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ये नॉन-लीनियर सिंगल शॉट मूवी क्या बला है, जो दुनिया में पहली बार भारत में बन रही है?

तमिल फ़िल्म 'Iravin Nizhal' को सिंगल टेक में 1,36,228 फ्रेम्स में शूट किया गया है. सिंगल टेक के लिए प्रोडक्शन टीम ने 75 एकड़ में 50 अलग-अलग सेट लगाए थे.

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iravin nizhal non linear single shot film
तीन ऑस्कर वाले लोग एक फ़िल्म में काम कर रहे हैं
6 मई 2022 (Updated: 9 मई 2022, 16:46 IST)
Updated: 9 मई 2022 16:46 IST
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अभी चार दिन पहले एक ख़बर आई थी. जिसमें ए.आर. रहमान के साथ मंच साझा कर रहे एक शख्स ने गुस्सा होकर पत्रकारों पर माइक फेंक दिया था. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफ़ी भी मांगी. उस शख्स का नाम है आर. पार्थिबन. और जिसके लिए वो रहमान के साथ मंच साझा कर रहे थे, वो इवेंट था उनके द्वारा डायरेक्टेड तमिल फ़िल्म 'Iravin Nizhal' का सॉन्ग लॉन्च. इस फ़िल्म में पार्थिबन, वरलक्ष्मी सरथकुमार, आनंद कृष्णन और ब्रिगिडा सागा महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं. फिल्म एक फिफ्टी ईयर ओल्ड मैन की कहानी है, जो अपने अतीत के डिफ़रेंट स्टेज़ेज में मुड़कर देख रहा है. फ़िल्म अपने विषय को लेकर चर्चा में नहीं है. कहानी को लेकर भी चर्चा में नहीं है बल्कि अपने कहन यानी कहानी कहने के तरीके को लेकर चर्चा में है. ऐसा कहा जा रहा है कि इसे सिंगल टेक में 1,36,228 फ्रेम्स में शूट किया गया है. सिंगल टेक के लिए प्रोडक्शन टीम ने 75 एकड़ में 50 अलग-अलग सेट लगाए थे. और कुल 90 दिनों तक तो इसका रिहर्सल चला. ताकि सिंगल शॉट में फ़िल्म को शूट किया जा सके. फ़िल्म में तीन ऑस्कर विनिंग लोगों ने काम किया है.  पहले हैं A. R. Rahman, दूसरे हैं साउन्ड डिजाइनर Craig Mann और तीसरे हैं वीएफएक्स सुपरवाइजर Cottalango Leon.

non linear single shot film
‘इराविन निज़ल’ एक ऐसी फ़िल्म है जिसे सिंगल टेक में शूट किया गया है.

1 मई को इस फ़िल्म का टीज़र आया है. उसमें एक टेक्स्ट लिखकर स्क्रीन पर आता है. इसी के इर्दगिर्द चर्चाओं का बाज़ार गर्म है. The world's first Non-Linear Single Shot Movie. हमारे और आपके टीमअप होने का उद्देश्य है, इसी लाइन को समझना और समझ-समझकर इस लाइन का धागा खोल देना. वर्ल्ड और फर्स्ट का मतलब तो आप जानते हैं. नॉन-लीनियर का मतलब समझते हैं.

ये नॉन-लीनियर क्या बला है?

अजय देवगन की 'फूल और कांटे' देखी है? उनकी एंट्री याद है? दो मोटरसाइकिलों पर पैर फैलाए हुए अजय देवगन चले आ रहे हैं. वो एक बाइक पर भी आ सकते थे. पर आ जाते, तो हम इसका एक्जाम्पल नहीं दे पाते ना. फर्ज करिए, अजय देवगन किसी फ़िल्म के डायरेक्टर हैं, मोटरसाइकिल है कहानी. उनका मन होता है दो कहानियों पर एक साथ सवार होने का. वो सवार होते हैं और दोनों कहानी एक साथ चलाते हैं. जिसमें किसी तरह की क्रोनोलॉजी नहीं है. उनकी मोटरसाइकिलें इधर-उधर भाग रही हैं, तो उसे कहेंगे नॉन लीनियर फ़िल्म.

अब ज़रा सीधा-सीधा समझा देते हैं. नॉन लीनियर फिल्में वो हैं, जिनका नरेटिव एक सीध में न होकर आड़ा-तिरछा हो. 'कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा' यानी स्टोरीटेलिंग की ऐसी तकनीक इस्तेमाल करना जिनमें कहानी एक ऑर्डर में न हो. कुलमिलाकर मूवी का क्रॉनिकल ऑर्डर ब्रेक करना ही नॉन लीनियर नरेटिव है. ऐसे ही एक नॉन लीनियर एडिटिंग टेक्नीक भी होती है. जिसे ज़्यादातर फ़िल्म की कहानी को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ख़ैर वो फिर कभी. तो नॉन लीनियर फिल्मों के लिए डायरेक्टर्स इस्तेमाल करते हैं तमाम तरह के टूल्स. जैसे, कहीं कहानी को फ़्लैश-फॉरवर्ड कर देंगे. कहीं फ्लैशबैक सीक्वेंस आ जाएगा. तो कहीं ड्रीमी सीक्वेंस का इस्तेमाल हो जाएगा. फोरशैडोइंग, टाइम ट्रेवल टाइप के तमाम टूल्स.

dunkirk and 3 idiots movie shot
दो नॉन लीनियर नरेटिव फिल्म्स ‘डंकर्क’ और ‘थ्री इडियट्स’

आपने नोलन बाबा की 'डंकर्क' देखी है? जिसमें चार कहानियां एक साथ चलती हैं. कभी स्क्रीन पर कोई कहानी चलने लगती है और कभी कोई. इससे थोड़ा नीचे लुढ़क आते हैं. 'थ्री इडियट्स' तो देखी ही होगी. उसमें कहानी शुरू वर्तमान से होती है और भूतकाल में पहुंच जाती है. प्रेजेंट और पास्ट एक साथ चल रहे होते हैं. इसे ही कहते हैं नॉन लीनियर स्टोरीटेलिंग टेक्नीक.

सिंगल शॉट मूवी क्या है?

अब आते हैं 'इराविन निज़ल' के टीज़र में इस्तेमाल लाइन के दूसरे टर्म पर. यानी सिंगल शॉट मूवी. भारत एक देश है. इस देश में एक स्टेट है, यूपी. यूपी में एक जिला है, लखनऊ. लखनऊ में एक तहसील है बीकेटी और तहसील में एक गांव है जगदीशपुर और जगदीशपुर में एक घर है और उस घर में आपका एक कमरा है. बड़ा मामला छोटा होता गया ना. ऐसे ही एक फ़िल्म इंडस्ट्री है. उसमें एक फ़िल्म है. फ़िल्म में कई सीक्वेंसेज़ हैं. एक सीकवेन्स में कई सीन्स हैं और एक सीन में कई शॉट्स हैं. एक शॉट में कई सारे फ्रेम्स हैं. यानी यहां भी मामला बड़ा से छोटा होता गया है. फ़िल्म बनने की प्रॉसेस को आप समझते हैं, तो जानते होंगे एक फ़िल्म में कई शॉट्स होते हैं. एक शॉट लेने में कई रीटेक्स लगते हैं. आप से कोई कहे कि पूरी फ़िल्म ही एक शॉट और एक टेक में बनी है तो आप यक़ीन करेंगे? नहीं करेंगे ना? पर जिस बात पर आप भरोसा न करें वही तो अजूबा है. यानी एक शॉट और बिना कट के पूरी फ़िल्म बन गई. शॉट्स मर्ज करने के लिए एडिटिंग की भी ज़रूरत नहीं.

movie shot 1917
हालिया दिनों में आई सिंगल शॉट मूवी का बेहतरीन उदाहरण ‘1917’

2019 में एक ऑस्कर विनिंग वॉर फ़िल्म आई थी '1917', जिसे ऐसे शूट किया गया था कि वो सिंगल शॉट में फिल्माई गई मूवी लगे. ऐसी ही एक फ़िल्म है 2014 में आई 'बर्डमैन' उसे भी ऐसे ही शूट किया गया था कि ये सिंगल टेक में शूट की गई मूवी लगे.

पहली सिंगल शॉट फ़िल्म

सिंगल शॉट मूवीज़ का इतिहास बहुत पुराना है. सबसे पहले ऐसा करने का प्रयास अल्फ्रेड हिचकॉक ने 1948 में आई 'रोप' के ज़रिए किया था. इसमें उन्होंने 10-10 मिनट लंबे टेक्स इस तरीके से फिल्माए कि एडिटिंग के दौरान कट्स को छुपाया जा सके. कहीं किसी के बॉडी में जूम कर दिया, कहीं फ़र्नीचर में कैमरा घुसेड़ दिया. ऐसी कई और फिल्में हैं जिनमें मेकर्स ने ऐसा दिखाने की कोशिश की है कि फ़िल्म सिंगल शॉट मूवी है. यानी एक टेक में पूरी फ़िल्म शूट की गई है जैसे: 'टाइम कोड', 'रशियन आर्क', 'फिश एंड कैट'.

rope movie shot
1948 में आई फ़िल्म ‘रोप’
नॉन-लीनियर सिंगल शॉट मूवी क्या है?

हमने अभी जितनी फ़िल्मों की बात की उन सभी फिल्म्स में ऐसा है कि इनकी स्टोरीटेलिंग लीनियर है. यानी एक सीध में सब होता चला जा रहा है. सिनेमैटोग्राफर उसे फ़िल्माता जा रहा है. पर जिस फ़िल्म के टीज़र का अभी हमने ज़िक्र किया है उसमें कहा गया है कि ये फ़िल्म वन शॉट तो है ही, साथ ही नॉन लीनियर भी है. अब इतनी देर से हम ज्ञान दे रहे थे तो आप समझ ही गए होंगे. नॉन-लीनियर और सिंगल शॉट की परिभाषा को आपस में मिलाइए, जो परिभाषा बने उसे कहेंगे नॉन-लीनियर सिंगल शॉट मूवी की डेफ़िनेशन. यानी एक ही शॉट में पूरी फ़िल्म शूट हुई हो और उसमें कई कहानियां या तो एक ही कहानी के क्रॉनिकल ऑर्डर को ब्रेक किया गया हो.

ऐसे समझिए. जैसे एक ही शॉट में पूरी फ़िल्म बनी और उसी में राम और श्याम दोनों की कहानी चल रही है. राम का भी घर दिखाया जा रहा है और श्याम का भी. बीच में कोई कट भी नहीं है. सब लगातार चल रहा है. यानी अजय देवगन दोनों मोटरसाइकिलों पर सवार हैं. बेतरतीब चलाई में कभी राम, तो कभी श्याम के घर में बाइक लेकर घुस जाते हैं. एक नॉर्मल फ़िल्म बनाना अपने आप में बहुत बड़ा टास्क होता है. चोटी का पसीना एड़ी में आ जाता है. सोचिए एक ही शॉट में पूरी फ़िल्म बनाना वो भी नॉन लीनियर. अद्भुत, अकल्पनीय. बहुत ही अभिनव और क्रांतिकारी प्रयोग है. इसके लिए फ़िल्म के डायरेक्टर और सिनेमैटोग्राफर दोनों को दाद देनी पड़ेगी.

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