कैंसर की सुपर वैक्सीन आने वाली है? शुरुआती नतीजे काफी जबरदस्त निकले हैं
ये वैक्सीन नैनोपार्टिकल्स पर बेस्ड है. नैनोपार्टिकल्स बहुत छोटे-छोटे कण होते हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें सीधे सेल्स तक पहुंचाया जा सकता है. वैक्सीन में इन्हें एंटीजन या इम्यून-बूस्टिंग पदार्थों के साथ जोड़ा जाता है. इससे ये शरीर के इम्यून रिएक्शन को तेज़ और असरदार बनाते हैं.

अब तक कैंसर की ऐसी कोई वैक्सीन नहीं बनी है, जो इस बीमारी को होने से रोक पाए. पर मुमकिन है कि आने वाले कुछ सालों में एक ऐसी 'सुपर वैक्सीन' आ जाए. ऐसी एक वैक्सीन पर फिलहाल काम चल रहा है. इससे जुड़े शुरुआती नतीजे आए हैं. जो वाकई गेम चेंजर हैं.
इस कैंसर वैक्सीन को अमेरिका की मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स तैयार कर रहे हैं. इससे जुड़ी एक स्टडी 9 अक्टूबर 2025 को Cell Reports Medicine नाम के जर्नल में छपी है.
ये वैक्सीन फिलहाल एक्सपेरिमेंट स्टेज में है. अभी सिर्फ चूहों पर ही इसे टेस्ट किया गया है. वैक्सीन एक खास इम्यून-बूस्टिंग फॉर्मूला पर काम करती है, जो चूहों के इम्यून सिस्टम को ट्रेनिंग देता है कि वो पहले असामान्य तरीके से बढ़ते सेल्स को पहचाने. फिर उसे खत्म कर दे, इससे पहले कि वो कैंसर के ट्यूमर में बदल जाएं.
ये वैक्सीन नैनोपार्टिकल्स पर बेस्ड है. नैनोपार्टिकल्स बहुत छोटे-छोटे कण होते हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें सीधे सेल्स तक पहुंचाया जा सकता है. वैक्सीन में इन्हें एंटीजन या इम्यून-बूस्टिंग पदार्थों के साथ जोड़ा जाता है. इससे ये शरीर के इम्यून रिएक्शन को तेज़ और असरदार बनाते हैं.
एंटीजन वो पदार्थ हैं, जो शरीर के इम्यून सिस्टम को बताते हैं कि ये चीज़ ख़राब है या बीमारी फैला सकती है. ये किसी बैक्टीरिया, वायरस या कैंसर सेल के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं.

इस वैक्सीन से जुड़े पहले एक्सपेरिमेंट में, साइंटिस्ट्स ने नैनोपार्टिकल सिस्टम को मेलेनोमा पेप्टाइड्स के साथ मिलाया. मेलेनोमा पेप्टाइड्स एंटीजन हैं. ऐसा करने पर T-सेल्स एक्टिवेट हो गईं. T-सेल्स एक तरह के वाइट ब्लड सेल्स हैं. ये शरीर के इम्यून सिस्टम का हिस्सा होते हैं और इंफेक्शंस और बीमारियों से लड़ते हैं. फिर इन T-सेल्स को मेलेनोमा सेल्स यानी कैंसर सेल्स को पहचानने और उन्हें खत्म करने की ट्रेनिंग दी जाती है. कौन देता है? ये वैक्सीन.
इस एक्सपेरिमेंट में चूहों को वैक्सीन लगाने के तीन हफ्ते बाद, उन्हें मेलेनोमा के संपर्क में लाया गया. मेलेनोमा एक तरह का स्किन कैंसर है. ऐसा देखा गया कि जिन चूहों को ये वैक्सीन लगी थी. उनमें से 80 परसेंट चूहों में कोई ट्यूमर नहीं बना. चूहों पर ये स्टडी करीब 8 महीने चली. इस पूरे टाइम वो ज़िंदा रहे. लेकिन जिन चूहों को कोई वैक्सीन नहीं लगी. या दूसरी पारंपरिक वैक्सीन दी गईं. वो 35 दिन के अंदर ही मर गए.
कैंसर के हर प्रकार के लिए अलग एंटीजन बनाना लंबा और मुश्किल काम होता है. इसलिए रिसर्चर्स ने दूसरी वैक्सीन बनाई. इसमें ट्यूमर लाइसेट का इस्तेमाल किया गया. ट्यूमर लाइसेट का मतलब है- कैंसर के मरे हुए सेल्स. ये एंटीजन की तरह काम करते हैं. और, शरीर के इम्यून सिस्टम को कैंसर पहचानना और उसे खत्म करना सिखाते हैं.
अब इस वैक्सीन को भी कुछ चूहों को लगाया गया. फिर कुछ वक्त बाद उन्हें मेलेनोमा, पैनक्रियास के कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर के सेल्स के संपर्क में लाया गया. इसके नतीजे शानदार थे. जिन चूहों में पैनक्रियाटिक कैंसर के सेल्स इंजेक्ट किए गए थे, उनमें से 88% में ट्यूमर नहीं बना. जिनमें ब्रेस्ट कैंसर के सेल्स इंजेक्ट किए गए थे, उनमें से 75% में ट्यूमर नहीं बना. इसी तरह, जिनमें मेलेनोमा के सेल्स इंजेक्ट किए गए, उनमें से 69% में ट्यूमर नहीं बना.
एक और अच्छी बात. वैक्सीन केवल कैंसर का ट्यूमर बनने से ही नहीं रोकती, बल्कि उसे शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने से भी रोकती है. कैंसर की इस सुपर वैक्सीन से जुड़े शुरुआती नतीजे शानदार हैं. वैसे तो रिसर्च अभी बहुत शुरुआती स्टेज में है. इंसानों पर भी इसकी टेस्टिंग होनी बाकी है. लेकिन अभी कम से कम कुछ उम्मीद तो जागी है.
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