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होटलों में गाने वाले लड़के को जगजीत सिंह ने कुमार सानू बना दिया

ऑटो वाली दुनिया के बेताज बादशाह कुमार सानू के किस्से

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कुमार सानू जेठ की दोपहरी में ठंडे शरबत की तरह हैं
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अनुभव बाजपेयी
20 अक्तूबर 2022 (Updated: 20 अक्तूबर 2022, 03:56 PM IST) कॉमेंट्स
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छोटे शहरों के ऑटो वालों का अलग संसार है. हम इक्कीसवीं सदी में हैं. पर उनका मन अभी बीसवीं सदी में कहीं विचर रहा है. आज भी ऑटो में बैठेंगे, तो लगेगा किसी ने 90 के दशक में धक्का दे दिया है. वहां आपको अलका याग्निक, सोनू निगम, उदित नारायण, अभिजीत और ऐसे ही उस दौर के तमाम सिंगर्स के गाने बजते मिलेंगे. इनमें से एक नाम है, जिसकी छाप बहुत गाढ़ी है. लगभग सबने उसे पसंद किया और आज भी करते हैं. जनता के दिलों पर एकक्षत्र राज करने वाले कुमार सानू. उनकी आवाज़ के जादू ने हज़ारों फैंस कमाए. एक से एक फैन किसी ने उनकी फोटो से शादी कर ली. किसी ने उनके नाम के टैटू गुदवा लिए. सोचिए कैसा जलवा था कुमार का कि पांच बार लगातार फ़िल्मफेयर अपने नाम किया. 26 भाषाओं में 20 हजार से ज़्यादा गाने गाए. उनकी ऐसी पूछ थी कि एक बार एक ही दिन में उन्होंने 28 गाने रिकॉर्ड किए. ख़ैर, ये तो बात है, जब वो बड़े सिंगर बन गए. बॉलीवुड में स्थापित हो गए. आपको उनके शुरुआती दौर के तीन मज़ेदार किस्से सुनाते हैं.

# किशोर कुमार का गाना गाया, 5000 की टिप मिल गई

कुमार सानू के घर में गाने का माहौल था. पिता पशुपति भट्टाचार्या भी सिंगर-कम्पोज़र थे. पर उनकी शास्त्रीय संगीत में पैठ थी. कुमार फ़िल्मी सिंगर बनना चाहते थे. सानू ने पिता से ही सीखा और ख़ूब सीखा. गाने से पहले वो तबला भी बजाया करते थे. मन में सपना तो सिंगर बनने का ही था. इसलिए मुम्बई आ गए. यहां वाशी इलाक़े में कुछ लोगों से जान-पहचान हो गई. उन लोगों ने एक मेस में उनके रहने-खाने का इंतज़ाम कर दिया. बस बदले में कुमार को दो-तीन गाने वहां गाने होते. बात बन गई. उनका मुम्बई में स्ट्रगल करने का इंतज़ाम हो गया. इसी दौरान वो एक होटल गए. वहां देखा कि एक लड़का गाना गा रहा है. सानू को लगा ये काम तो वो भी कर सकते हैं. होटल मालिक से मुलाक़ात की. अपनी मंशा ज़ाहिर की. वो राज़ी भी हो गया. पर मालिक के सामने एक संकट था, जो उनके यहां पहले से गा रहा है, उसका वो क्या करे? फिर भी बड़े मान मनौव्वल के बाद सानू को एक गाना गाने का मौक़ा मिला. किशोर के फैन कुमार ने गाया 'मेरे नैना सावन भादौ, फिर भी मेरा मन प्यासा'. होटल में आये कस्टमर्स मंत्रमुग्ध हो गए. टिप देने का सिसलिला शुरू हुआ. देखते-देखते पांच हजार रुपए इकठ्ठे हो गए. फिर क्या था. होटल के मालिक ने कहा: आज गाना गाते रहो और कल से तुम्हारे लिए यहां गाने का स्लॉट पक्का.  

# जगजीत सिंह ने सुना और भाग खुल गए

कुमार को प्लेबैक सिंगर के तौर पर पहला मौक़ा 1986 में आई बांग्लादेशी फ़िल्म 'तीन कन्या' में मिला. बॉलीवुड में इसके ठीक तीन साल बाद 'हीरो हीरालाल' से उन्होंने डेब्यू किया. पर बॉलीवुड में उनके लिए एक शख्स मसीहा बनकर आया. उनके जीवन में जगजीत सिंह की आवती हुई. उन्होंने ही सानू को कई बड़े-बड़े कम्पोजर्स से मिलवाया. ऐसा कहते हैं कि कुमार को शुरुआती दौर के गाने जगजीत की वज़ह से ही मिले. दरअसल कुमार को होटलों में गाने के लिए जो पैसे मिलते. उससे वो गाने रिकॉर्ड करते, उनके कैसेट बनाते. ऐसी ही एक कैसेट के लिए वो किसी स्टूडियो में किशोर कुमार का कोई गाना रिकॉर्ड कर रहे थे. उसी वक़्त जगजीत भी वहां थे. उन्हें सानू की आवाज़ और गायकी दोनों पसंद आई. उन्होंने सानू को घर बुलाया. एक गाना सिखाया. उसे रिकॉर्ड किया. सानू के साथ कल्याणजी-आनन्दजी के पास पहुंच गए. वो भी सानू की गायकी से प्रभावित हुए. उन्हें अपने शो में ले लिया. सानू अब उनके शोज़ में गाने लगे. उस समय उनका नाम हुआ करता था केदारनाथ भट्टाचार्य. कल्याणजी-आनन्दजी का मानना था कि इस बंगाली नाम के साथ हिंदी गाने पाना मुश्किल होगा. चूंकि केदार की आवाज़ और अंदाज़ किशोर कुमार से मिलती थी. सानू उनके घर का नाम था. उसी वक़्त केदारनाथ भट्टाचार्य कुमार सानू बन गए. आगे चलकर कुमार ने कल्याणजी-आनन्दजी के लिए 'जादूगर' फ़िल्म में गाना भी गाया.

#अमित कुमार की जगह कुमार सानू को चुना गया 

80 का दशक ख़त्म हो रहा था, 90 का शुरू हो रहा था. इसी दौर की बात है. डेविड धवन 'आंधियां' बना रहे थे. इसमें बप्पी लाहिड़ी म्यूजिक दे रहे थे. शत्रुघ्न सिन्हा के लिए एक प्लेबैक वॉइस की ज़रूरत थी. किशोर कुमार के बेटे अमित कुमार का नाम तय हुआ. रिकॉर्डिंग की तारीख़ भी तय हो गई. पर अमित कुमार स्टूडियो नहीं पहुंचे. काफ़ी देर इंतज़ार हुआ. उस समय जगजीत सिंह और उनके साथ कुमार सानू भी स्टूडियो में मौजूद थे. जगजीत सिंह ने कहा एक बार कुमार से गवाकर देखो. तय ये हुआ कि गाना पसंद नहीं आया, तो बाद में उसे अमित कुमार से गवाया जाएगा. पर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. कुमार की आवाज़ में गाना पास हो गया. गाना था 'फिर दिल ने वो चोट खाई' उसके बाद 'आशिक़ी' आई, फिर तो कुमार सानू चमक गए. 'आशिक़ी' के बनने और उसमें कुमार सानू के गानों के शामिल होने की भी एक कहानी है. जो फिर कभी. फ़िलहाल के लिए अलविदा.

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