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'पत्नी की सहमति के बिना अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं...'' हाईकोर्ट ने ये फैसला क्यों सुनाया?

Chhattisgarh High Court: कोर्ट ने कहा है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किये गये किसी भी संभोग या सेक्शुअल एक्ट को रेप नहीं कहा जा सकता. क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य (Unnatural Act) के लिए पत्नी की सहमति ना होना, महत्व नहीं रखता.

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Chhattisgarh High Court
इससे पहले, जगदलपुर के एडिशनल सेशल जज ने व्यक्ति को दोषी ठहराया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर - इंडिया टुडे)
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हरीश
12 फ़रवरी 2025 (Updated: 12 फ़रवरी 2025, 11:50 AM IST)
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छत्तीसगढ़ की बिलासपुर हाई कोर्ट ने रेप और अन्य आरोपों के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के द्वारा अपनी वयस्क पत्नी के साथ किया गया यौन संबंध (अप्राकृतिक एक्ट समेत) अपराध नहीं माना जा सकता, भले ही इसमें पत्नी की सहमति भी ना हो (Chhattisgarh HC on Unnatural sex).

इस व्यक्ति को 2017 में गिरफ़्तार किया गया था. साथ ही, बस्तर के एडिशनल सेशल कोर्ट में IPC की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत आरोपों में दोषी ठहराया गया. लेकिन अब बिलासपुर हाई कोर्ट में इस फ़ैसले को पलट दिया गया है. हाई कोर्ट में फ़ैसला 19 नवंबर, 2024 को सुरक्षित रख लिया गया था, जिसे 10 फ़रवरी, 2025 को सुनाया गया है.

जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल जज की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. न्यूज़ एजेंसी PTI के इनपुट के मुताबिक़, कोर्ट ने कहा है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किये गये किसी भी संभोग या सेक्शुअल एक्ट को रेप नहीं कहा जा सकता. क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य (Unnatural Act) के लिए पत्नी की सहमति ना होना, महत्व नहीं रखता.

मामला क्या है?

दरअसल, बस्तर के ज़िला मुख्यालय जगदलपुर के रहने वाले एक व्यक्ति को 11 दिसंबर, 2017 को गिरफ़्तार किया गया, उसकी पत्नी के एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए बयान के आधार पर. उसी दिन एक सरकारी अस्पताल में पत्नी की मौत हो गई थी.

11 दिसंबर, 2017 को ही पत्नी ने दर्द की शिकायत की थी और अपने परिवार के सदस्यों को इसके बारे में बताया. महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए. लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़, ये भी आरोप है कि पति ने पत्नी के 'गुदा' (Anus) में अपना हाथ डाला. जिसके कारण उसे दर्द की शिकायत हुई और बाद में उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया.

विक्टिम महिला का मृत्यु पूर्व बयान मज़िस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया था. जिसमें उसने बयान दिया था कि उसके पति द्वारा ‘जबरन यौन संबंध’ के कारण वो बीमार हो गई थी. मजिस्ट्रेट में दर्ज बयान के मुताबिक़, विक्टिम के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने बताया कि उसके मलाशय में दो छिद्र थे. साथ ही, मृत्यु का कारण पेरिटोनाइटिस और मलाशय में छिद्र होना है. बताते चलें, पेरिटोनाइटिस का मतलब पेरिटोनियम में सूजन है. पेरिटोनियम वो ऊतक होता है, जो आपके उदर गुहा के अंदर की परत बनाता है.

फिर मामला जगदलपुर के एडिशनल सेशल कोर्ट (फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट यानी FTC) पहुंचा. 11 फरवरी, 2019 को इस कोर्ट से फ़ैसला आया. इसमें कहा गया कि व्यक्ति को IPC की धारा 377, 376 और 304 के तहत दोषी ठहराया गया और 10 साल के जेल की कठोर सज़ा सुनाई गई. इसके बाद व्यक्ति ने निचली कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी और वो बिलासपुर हाई कोर्ट पहुंचा.

High Court में क्या-क्या हुआ?

हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान दोषी (एडिशनल सेशल कोर्ट में) यानी पति के वकील ने कहा कि पति के ख़िलाफ़ रिकॉर्ड पर कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत उपलब्ध नहीं था. सिर्फ़ विक्टिम के बयान के आधार पर, उसके मुवक्किल को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है. 

वकील ने दलील दी कि निचली कोर्ट ने उन दो गवाहों के बयानों पर विचार नहीं किया, जिन्होंने जगदलपुर की कोर्ट को बताया था कि महिला अपनी पहली डिलीवरी के तुरंत बाद बवासीर से पीड़ित थी. जिसके कारण उसे ब्लिडींग होती थी और उसके पेट में दर्द होता था. वकील ने महिला के मौत के पहले दिए गए बयान पर निर्भरता को ‘डाउटफुल’ बताया.

वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले का समर्थन किया. साथ ही, दोषसिद्धि और सज़ा के ख़िलाफ़ अपील को ख़ारिज करने की मांग की. सारे तर्कों को सुनने के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट की तरफ़ से फ़ैसला आया. इस फ़ैसल में जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने कहा,

कोर्ट ने IPC की धारा 375, 376 और 377 का अवलोकन किया. इससे ये स्पष्ट है कि धारा 375 IPC की बदली गई परिभाषा के मद्देनज़र, पति और पत्नी के बीच IPC की धारा 377 के तहत अपराध के लिए कोई जगह नहीं है. इस तरह रेप का मामला नहीं बनता.

ये फ़ैसला क्यों दिया गया?

बता दें, साल 2013 में IPC की धारा 375 में बदलाव किया गया था. इससे धारा 375 में अपवाद-2 दिया गया. ये अपवाद-2 कहता है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या सेक्शुअल एक्ट रेप नहीं है. इसीलिए हाई कोर्ट ने कहा कि इसी बदलाव के चलते अगर कोई अप्राकृतिक यौन संबंध, -जैसा कि धारा 377 के तहत परिभाषित है- पति द्वारा अपनी पत्नी (15 साल की उम्र से ऊपर) के साथ किया जाता है, तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता है.

कोर्ट ने आगे कहा कि स्पष्ट है कि धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है और इसमें अपराधी को परिभाषित नहीं किया गया है. लेकिन शरीर के अंगों को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. जो धारा 375 (अप्राकृतिक यौन संबंध) में भी शामिल हैं.

बताते चलें, नवतेज सिंह जौहर (मामले) में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एक फ़ैसला दिया था. इस फ़ैसले में कहा गया कि धारा 377 के कुछ हिस्से असंवैधानिक हैं. कोर्ट ने अंत में ये माना कि अगर सहमति से अप्राकृतिक अपराध किया जाता है, तो IPC की धारा 377 का अपराध नहीं बनता है.

ये भी पढ़ें - धारा 377: सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला

बिलासपुर हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि IPC की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि ‘विकृत’ है और इसे रद्द कर दिया. अंत में कोर्ट ने उस व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसे तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश दिया.

वीडियो: Supreme Court ने क्यों कहा रेप की शिकायत करने वाली महिला की हिस्ट्री चेक करो?

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