अरुणाचल सीएम के परिवार को 'खूब' ठेके मिलने पर सुप्रीम कोर्ट बोला- 'ये इत्तेफाक कमाल का है.... '
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमाल का इत्तेफाक है कि बेहद कम अंतर की बोली लगाने वाली कंपनी को ठेका मिल जाता है. कोर्ट ने अब अरुणाचल प्रदेश की सरकार से सीएम पेमा खांडू और उनके रिश्तेदारों की कंपनी को दिए गए ठेकों की पूरी जानकारी मांगी है.

सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के परिवार की कंपनियों को सरकारी ठेके दिए जाने पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि कमाल का इत्तेफाक है कि बेहद कम अंतर की बोली लगाने वाली कंपनी को ठेका मिल जाता है. कोर्ट ने अब राज्य सरकार से पेमा खांडू और उनके रिश्तेदारों की कंपनी को दिए गए ठेकों की पूरी जानकारी मांगी है. इसके लिए सरकार को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा है. वहीं मामले की अगली सुनवाई अब फरवरी 2026 में होगी.
अरुणाचल प्रदेश सरकार पर आरोप है कि उसने बड़ी संख्या में मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उनके परिवार से जुड़ी कंपनियों को ही सरकारी ठेका दिया. 2024 में इसे लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री पेमा खांडू की पत्नी और भतीजे की कंपनियों को बिना कोई प्रोसेस फॉलो किए टेंडर आवंटित किए गए. याचिकाकर्ताओं ने सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) या फिर SIT से इस मामले की जांच कराने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार, 2 दिसंबर को इस केस की सुनवाई हुई.
CBI जांच के नहीं दिए आदेशजस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि अभी वह मामले की CBI जांच का आदेश नहीं देना चाहते. वह चाहते हैं कि पहले राज्य और जानकारी दे. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया,
पिछले 10 सालों में अकेले तवांग में 188 करोड़ रुपये के 31 ठेके पेमा खांडू के परिवार से जुड़े लोगों की कंपनियों को दिए गए. इसके अलावा वर्क ऑर्डर के ज़रिए 2.61 रुपये करोड़ के काम भी दिए गए. राज्य की पॉलिसी के मुताबिक 50 लाख रुपये से कम के कामों के लिए बिना टेंडर के कॉन्ट्रैक्ट दिया जा सकता है. सरकार कहती है कि हम उन कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट देना चाहते हैं, जिन पर स्थानीय लोग भरोसा करते हैं. और जिन कंपनियों पर लोग भरोसा करते हैं, वह CM और उनकी पत्नी वगैरह की कंपनियां हैं, क्योंकि वह उस इलाके से आते हैं.
प्रशांत भूषण ने आगे कहा कि लगभग सभी मामलों में 2 कंपनियों ने टेंडर भरा. मुख्यमंत्री के करीबियों की कंपनी जो टेंडर देती है, वह दूसरी कंपनी से 0.01% कम होता है. इसलिए उन्हें टेंडर दे दिया जाता है.
बिहार के चारा घोटाले का जिक्रइस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा कि क्या यह बिहार के चारा घोटाला जैसा कुछ है. इसका जवाब देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा- एक तरह से. इसके बाद अरुणाचल सरकार के वकील ने याचिकाकर्ताओं के अधिकार और असलियत पर सवाल उठाया. इस पर जस्टिस नाथ ने जवाब दिया,
वह एक केस लेकर आए हैं कि बहुत सारे कॉन्ट्रैक्ट, वर्क ऑर्डर बड़े अधिकारियों, उनके परिवार के सदस्यों या उनकी कंपनियों को दिए जा रहे हैं. जिसमें मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी, भाई शामिल हैं. राज्य के जवाब में, यह बात सामने आई है कि ये वे वर्क ऑर्डर हैं, जो दिए गए हैं और ये वे कंपनियां हैं, जहां डायरेक्टर, प्रोप्राइटर वगैरह फलाने-फलाने हैं. इस पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए हम सोचेंगे कि क्या किसी जांच की ज़रूरत है. सीधा सा आरोप है कि सभी वर्क ऑर्डर A, B और C कंपनी को ही जा रहे हैं. प्लीज समझें कि एक राज्य में, CM के परिवार के सदस्यों को बड़ी संख्या में वर्क ऑर्डर और टेंडर दिए जा रहे हैं.
इस पर सरकार के वकील ने तर्क दिया कि राज्य के हलफनामे में यह नहीं बताया गया है कि टेंडर किस रेशिया या अनुपात में दिए गए थे. उन्होंने कहा कि 15 साल में 31 कॉन्ट्रैक्ट दिए गए हैं. इस पर जस्टिस मेहता ने जवाब दिया,
यह इत्तेफाक कमाल का है. जहां अंतर कथित तौर पर बहुत कम (0.01%) था, यह कार्टेलाइज़ेशन (टेंडर में हेराफेरी के लिए जानबूझकर किया गया गठजोड़) दिखाता है. अगर ऐसा है, तो यह गंभीर हो जाता है. जांच का दायरा यह पता लगाने तक भी बढ़ सकता है कि क्या किसी और व्यक्ति को टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा लेने की इजाज़त दी जा रही है… जो कुछ भी होगा, वह जांच में सामने आएगा.
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अंत में कोर्ट ने राज्य को सभी जिलों के लिए एक डिटेल्ड एफिडेविट फाइल करने का निर्देश दिया और मामले को फरवरी तक सुनवाई के लिए टाल दिया. इससे पहले कोर्ट ने मार्च 2025 में राज्य के गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और राज्य सरकार से उन पार्टियों के बारे में डिटेल्ड जवाब मांगे थे, जिन्हें सरकारी ठेके दिए गए थे.
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