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राम गोपाल वर्मा या अनुराग कश्यप? मनोज बाजपेयी ने छूटते ही रामू को क्यों चुना?

एक इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी से पूछा गया था कि उनका फेवरेट डायरेक्टर कौन है, राम गोपाल वर्मा या अनुराग कश्यप. उनके जवाब से शायद अनुराग भी सहमत होंगे.

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manoj bajpayee reveals who is his favorite director between ram gopal verma and anurag kashyap
मनोज बाजपेयी के करियर की शुरुआत राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ से हुई थी. (फोटो- ट्विटर)
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प्रशांत सिंह
6 दिसंबर 2023 (Published: 09:12 PM IST)
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मनोज बाजपेयी इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘जोरम’ के प्रमोशन में लगे हुए हैं. फिल्म 8 दिसंबर को रिलीज होगी. ‘बंदा’ के बाद ये मनोज की अगली फिल्म है. डायरेक्टर देवाशीष मखीजा ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है. फिल्म एक सर्वाइवल थ्रिलर बताई जा रही है. इसके प्रमोशन के दौरान ई-टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी ने कुछ दिलचस्प बातें बताईं.

मनोज बाजपेयी का फेवरेट डायरेक्टर कौन?

इंटरव्यू के दौरान रैपिड फायर राउंड में मनोज से सवाल किया गया कि वो राम गोपाल वर्मा या अनुराग कश्यप में से किसे चुनेंगे? सवाल का जवाब देते हुए बाजपेयी ने कहा,

“राम गोपाल वर्मा. क्योंकि उन्होंने अनुराग और मुझे जीवन भर के लिए काम दिया है.”

मनोज के जवाब पर देवाशीष ने सहमति जताई और कहा,

“अगर रामू नहीं होता, तो अनुराग भी नहीं होता.”

बता दें कि एक्टर मनोज बाजपेयी के करियर की शुरुआत राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ से हुई थी. मनोज के करियर में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ एक टर्निंग प्वाइंट थी. यहां तक कि गैंग्स में उनका रोल उनके टॉप रोल में से एक माना जाता है. यहां एक और फैक्ट बता देते हैं. अनुराग कश्यप ‘सत्या’ के को-राइटर थे और ये उनके लिए एक बड़ा ब्रेक था, जो राम गोपाल वर्मा ने उन्हें दिया था.

इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी ने अपने पसंदीदा को-स्टार के बारे में भी बताया, जिनके साथ वो काम करना मिस करते हैं. उन्होंने कहा,

“सौरभ शुक्ला और शारिब हाशमी. बहुत जल्द मैं दी फैमिली मैन के सीजन 3 में दोनों के साथ काम करूंगा. मैं जीशान अय्यूब के साथ काम करना भी मिस करता हूं, जो जोरम का हिस्सा हैं.”

‘जोरम’ किस बारे में है?          

‘जोरम’ मनोज बाजपेयी और देवाशीष मखीजा का दूसरा प्रोजेक्ट है. दोनों ने इससे पहले ‘भोंसले’ बनाई थी जिसके लिए मनोज बाजपेयी को नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. 

बात ‘जोरम’ की चल रही थी. ‘जोरम’ तीन महीने की एक बच्ची है. जिसे उसके पिता ने साड़ी में लपेट रखा है. और उसे अपनी छाती से लगाकर भटक रहा है. पुलिस की गोली से बचता-बचाता. अनजान दुश्मन की तलवार से भागता. आदिवासी समुदाय से आने वाला दसरू मुंबई शहर में अपनी पत्नी और छोटी बच्ची के साथ रहता है. जीवन किसी तरह मज़दूरी कर के कट रहा है. एक रोज़ काम से घर लौटता है. पाता है कि किसी ने उसकी पत्नी की हत्या कर दी है. दसरू कुछ समझ पाता अचानक उस पर हमला हो जाता है. दुनिया, मीडिया और इंटरनेट सभी ये मान लेते हैं कि दसरू ने ही अपनी पत्नी को मारा है. लेकिन उसे सच तक पहुंचना है. पुलिस से बचना है. उन लोगों तक पहुंचने हैं जिन्होंने उसकी दुनिया तबाह कर डाली.

फिल्म का ट्रेलर देखने से ये रिवेंज ड्रामा किस्म की कहानी लगती है. लेकिन ‘जोरम’ की कहानी कहीं ज्यादा गहरी है. मखीजा की लिखी ये फिल्म एक मज़बूत पॉलिटिकल कमेंट्री है. ‘जोरम’ में दर्शक खुद को मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब के कैरेक्टर के ज़रिए ढूंढ पाएंगे. उनका किरदार एक ईमानदार पुलिस वाले का है जो बस अपनी ड्यूटी कर रहा है. उसे दसरू को पकड़ना है. दसरू की खोज उसे गांव तक लेकर जाती है. ज़मीनी हकीकत के करीब लेकर जाती है. उसका नज़रिया पूरी तरह घूम जाता है. सही और गलत की सीखी-सिखाई धारणा से सवाल कर उससे लड़ने की कोशिश करने लगता है. फिल्म में उनके और मनोज बाजपेयी के अलावा तनिष्ठा चैटर्जी और स्मिता तांबे भी हैं.

वीडियो: मनोज बाजपेयी की सिर्फ एक बंदा काफी है, पीसी सोलंकी की बायोपिक है, उन्होंने मेकर्स पर केस कर दिया

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