक मैसेज दिया है

Delhi High Court ने कहा कि इस्लामी पर्सनल लॉ में यौवन प्राप्त कर चुकीं 15 साल की लड़कियों को विवाह की अनुमति दी जाती है. जबकि IPC/BNS और POCSO में इसको अपराध माना जाता है. इसी दौरान कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मुद्दा उठाया है.

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Delhi High Court
दिल्ली हाई कोर्ट ने UCC को लागू करने की वकालत की है. (फाइल फोटो: दिल्ली हाई कोर्ट)
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रवि सुमन
26 सितंबर 2025 (Published: 03:44 PM IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ (UCC) को लागू करने की वकालत की है. जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा कि इस्लामी कानून के तहत, यौवन (प्यूबर्टी) में प्रवेश करने वाली नाबालिग लड़की कानूनी रूप से विवाह कर सकती है. लेकिन भारतीय आपराधिक कानून के तहत, ‘भारतीय न्याय संहिता’ (BNS) और ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस’ (POCSO) एक्ट में ऐसी शादी में शामिल पति को अपराधी माना जाता है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस मोंगा ने कहा कि ये स्थिति दुविधा उत्पन्न करती है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या समाज को लंबे समय से चले आ रहे व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने के लिए अपराधी बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा,

क्या अब समान नागरिक संहिता (UCC) की ओर बढ़ने का समय नहीं आ गया है, जिसमें एक ऐसा ढांचा बनाया जाए, जहां व्यक्तिगत या धार्मिक रीति-रिवाज वाले कानून, राष्ट्रीय कानून पर हावी न हों.

न्यायमूर्ति मोंगा ने कहा कि इस मामले पर कानूनी स्पष्टता की जरूरत है, विधायिका को ये फैसला लेना होगा कि क्या पूरे समुदाय को अपराधी बनाते रहा जाए या कानूनी को स्पष्ट बनाकर शांति और सद्भाव को बढ़ावा दिया जाए. उन्होंने आगे कहा,

निःसंदेह, UCC के विरोधी आगाह करते हैं कि एकरूपता से संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा है. हालांकि, ऐसी आजादी को इतना विस्तार नहीं दिया जा सकता कि किसी परंपरा के कारण कानून तोड़ने जैसा अपराध हो. 

कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में सही और संतुलित रास्ता अपनाना चाहिए. जैसे कि बाल विवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना. इसमें शामिल लोगों के लिए सजा का प्रावधान करना. क्योंकि सीधे तौर पर ये BNS और POCSO के तहत अपराध हैं. उन्होंने आगे कहा,

साथ ही, कम विवादित मामलों को समुदायों के भीतर खुद ही धीरे-धीरे बदलने देना चाहिए. इन मुद्दों पर आखिरी फैसला कानून बनाने वालों के विवेक पर छोड़ देना ही बेहतर है. लेकिन संसद में इसका स्थाई समाधान जल्द ही आना चाहिए.

ये भी पढ़ें: 'शादी के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है' उत्तराधिकारी कानून पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही थी

ये मामला हामिद रजा नाम के व्यक्ति की जमानत याचिका से जुड़ा था. रजा पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप) और POCSO के तहत आरोप लगे थे. मामला इसलिए जटिल हो गया क्योंकि रजा ने एक ऐसी लड़की से शादी की थी, जो सरकारी रिकॉर्ड और FIR में नाबालिग बताई गई. लेकिन अदालत में उसने खुद को वयस्क (लगभग 20 साल) बताया. लड़की ने कहा कि उसके पास विवाह का वैध प्रमाणपत्र है और उसने इस्लामी कानून के तहत अपनी मर्जी से शादी की है. लड़की ने रजा की जमानत का समर्थन किया.

इस मामले में एक कानूनी पेंच ये भी था कि रजा के खिलाफ लड़की के सौतेले पिता ने FIR दर्ज कराई थी. उस सौतेले पिता पर उसी लड़की के रेप का आरोप है. इसके कारण लड़की को एक बच्चा भी हुआ था. सौतेले पिता ने आरोप लगाया कि शादी के समय लड़की नाबालिग थी, इसलिए ये रिश्ता और ये शादी अवैध है. 

हालांकि, कोर्ट ने पाया कि रजा की गिरफ्तारी के पहले से ही लड़की उसके साथ रह रही थी. अदालत ने ये भी पाया कि सौतेले पिता ने खुद को बचाने और अपने अपराधों को छिपाने के लिए FIR दर्ज कराई. कोर्ट ने हामिद रजा की गिरफ्तारी और हिरासत की प्रक्रिया में भी नियमों का उल्लंघन पाया. इसलिए, न्यायालय ने रजा को नियमित जमानत दे दी, जो 19 सितंबर, 2025 से अंतरिम जमानत पर थे.

इसी मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस्लामी कानून और भारतीय कानूनों के बीच विरोधाभासों का जिक्र किया. कहा गया कि इस्लामी पर्सनल लॉ में यौवन प्राप्त कर चुकीं 15 साल की लड़कियों को विवाह की अनुमति दी जाती है. जबकि IPC/BNS और POCSO में इसको अपराध माना जाता है. 

वीडियो: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, "भारत में व्यभिचार अपराध नहीं है, लेकिन इसके सामाजिक परिणाम हैं", देना पड़ सकता है Compensation

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