सिगरेट-गुटखा बंद तो नहीं कर रही सरकार, मगर कीमत आसमान छूने वाली है!
Cess on Tobacco and Pan Masala: कहानी कुछ यूं है कि सरकार ने सोचा, “सिन गुड्स सिर्फ GST से काम नहीं चलेगा, थोड़ा और पैसा जुटाना होगा.” संसद के शीतकालीन सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी ‘हेल्थ सिक्योरिटी से नेशनल सिक्योरिटी सेस बिल, 2025’. मकसद साफ है – तंबाकू और गुटखा जैसे प्रोडक्ट्स से होने वाले स्वास्थ्य और सुरक्षा नुकसान के लिए अतिरिक्त फंडिंग जुटाना.

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) के स्लैब में हुए बदलाव में, सिन गुड्स (तंबाकू और पान मसाला) के लिए 40 प्रतिशत की एक नई स्लैब पेश की गई थी. खबर आई थी कि सरकार सिन गुड्स पर 40 प्रतिशत GST के अलावा भी अतिरिक्त शुल्क लगाने की योजना बना रही है. ऐसा राज्यों के राजस्व घाटे की भरपाई करने के लिए किया जा सकता है. और अब संसद के शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) में केंद्र सरकार सिन गुड्स (Sin Goods) पर अतिरिक्त सेस लगाने को लेकर सरकार नया बिल लाने जा रही है.
सरकार जुटाएगी अतिरिक्त पैसावित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में 'हेल्थ सिक्योरिटी से नेशनल सिक्योरिटी सेस बिल, 2025' पेश करेंगी. इसका उद्देश्य स्वास्थ्य और राष्ट्रीय सुरक्षा पर होने वाले खर्च के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाना है. यह विशेष सेस उत्पादन की मात्रा पर नहीं, बल्कि मशीन की उत्पादन क्षमता के आधार पर तय होगा. गुटखा और तंबाकू उत्पाद बनाने वाली मशीनों पर यह नया सेस लगेगा. सरकार का मानना है कि तंबाकू इंडस्ट्री से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान और सुरक्षा चुनौतियों के लिए अतिरिक्त फंडिंग जरूरी है. हाथ से बनने वाले उत्पादों पर भी एक निश्चित मासिक राशि के रूप में सेस देना होगा, जिसे हर महीने जमा करना अनिवार्य होगा.
अगर कोई मशीन 15 दिनों से ज्यादा बंद रहती है, तो उस अवधि के लिए उसे छूट मिल सकती है. नए बिल के तहत, तंबाकू और उससे जुड़े प्रोडक्ट्स पर 40% GST के अलावा 70% सेस लगेगा, जबकि सिगरेट पर लंबाई (बड़ी या छोटी) के हिसाब से हर हजार सिगरेट पर 2,700 रुपये से 11,000 रुपये तक का खास सेस लगेगा. इस कदम का मकसद कंपनसेशन सेस खत्म होने के बाद टैक्स रेवेन्यू को सुरक्षित रखना है.
रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगानए नियमों के तहत, सभी तंबाकू उत्पाद निर्माताओं को अनिवार्य रजिस्ट्रेशन कराना होगा. उन्हें हर महीने रिटर्न भी दाखिल करना होगा. अधिकारियों के पास निरीक्षण करने, जांचकरने और ऑडिट करने की पावर होगी. नियमों के उल्लंघन पर पांच साल तक की कैद और जुर्माने का भी प्रावधान है. लेकिन ऐसे मामलों में कंपनियों को भी संबंधित अधिकारियों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपील करने का अधिकार दिया जाएगा. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक इसके अलावा नए प्रावधान के तहत सरकार को जरूरत पड़ने पर सेस को दोगुना करने की शक्ति होगी.
क्या होता है सेस?सेस भी एक तरह का टैक्स ही होता है जो केंद्र सरकार लगाती है, लेकिन ये टैक्स से काफी अलग भी होता है. टैक्स लगाने के पीछे सरकार का एक मोटा सा मकसद होता है - देश का खर्च चलाना. लेकिन सेस एक बड़े खास मकसद के लिए लगया जाता है - जैसे शिक्षा या स्वास्थ्य से जुड़ी कोई स्कीम, या फिर सड़कें बनाना. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स और सेस में दूसरा फर्क ये है कि टैक्स से जमा होने वाला पैसा कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में जमा हो जाता है. ये भारत सरकार का खाता होता है. इसे भारत सरकार चाहे जैसे खर्च कर सकती है. सेस से जमा होने वाला पैसा भी पहले कंसॉलिडेटेड फंड में जाता है, लेकिन इसे वहां से किसी खास फंड में जमा करा दिया जाता है (लेकिन सेस जमा करने की लागत काट ली जाती है).
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जैसे पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले फ्यूल सेस से इकट्ठा हुआ पैसा सेंट्रल रोड फंड में जमा होता है. इस पैसे को सड़कों से जुड़ी योजनाओं पर ही खर्च किया जा सकता है. इसके लिए संसद अप्रोप्रिएशन बिल नाम का एक विधेयक पास करती है (बजट प्रस्ताव ऐसे ही लागू होते हैं). सेस और टैक्स में तीसरा फर्क होता है पैसे के बंटवारे का. टैक्स से जमा हुए पैसा देश के संघीय ढांचे के तहत बंटता है. माने केंद्र सरकार को ये पैसा राज्यों के साथ बांटना पड़ता है. वो न ऐसा करने से मना कर सकती है, न ही इससे जुड़े नियम बदल सकती है. लेकिन सेस में ये पचड़ा नहीं होता. ये पैसा केंद्र पूरी तरह अपनी मर्जी से खर्च करता है. टैक्स और सेस में चौथा फर्क खर्च करने के समय में होता है. टैक्स से जमा पैसा जब किसी योजना में लगता है, तो उसे एक साल में खर्च करना होता है. न हो पाए तो पैसा वापस सरकारी खाते में चला जाता है. लेकिन सेस के मामले में पैसा योजना में ही बना रहता है और अगले साल भी खर्च किया जा सकता है.
(नोट: स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, सिगरेट और गुटखा सेहत के लिए हानिकारक हैं.)
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