शंकर: वो डायरेक्टर, 25 साल में जिसकी एक भी फिल्म नहीं पिटी!
उन्होंने इंडियन सिनेमा में पच्चीस बरस पूरे कर लिए हैं. पेश हैं उनकी वो 10 फिल्में जो आप कभी नहीं भूलेंगे.

#Nostalgia = शंकर
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके एस. शंकर आए तो थे अति यथार्थवादी फिल्में बनाने के लिए. ऐसी फिल्में जिनमें न कोई सुपरस्टार हो, न 100 करोड़ का बजट, न टेक्नोलॉजी का बेजां इस्तेमाल, न पांच-पांच भव्य विराट गाने. उन्हें वैसी फिल्में बनानी थीं जैसी तमिल निर्देशक जे. महेंद्रन और अन्य बनाते थे. हल्की-फुल्की, रोमांटिक, भारी ड्रामा वाली, मामूली मसलों वाली. जैसे 1978 में प्रदर्शित 'मुल्लुम मलरुम'. इसमें रजनीकांत ने काली की केंद्रीय भूमिका निभाई थी.मुक्काला मुकाबला, होगा.. गाना याद है. ये शंकर की फिल्म का ही था. वह, जिसमें माइकल जैक्सन जैसा डांसर (प्रभुदेवा) होता है. दो काउबॉय शूट करते हैं और उसका सिर, कलाइयां, टखने अदृश्य हो जाते हैं और वह फिर भी नाचता रहता है.
रूप सुहाना लगता है, चांद पुराना लगता है, तेरे आगे ओ बालम. ये गाना उनकी पहली फिल्म में था. आज भी याद है! एक यंग लड़के ने इसमें म्यूजिक दिया था. नाम था ए. आर. रहमान. इसके बाद अगली करीब सभी फिल्मों में दोनों ने साथ काम किया.
टेलीफोन धुन में हंसने वाली और माया मछिंद्रा मुझ पे मंतर मत करना को भूले/भूली हैं? जो कमल हसन और मनीषा कोइराला पर फिल्माए गए थे.
उर्वशी.. गीत में वदीवेलू.उर्वशी उर्वशी टेक इट इज़ी उर्वशी और पट्टी रैप. ये दो पागलपन भरे गाने. कैसे भूलेंगे? इनमें प्रभुदेवा और वदीवेलू की चपलता और शरारती बच्चों जैसे अद्भुत डांस को आज तक कोई मैच
नहीं कर पाया है. विशुद्ध जादू था.ऐश्वर्या राय स्टारर जींस के एक गाने में शंकर ने दुनिया के सात अजूबे दिखाए. सिर्फ एक गाने के लिए इतना खर्चा किया. और हमें वो गाना वैसे ही याद है जैसे सामान्य ज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न.
बचपन में अनाथ हो जाता है. अपनी बहन वालीइसके एक साल बाद प्रदर्शित हुई महेंद्रन की यादगार ड्रामा 'उदिरिपूक्कल' भी शंकर को पसंद थी.
व खुद को बचपन से संभालता है. बड़ा होकर गांव के बिजली संयंत्र में काम करने लगता है. लापरवाह है. नियम से नहीं चलता. झगड़ा करता है. दिल का अच्छा भी है. संयंत्र में फिर नया सुपरवाइज़र कुमारन आता है. एक घटना के बाद वह काली को निलंबित कर देता है. अब काली दारू में धुत्त रहने लगता है. एक बार सड़क पर पड़ा होता है कि लॉरी हाथ कुचल जाती है. हाथ काटना पड़ता है. अब वो घर पर पड़ा रहता है. अपनी स्थिति का जिम्मेदार कुमारन को मानता है. उसी कुमारन से फिर उसकी बहन प्यार करने लगती है. लेकिन काली सख़्त खिलाफ है. अंत में भावुक स्थितियां बनती जाती हैं.
वे 25 साल के थे तब तमिल फिल्मों में आए. शुरुआत सबसे निचले स्तर से की. निर्देशक एस. ए. चंद्रशेखर के फर्स्ट असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए. 1988 से लेकर अगले पांच साल तक शंकर ने उन्हें असिस्ट किया. 1990 में आई तमिल फिल्म 'सीथा' में तो उन्होंने छोटा कॉमेडी रोल भी किया. वे विलेन के लल्लू से साइडकिक बने थे. इसी दौरान तीन हिंदी फिल्मों - 'जय शिव शंकर', 'आज़ाद देश के ग़ुलाम', 'इंसाफ की देवी' - में सहयोगी निर्देशक रहे. इन फिल्मों में जीतेंद्र, राजेश खन्ना, ऋषि कपूर, रेखा और डिंपल कपाड़िया जैसे एक्टर्स ने काम किया था.
1993 में बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म बनाने से पहले शंकर ने गंभीर विषय वाली एक महिला केंद्रित कहानी लिखी थी. पूरे कठोर सिनेमाई अंदाज में वे उसे कहना चाहते थे. वे कई निर्माताओं से मिले लेकिन कोई उनकी इस कहानी में पैसा लगाने को राज़ी न था. साउथ का पूरा ज़ोर उस दौर में मार-धाड़ और ख़ून-ख़राबे पर था. इसी दौर में इंतजार करने और चलन को देखने के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया और एक्शन फिल्म की ओर ही हो लिए.एक बार शुरुआत करने के बाद शंकर लोकप्रियता और कमर्शियल मानकों में उत्तरोत्तर ऊंचे उठते गए हैं. उनका साउथ में वैसा ही कल्ट है जैसा रजनीकांत का है. करीब 23 साल हो रहे हैं उन्हें काम करते हुए और इन वर्षों में कोई 13* फिल्मों का निर्देशन किया है. 9 का निर्माण किया है. उन तेरह में से दस फिल्में हिंदी में हमने देखी हैं. और संबंधित समयों के एक-एक बच्चे को याद होगी. उनकी हर कहानी छोटे से आइडिया से आगे बढ़ती है और बहुत सारी मिलावट से प्रभावोत्पादकता पा लेती है. हम हिंदी में आई* उनकी दस फिल्मों पर नजर डाल सकते हैं.
हालांकि उनकी नायक, अपरिचित और हिंदुस्तानी जैसी फिल्मों में समाज की भलाई का जुनून रखने वाले नायक यदि हैं और लोगों की समस्याएं दिखती हैं तो यथार्थपरकता के लिए उसी पुराने आंशिक से मोह के कारण.
पहली, द जेंटलमैन (1993) है जिसमें हीरो अर्जुन धनवानों के यहां चोरियां करता है ताकि गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा दिला सके.
हमसे है मुकाबला (1994) प्रभु नाम के युवक के बारे में है जिसे राज्यपाल की बेटी से प्यार हो जाता है लेकिन वो साधारण परिवार से है. उसे अपना प्यार भी जीतना है और राज्य में होने जा रही बड़ी आतंकी वारदात को भी रोकना है.
हिंदुस्तानी (1996) एक 70 साल के बुजुर्ग सेनापथी की कहानी है. वह घोर ईमानदार है और अपने राज्य में रिश्वतख़ोरों को एक-एक करके मारना शुरू करता है, लाइव टीवी पर भी. वो आज़ाद हिंद फौज में रहा है और देश की आज़ादी के लिए लड़ा. उसकी बेटी अस्पताल में इसलिए मर गई क्योंकि उसने रिश्वत नहीं दी. अब उसका बेटा भी थोड़ी बहुत रिश्वत लेता है और वो उसे भी मारेगा.
जीन्स (1998) में अमेरिका में बसा एक तमिल रेस्टोरेंट व्यापारी है जिसके दो जुड़वा बेटे हैं और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. दोनों एक जैसे दिखते हैं और एक ही लड़की मधुमिता के प्रति आकर्षित हो जाते हैं. बाद में एक भाई रास्ते से हट जाता है तो पिता शादी से इनकार कर देता है क्योंकि पिता भी जुड़वा था और शादी के बाद उसका परिवार बिखरा था.
नायक (2001) एक ईमानदार पत्रकार शिवाजी राव की कहानी है जो राज्य के मुख्यमंत्री का इंटरव्यू लेता है और एक-एक सवाल में उसके घोटाले उजागर कर देता है. फंसा मुख्यमंत्री उसे चैलेंज करता है कि कहना बड़ा आसान है वो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनकर देखे फिर पता चलेगा. और शिवाजी इस शर्त को मानकर एक दिन का सीएम बनता है.
अपरिचित (2006) अंबी की कहानी है जो उपभोक्ता हितों का वकील है. बेहद आदर्शवादी है. चाहता है सब कानून का पालन करे लेकिन अपने आसपास भ्रष्टाचार को देख उसमें बहुत गुस्सा भर जाता है और उसे multiple personality disorder हो जाता है. वह भ्रष्टाचारियों की सूची बनाता है उन्हें हिंदु धर्म की पुस्तक गरुड़ पुराण में वर्णित यंत्रणाएं देकर मारना शुरू करता है.
सातवीं हिंदी प्रस्तुति सिवाजी (2007) इसी नाम वाले नायक की कहानी है जो अमेरिका से अपने राज्य लौटा है. सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. पढ़ाई व इलाज के लिए अस्पताल बनाना चाहता है लेकिन एक भ्रष्ट राजनेता ऐसा नहीं करने दे रहा. अब शिवाजी अपने तरीके से उसका सामना करता है.
रोबोट (2010) में एक वैज्ञानिक अपनी ही शक्ल वाला एंड्रॉयड रोबोट बनाता है लेकिन वो रोबोट इंसानों की तरह इमोशन और समझने की शक्ति विकसित कर लेता है. वह उस वैज्ञानिक की प्रेमिका के प्रेम में पड़ जाता है. बाद में वो इंसानों के विनाश पर उतर आता है.
बीती रिलीज, आई (2015) एक बॉडीबिल्डर लिंगेसन की कहानी है जो टॉप मॉडल बनता है लेकिन फिर उसका शरीर विकृत होने लगता है और वो कुबड़ा हो जाता है. वो अपनी प्रेमिका और लोगों से दूर एकाकी जीवन जीने को मजबूर हो जाता है लेकिन जब उसे ज्ञात होता है कि दुश्मनों ने धोखे से इंजेक्शन लगाकर उसे ऐसा कर दिया है तो वो एक-एक करके सबको मारना शुरू करता है.
दसवीं फिल्म (रोबोट) 2.0 (2018) का निर्माण जारी है. यह रोबोट के आगे की कहानी है. इसमें वैज्ञानिक और उसका रोबो है और इस बार उनका सामना दुष्ट डॉक्टर रिचर्ड से होगा.

आई के ऑडियो लॉन्च पर रजनीकांत और शंकर.
शंकर के निर्देशन में सिर्फ 'बॉयज़' ही ऐसी तमिल फिल्म रही है जो हिंदी में नहीं लगी. एक अन्य फिल्म 'ननबन' थी जो '3 ईडियट्स' की तमिल रीमेक थी.
रिकॉर्ड रूप से उनकी कोई भी फिल्म फ्लॉप नहीं हुई है. किसी ने वितरकों, निर्माताओं को घाटा नहीं दिया है. शंकर अपनी हर अगली फिल्म के साथ देश के (बॉलीवुड समेत) सबसे मोटी कमाई करने वाले निर्देशक के तौर चर्चा में आते जाते हैं. आज से दस बरस पहले वे एक फिल्म डायरेक्ट करने के इतने करोड़ लेते थे जितने तब शाहरुख-सलमान भी नहीं लेते थे. उन्होंने अपनी फिल्मों में टेक्नोलॉजी का निरंतर बढ़ता इस्तेमाल किया, उन्होंने गानों की भव्यता में कभी कमी नहीं आने दी. बैकग्राउंड डांसर सदा बढ़ते ही रहे. इंग्लिश भाषा, अमेरिका में पढ़ा नायक, अमेरिका में बसा नायक, अमेरिका से पढ़कर गांव की सेवा करने लौटा नायक, विदेशी चेहरों की गानों में मौजूदगी.. इसका चाव भी उनसे छूटा नहीं. दरअसल ये एक ट्रिक भी है क्योंकि कम-जागरूक और अमीरी की संकरी रेखा से बहुत दूर खड़े दर्शकों के मन में गोरी चमड़ी की बड़ी लालसा है. विदेश, संपन्नता और स्थानीय समाज में सम्मान का विषय भी ठहरा. शंकर इसे भुनाते हैं. यही वजह है कि अपनी फिल्म 'आई' के ऑडियो लॉन्च पर सितंबर 2014 में उन्होंने अर्नोल्ड श्वॉर्जनेगर को बुलाया. ये हॉलीवुड एक्शन हीरो इससे पहले किसी भी भारतीय फिल्म के किसी लॉन्च का हिस्सा नहीं रहा है. जाहिर है इससे शंकर और उस फिल्म का कद तमिलनाडु और साउथ के अन्य उद्योगों में बहुत बढ़ गया. अर्नोल्ड ने 'आई' के प्रचार के लिए इंटरव्यू भी दिए. जाहिर बात है उन्होंने इसके अच्छे खासे पैसे लिए थे.
शंकर की फिल्मों में एक और खास संपत्ति होती है सुपरस्टार और सौंदर्यपूर्ण अभिनेत्रियां. ऐसे चेहरे जिनकी ज्यादा से ज्यादा दर्शकों के बीच स्वीकार्यता हो क्योंकि उनकी लोकप्रियता के मामले में महत्वाकांक्षा काफी ज्यादा है. कमल हसन, प्रभु देवा, अर्जुन सरजा, मधु, नग़मा, मनीषा कोइराला, ऐश्वर्या राय, अनिल कपूर, रजनीकांत, विक्रम उनकी फिल्मों में रहे हैं.वे शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन के साथ भी काम करना चाहते थे लेकिन बात नहीं बनी. 'रोबोट' की कहानी उन्होंने शाहरुख को सुनाई लेकिन बात नहीं बनी. जैसे कि 'रोबोट' की सीक्वल '2.0' के लिए आमिर से बात नहीं बनी क्योंकि शाहरुख, आमिर, शंकर अपने आप में कमर्शियल सफलता के संस्थान है और ये सदा अपने सारे रचनात्मक कार्य के संपूर्ण अधिकार अपने पास रख पाने की स्थिति में ही समय और ऊर्जा लगाते हैं. रोबोट में अमिताभ बच्चन को उन्होंने विलेन का रोल पेश किया था लेकिन बच्चन ने मना कर दिया क्योंकि उनकी पिछली ग्रे शेड्स वाली फिल्में नहीं चली थीं.
अब '2.0' में शंकर ने अक्षय कुमार को खतरनाक और बेहद बुरा लगने वाला विलेन बना दिया है. अक्षय की ये पहली तमिल फिल्म होगी.

रोबोट-2 में अक्षय का लुक.
फिल्म बनाने के दौरान शंकर का फंडा स्पष्ट है. वे खुद को दर्शक और रचयिता इन दो इंसानों में बांट लेते हैं, जो कि ज्यादातर सफल कमर्शियल फिल्म टेक्नीशियन करते हैं. जब उनके अंदर का दर्शक संबंधित दृश्य या रचनात्मक निर्णय से पूरी तरह खुश और संतुष्ट होता है तभी उनके अंदर का फिल्म टेक्नीशियन उसे ओके करता है. यानी कला और गंभीर विमर्श बैकसीट पर होते हैं.
उस महिला केंद्रित सार्थक कहानी की स्क्रिप्ट लेकर निर्माताओं के पास घूमने वाला शंकर अब पूरी तरह अतीत में विलीन हो चुका है. अब उसके पास भी ऐसी स्क्रिप्ट लेकर कोई युवा आता है तो यदि परियोजना में वित्त वसूल न हो रहा हो तो वे भी मना कर देते हैं. वे भी कितने ही शंकरों को अपने द्वार से लौटा रहे होते हैं और उनके सामने एक ही विकल्प छोड़ रहे होते हैं कि वे सब दूसरे दरवाजे से आएं और दैत्याकार मनोरंजन वाली फिल्मों का उत्पादन करें.
ऐसी फिल्में तत्कालीन बाल दर्शकों के बचपन का नॉस्टेलजिया बन जाती हैं, किशोरवय लड़के-लड़कियों की फैंटेसी बन जाती हैं लेकिन वयस्क होने पर अपने आसपास जो समस्याएं उन्हें दिखती हैं उनका समाधान शंकर के vigilante नायक और उनका street justice कभी नहीं कर पाते हैं.