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सारनाथ की पट्टिकाओं पर फिर लिखा जाएगा इतिहास, अंग्रेजों के बजाय काशी नरेश की फैमिली को मिलेगा क्रेडिट

Sarnath UNESCO History Change: सारनाथ वहीं स्थान है जहां भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था. ASI को शिलालेख बदलाव को लेकर भेजे गए प्रस्ताव में दावा किया गया है कि सारनाथ ब्रिटिश पुरातत्वविदों और अधिकारियों की कोशिशों की वजह से नहीं बल्कि जगत सिंह के आदेश पर हुई खुदाई के दौरान उजागर हुआ था.

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ASI Will Rewrite History On Sarnath Plaque, Credit Will Be Given To Benares Ruler Family
सारनाथ के शिलालेख पर इतिहास फिर से लिखेगा ASI. (फाइल फोटो- PTI)
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रिदम कुमार
17 सितंबर 2025 (Published: 01:20 PM IST)
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भारत ने विश्व धरोहर साइट (World Heritage Site) के लिए यूपी के वाराणसी में मौजूद सारनाथ (Sarnath) को नॉमिनेट किया है. इसे जांचने के लिए जल्द ही UNESCO की टीम सारनाथ का दौरा करेगी. इसके मद्देनजर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सारनाथ में मौजूद पट्टिका पर इतिहास को फिर से लिखेगी. इनमें ब्रिटिश अधिकारियों की बजाय बनारस के एक पुराने शासक परिवार को इसके संरक्षण का श्रेय दिया जाएगा.

इनके नाम की पट्टिका लगेगी

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि यह कदम बाबू जगत सिंह के वंशजों की ओर से ASI को भेजे गए प्रस्ताव के आधार पर उठाया जा रहा है. बाबू जगत सिंह, बनारस के शासक चैत सिंह के परिवार से थे. उनके वंशजों ने ASI से अनुरोध किया है कि पट्टिका में 1787-88 में जगत सिंह की ओर से सारनाथ के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने का उल्लेख किया जाए, न कि 1798 का वर्ष, जैसा कि अभी के पट्टिका में लिखा है.

बताते चलें कि सारनाथ वहीं स्थान है जहां भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था. ASI को पट्टिका में बदलाव को लेकर भेजे गए प्रस्ताव में दावा किया गया है कि सारनाथ ब्रिटिश पुरातत्वविदों और अधिकारियों की कोशिशों की वजह से नहीं बल्कि जगत सिंह के आदेश पर हुई खुदाई के दौरान उजागर हुआ था. 

अभी क्या लिखा है

फिलहाल पट्टिका में लिखा है, 

…इस जगह का पुरातात्विक महत्व सबसे पहले डंकन और कर्नल ई. मैकेंजी ने 1798 ई. में उजागर किया था, जिसके बाद अलेक्जेंडर कनिंघम (1835-36), मेजर किट्टो (1851-52), एफओ ओर्टेल (1904-55), सर जॉन मार्शल (1907), एमएच हरग्रीव्स (1914-15) और अंत में दयाराम साहनी द्वारा कई खुदाई की गईं…

कब लगेगी नई पट्टिका

ASI के DG यदुबीर रावत ने अखबार से पुष्टि की है कि स्थल के पुरातात्विक महत्व की तारीख को नए तथ्यों के आधार पर सही किया जाएगा. अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने अखबार को बताया कि नई पट्टिका अगले कुछ महीनों में लगा दी जाएगी. 

एक अधिकारी ने बताया कि 1861 तक जब अलेक्जेंडर कनिंघम के अधीन ASI की स्थापना हुई और सारनाथ एक संरक्षित स्मारक बना, तब तक न तो कोई वैज्ञानिक शोध हुआ था और न ही कोई दस्तावेजीकरण. इसलिए कई स्मारकों पर लगी पट्टिका पर संबंधित ब्रिटिश अधिकारियों की जानकारी हो सकती है. लेकिन दशकों बाद अगर कुछ अलग पाया जाता है तो उसे ठीक किया जा सकता है.

जगत सिंह के वंशज प्रदीप नारायण सिंह ने अखबार को बताया कि परिवार ने ASI को सांस्कृतिक सूचना पट्ट में भी बदलाव को दर्शाने और “गलत जानकारी को सही किया जाए” का अनुरोध भेजा है. प्रदीप नारायण सिंह बनारस में जगत सिंह के नाम पर बने शोध समिति के संरक्षक हैं.

सारनाथ की खासियत

सारनाथ में मौजूद अलग-अलग बौद्ध संरचनाएं 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 11वीं शताब्दी तक के समय की हैं. यह स्थल बौद्ध धर्म के लिए एक अहम केंद्र माना जाता है. यहां की पट्टिकाओं में न सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी, बल्कि जापानी जैसी विदेशी भाषाएं भी शामिल हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़े दक्षिण एशिया के पर्यटकों की एक बड़ी संख्या आती है.

यही कारण है कि भारत ने इस साल सारनाथ को UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट के लिए नामित किया है. यह स्थल 27 वर्षों के बाद इस लिस्ट में शामिल हो सकता है. भारत खुद को वैश्विक स्तर पर बुद्ध का देश के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.

वीडियो: तारीख़: बुद्ध का सारनाथ से रिश्ते और 'राष्ट्रीय चिन्ह' की कहानी क्या है?

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