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सिगरेट नहीं पीने वालों को भी हो रहा फेफड़ों का कैंसर, वजह जान विश्वास नहीं होगा!

करीब 30-40 साल पहले, लंग कैंसर के 90% मामले बीड़ी-सिगरेट पीने से होते थे. लेकिन अब स्थिति बदल गई है.

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lung cancer among people who never smoked because of pollution
लंग कैंसर भारत में होने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है (फोटो: Getty Images)
19 नवंबर 2025 (Updated: 19 नवंबर 2025, 03:02 PM IST)
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लंग कैंसर क्यों होता है? आप कहेंगे बीड़ी-सिगरेट-तंबाकू से. सही बात है. अब इसमें एक वजह और जोड़ लीजिए. प्रदूषण.  

प्रदूषण से फेफड़ों में कैंसर हो सकता है. भले आपने कभी भी बीड़ी-सिगरेट न पी हो. World Health Organization की एजेंसी है International Agency For Research On Cancer. इसके GLOBOCAN डेटाबेस के मुताबिक, 2022 में दुनियाभर में लंग कैंसर के साढ़े 24 लाख से ज़्यादा नए मामले सामने आए थे. वहीं 18 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी. लंग कैंसर दुनिया में होने वाला सबसे आम कैंसर है.  

भारत की बात करें, तो 2022 में हमारे देश में लंग कैंसर के 81,500 से ज़्यादा मामले सामने आए थे. लंग कैंसर भारत में होने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है. पुरुषों में इसके मामले ज़्यादा देखे जाते हैं.

जब प्रदूषण बढ़ता है, तो लंग कैंसर होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. British Journal Of Cancer में 4 अप्रैल 2025 को एक स्टडी छपी. इसके मुताबिक, वायु प्रदूषण का हमारी सेहत पर गहरा असर पड़ता है. प्रदूषित हवा में पर्टिकुलेट मैटर यानी धूल, मिट्टी, गैस और केमिकल के महीन कण होते हैं. जो लंग कैंसर के बढ़ते मामलों और उससे होने वाली मौतों की वजह बनते हैं. PM2.5 में सल्फेट्स, ऑर्गेनिक कंपाउंड्स, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स और हैवी मेटल्स जैसी टॉक्सिक चीज़ें होती हैं. इनसे कैंसर होता है. इसलिए, ये सभी लंग कैंसर का रिस्क बढ़ाते हैं.

आज हम लंग कैंसर और प्रदूषण के कनेक्शन पर बात करेंगे. डॉक्टर से जानेंगे कि क्या वाकई प्रदूषण से लंग कैंसर हो सकता है. जो सिगरेट नहीं पीते, लेकिन प्रदूषण में रहते हैं, क्या उन्हें भी प्रदूषण से लंग कैंसर हो सकता है. ये भी समझेंगे कि लंग कैंसर के लक्षण क्या हैं. और, प्रदूषण से लंग कैंसर न हो, इसके लिए क्या करना चाहिए. 

क्या प्रदूषण से लंग कैंसर हो सकता है?

ये हमें बताया डॉक्टर किशोर सिंह ने. 

dr kishore singh
डॉ. किशोर सिंह, हेड, रेडिएशन ऑन्कोलॉजी, सुभारती मेडिकल कॉलेज, मेरठ

आज के समय में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है. करीब 30-40 साल पहले, लंग कैंसर के 90% मामले बीड़ी-सिगरेट पीने से होते थे. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. लंग कैंसर तंबाकू और प्रदूषण दोनों की वजह से हो रहा है. करीब 43% केस बीड़ी-सिगरेट की वजह से होते हैं. वहीं, लगभग 43% मामले प्रदूषण की वजह से रिपोर्ट होते हैं. आने वाले समय में ये समस्या और बढ़ सकती है. क्योंकि, बीड़ी-सिगरेट का सेवन धीरे धीरे कम हो रहा है. लेकिन इंडस्ट्रीज़ और गाड़ियां बढ़ने से प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है.

सिगरेट नहीं पीने वालों को भी प्रदूषण से लंग कैंसर हो सकता है?

हां, बीड़ी-सिगरेट नहीं पीने वालों को भी लंग कैंसर हो सकता है. दरअसल, प्रदूषण दो तरह का होता है- घर के अंदर और घर के बाहर. घर के अंदर प्रदूषण रसोई की वजह से होता है. जैसे गर्म तेल से उठने वाला धुआं. लकड़ी या गोबर के कंडे का धुआं. कोयले की अंगीठी से निकलने वाला धुआं. ये तीनों पहले लंग कैंसर के बड़े कारण माने जाते थे. गैस के चूल्हे आने के बाद इनसे होने वाला ख़तरा कम हुआ है. लेकिन बाहर के प्रदूषण पर हमारा कंट्रोल नहीं है. 

जैसे-जैसे इंडस्ट्रीज़ बढ़ेंगी, वैसे-वैसे प्रदूषण बढ़ता जाएगा. सड़कों पर गाड़ियां बढ़ने से हवा में धूल बढ़ेगी और प्रदूषण का लेवल भी बढ़ेगा. पराली के धुएं से भी प्रदूषण बढ़ता है.

कई दूसरे कारण भी हैं, जो प्रदूषण बढ़ाते हैं. जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ा है, वैसे-वैसे लंग कैंसर के मामले भी बढ़े हैं. पिछले 20-25 सालों में दिल्ली में लंग कैंसर के मामले 8% से बढ़कर लगभग 10% हो गए हैं.

lung cancer
अगर महीनेभर से खांसी बनी हुई है, तो ये फेफड़ों में कैंसर का शुरुआती संकेत है (फोटो: Freepik)
फेफड़े ख़राब होने लगे हैं, इसके क्या लक्षण हैं?

लंग कैंसर के शुरुआती लक्षण बहुत हल्के होते हैं. ख़ास ध्यान देने पर ही इन्हें पकड़ा जा सकता है. लंग कैंसर का पहला लक्षण खांसी है. अगर खांसी महीनेभर तक बनी रहे, और ठीक होने के बजाय बढ़ती जाए, तो जांच करवानी चाहिए. ज़रूरी नहीं कि ये लंग कैंसर हो, लेकिन चेकअप ज़रूरी है. अगर खांसी के साथ बलगम में खून आने लगे, तो बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं. लंग कैंसर के शुरुआती दो बड़े संकेत यही होते हैं.

जब कैंसर बढ़ जाता है, तो खांसी और बलगम में खून के साथ छाती में दर्द भी होने लगता है. सांस लेने में तकलीफ होती है. वज़न घटने लगता है. भूख भी कम हो जाती है.

प्रदूषण से होने वाले लंग कैंसर से खुद को कैसे बचाएं?

हम प्रदूषण कम नहीं कर सकते, लेकिन उससे बच सकते हैं. इसे दो हिस्सों में समझ सकते हैं- घर के अंदर क्या करें और घर के बाहर क्या करें. जब प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाए, जैसे PM2.5 या PM10, 300–400 से ऊपर चला जाए. तब बाहर की एक्टिविटी कम कर दें यानी सुबह की सैर या ट्रैवल करना. जितना बाहर रहेंगे, उतना प्रदूषण के संपर्क में रहेंगे. घर में रहने से ये ख़तरा कम हो जाता है. 

दूसरा, मास्क पहनें. मास्क दो तरह के आते हैं- N95 और N99. N95 का मतलब है कि ये 95% तक PM2.5 को फिल्टर करता है. N99 का मतलब है कि ये 99% तक PM2.5 को फिल्टर करता है. इसलिए, बाहर जाते समय मास्क ज़रूर पहनें. इससे आप कुछ हद तक प्रदूषण के कणों को फेफड़ों में जाने से रोक सकते हैं. 

तीसरा, घर में एयर फिल्टर या एयर प्योरिफायर लगाएं. ये हवा को साफ रखने में मदद करते हैं. 

चौथा, हरियाली बढ़ाएं. अगर हरियाली रहेगी, तो PM 2.5 कण अपने आप कम हो जाएंगे. जब घर के बाहर जाएं, तो मास्क पहनकर जाएं. 

प्रदूषण कम करने के लिए तीन लेवल पर काम ज़रूरी है. पब्लिक हेल्थ इनीशिएटिव, पब्लिक पॉलिसी इनीशिएटिव, और गवर्नमेंट इनीशिएटिव. ज़रूरी है कि सरकार इंडस्ट्रियल एक्टिविटीज़ को कंट्रोल करे. प्रदूषण बढ़ने पर गाड़ियों की आवाजाही सीमित करे. सड़कों की पानी से धुलाई कराए.

पब्लिक हेल्थ के तहत, लोगों को शिक्षित करना ज़रूरी है कि प्रदूषण के दौरान खुद को कैसे सुरक्षित रखें. हेल्थकेयर इनीशिएटिव के तहत, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी जागरूक करना चाहिए. उन्हें मरीज़ों को बताना चाहिए कि प्रदूषण से बचाव के लिए कौन-सी सावधानियां बरतें.

पॉल्यूशन लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में ज़रूरी है खुद को बचाना. अपने फेफड़ों को सुरक्षित रखना. इसलिए जब AQI ज़्यादा हो, तब बाहर निकलने से बचें. मास्क ज़रूर पहनें. हेल्दी खाना खाएं. ज़्यादा से ज़्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें. अगर खांसी ठीक नहीं हो रही तो डॉक्टर से ज़रूर मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: कुछ लोगों में कैंसर तेज़ी से क्यों फैलता है?

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