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भारत से गुज़रा राख का बादल सेहत पर कितना असर छोड़ गया?

हेली गुब्बी ज्वालामुखी 23 नवंबर को इथियोपिया में फटा था. ज्वालामुखी फटने से राख का बादल उठा, और आसमान में करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया. पश्चिम से बह रही हवा की वजह से ये बादल भारत तक आ गया.

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hayli gubbi volcanic ash health effects in india
प्रदूषण पहले ही बढ़ा हुआ है, उस पर राख का बादल गुज़रने से लोग डर गए हैं
27 नवंबर 2025 (Published: 06:21 PM IST)
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हेली गुब्बी वोल्केनो इरप्शन के वीडियो आपने सोशल मीडिया पर देख ही ली होंगी. ये ज्वालामुखी फटा है इथियोपिया में. भारत से करीब साढ़े 4 हज़ार किलोमीटर दूर. इथियोपिया अफ्रीका महाद्वीप में एक देश है. इसके नॉर्थ-ईस्ट में हेली गुब्बी नाम का ज्वालामुखी है. जो 23 नवंबर को लगभग 12 हज़ार साल बाद अचानक फट पड़ा. ज्वालामुखी फटने से राख का बादल उठा, और आसमान में करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया. पश्चिम से बह रही हवा की वजह से, ये राख का बादल भारत तक आ गया.

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हेली गुब्बी नाम का ज्वालामुखी अफ्रीका महाद्वीप के देश इथियोपिया में फटा है 

अब ये राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली-NCR और पंजाब से गुज़रता हुआ चीन की तरफ बढ़ चुका है. दिल्ली-NCR में रह रहे लोग ये ख़बर सुनकर और घबरा गए. एक तो प्रदूषण और AQI ने पहले से हाल बेहाल कर रखा है. ऊपर से हज़ारों किलोमीटर दूर फटे ज्वालामुखी की राख और यहां आ गई. हालांकि मौसम विज्ञानी कह चुके हैं कि ये राख 25 से 45 हजार फीट की ऊंचाई से गुजरी है, इसलिए दिल्ली या भारत के किसी अन्य इलाके पर इसका कोई हानिकारक असर नहीं पड़ेगा.

फिर भी सवाल बनते हैं कि अगर ज्वालामुखी की राख लोगों के संपर्क में आ जाए तो क्या इससे हालात और बदतर हो जाएंगे? क्या सांस लेना और मुश्किल हो जाएगा?

इन सवालों के जवाब हमने जानें मानेसर, फोर्टिस हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट की एडिशनल डायरेक्टर, डॉक्टर स्वाति माहेश्वरी से.

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डॉ. स्वाति माहेश्वरी, एडिशनल डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, मानेसर

डॉक्टर स्वाति बताती हैं कि ज्वालामुखी की राख सिर्फ धूल नहीं होती. जब ज्वालामुखी फटता है, तो बहुत बारीक पत्थर, आयरन, मैग्नीशियम जैसे खनिज भी उसके साथ निकलते हैं. साथ ही सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें भी राख के साथ बाहर निकलती हैं.

ज्वालामुखी का लावा धरती की गहराई से निकलता है. इसलिए इसमें पृथ्वी की पपड़ी के कुछ तत्व, जैसे सिलिकेट्स भी भारी मात्रा में होते हैं. सिलिकेट्स- सिलिकॉन और ऑक्सीजन से मिलकर बने होते हैं. ये चट्टानों, रेत और मिट्टी का अहम हिस्सा होते हैं.

ज्वालामुखी की राख में PM2.5 और PM10 के कण भी होते हैं. ये प्रदूषण फैलाने वाले बहुत महीन कण हैं. इसके अलावा, राख में कांच जैसे कण भी होते हैं. जो इंसानों के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं.

राख और इन तमाम हानिकारक तत्वों से मिलकर बना ये बादल, भारत के आसमान में करीब 10 से 18 किलोमीटर की ऊंचाई से गुज़रा है. ये वायुमंडल की वो परत है. जिसमें आमतौर पर हवाई जहाज़ उड़ते हैं.

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 ज्वालामुखी फटने पर बहुत बारीक पत्थर, आयरन, मैग्नीशियम जैसे खनिज भी बाहर निकलते हैं 

हम जो हवा सांस के ज़रिए अंदर लेते हैं. वो हवा ज़मीन के पास होती है. इसलिए इतनी ऊंचाई पर उड़ने वाली राख का हमारी सेहत पर सीधा असर नहीं पड़ता.

हालांकि PM2.5 और PM10 की वजह से हवा की क्वालिटी थोड़े समय के लिए ख़राब ज़रूर हो सकती है. शहरों में स्मॉग यानी धुंध की परत दिख सकती है. इसलिए सबको प्रदूषण से बचने की ज़रूरत है.

जिन्हें फेफड़ों या दिल से जुड़ी कोई बीमारी है. उनकी दिक्कत बढ़ सकती है. वैसे भी दिल्ली-NCR इस वक्त गैस चैंबर बना हुआ है. इसलिए सभी लोग अपना खास ख़्याल रखें. कम से कम जब तक हवा की क्वालिटी सुधर नहीं जाती. आप N-95 मास्क लगाकर ही बाहर निकलें. जब Air Quality Index यानी AQI ज़्यादा हो, तब घर से बाहर न निकलें. अपने घर के खिड़की-दरवाज़े भी बंद रखें. साथ ही, एयर प्योरिफायर का इस्तेमाल करें. अस्थमा और दिल के मरीज़ अपनी दवाएं वक्त पर लें. ज़रूरत पड़ने पर इन्हेलर का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर प्रदूषण की वजह से आंखों में जलन हो रही है. या सांस लेने में परेशानी आ रही है, तो डॉक्टर से ज़रूर मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: किसी चीज़ की लत क्यों लग जाती है?

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