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वेब सीरीज़ रिव्यू- जुबली

'जुबली' इंडिया में फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बना सबसे जहीन सीरीज़. जो आपका समय मांगती नहीं, कमाती है.

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'जुबली' का पोस्टर.
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श्वेतांक
14 अप्रैल 2023 (Updated: 14 अप्रैल 2023, 10:48 PM IST) कॉमेंट्स
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एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर एक सीरीज़ आई है Jubilee. टोटल 10 एपिसोड हैं. पांच पहले आ गए थे. पांच इस शुक्रवार को आए. 'जुबली' की कहानी 1940 के दशक में शुरू होती है. आज़ादी के ठीक पहले वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में. आज़ादी से पहले और उसके बाद इंडस्ट्री के काम करने के तरीके में क्या बदलाव आया. एक बड़ा स्टूडियो है. तीन एक्टर्स हैं- जमशेद खान, बिनोद दास और जय खन्ना. इनका करियर बड़ा स्टार बनने और अच्छा काम करने के बीच डोल रहा है. एक लड़की है नीलोफर, जो किसी न किसी मोड़ पर इन तीनों से जुड़ी रही है. जुबली वैसे तो फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बात करती है. मगर फिल्में और उसमें काम करने वाले लोगों की पर्सनल लाइफ भी इस कहानी की जद में आ जाती है. 1940 से लेकर 1955 तक की फिल्म इंडस्ट्री के बारे में आपने जितनी गॉसिप सुनी होगी, तकरीबन वो सब ये सीरीज़ कवर करती है. और आप तार जोड़ते रहते हैं. 
  
'जुबली' इंट्रेस्टिंग सीरीज़ है. शायद इंडिया में बनी वो पहली सीरीज़ जो फिल्म इंडस्ट्री को इतनी बारीकी से देखती है. असलियत से करीब बनी रहती है. थोड़ी धीमी शुरू होती है. शुरुआती कुछ एपिसोड्स में जुड़ाव महसूस नहीं होता. अगर आप शुरुआती पांच एपिसोड देख गए, तो ईनाम के तौर पर आपका अगले पांच एपिसोड मिलते हैं. इसमें जो होता है, वो बहुत टाइम से इंडियन वेब स्पेस में नहीं हुआ था. फिल्म इंडस्ट्री का डार्क साइड, जिसमें सबके असली रंग नज़र आते हैं. क्योंकि जिन किरदारों के साथ आपने ये जर्नी शुरू की थी, अब वो कहीं पहुंच रहे हैं. सबको इंडस्ट्री में बड़ा बनना है. मगर खेल ये है कि कौन वहां तक पहुंचने के लिए कहां तक जा सकता है.        

हमारी मुलाकात सबसे पहले बिनोद दास से होती है. बिनोद, श्रीकांत और सुमित्रा रॉय के रॉय स्टूडियो में सुपरवाइज़र लेवल की नौकरी करती है. रॉय बाबू का बहुत खास आदमी है. बिनोद ये कहानी खोलता है. उसकी एक दबी हुई इच्छा है. जिसे ज़ाहिर करने के लिहाज से वो खुद को बहुत छोटा पाता है. मगर वो लगातार उसकी तैयारी कर रहा है. बिनोद लखनऊ गया है, जमशेद खान को बंबई लाने के लिए. क्योंकि रॉय स्टूडियो उसे 'मदन कुमार' बनाकर लॉन्च करना चाहता है. इस रात जमशेद, बिनोद और जय पहली बार एक साथ मिलते हैं. मगर यहां कुछ ऐसा होता है, जो तय करता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अलगे 15 सालों में कैसे आगे बढ़ेगी.

बिनोद दास इस फिल्म का हीरो हो सकता है. मगर वो सबसे बंधा हुआ कैरेक्टर है. पूरी फिल्म में वो कई चीज़ें मजबूरी में करता है. क्योंकि वो हमेशा ऐसी सिचुएशन में होता है, जहां वो किसी ना नहीं कह पाता. जबकि जय खन्ना उसके ठीक उलट है. वो किसी के प्रेशर में आकर कोई काम नहीं करता. मगर सीरीज़ के खत्म होते-होते तक आप पाते हैं कि वो भी बिनोद जैसा बनता जा रहा है. सीरीज़ के एक सीन में जय कहता है, उधार के लिए मैं अपना ईमान नहीं गिरवी रख सकता. कुछ सीन बाद वो ठीक वही करता है, जो उसने कभी नहीं करना था.

एक्टर्स/स्टार्स अपने क्राफ्ट, स्टारडम और करियर को लेकर कितना पजेसिव रहते हैं, ये आपको 'जुबली' कई बार दिखाती है.

बिनोद, नीलोफर से पूछता है, क्या जमशेद खान मुझसे बेहतर था?

नीलोफर को कुछ समझ नहीं आता. वो पूछती है, बिस्तर में?

बिनोद कहता है, नहीं, मदन कुमार बनने में?  

जय खन्ना को प्रेम और फिल्मों के बीच चुनाव करना पड़ता है. तो वो फिल्में चुनता है. 'जुबली' बुनियादी तौर पर कुछ लोगों की कहानी है. जो हमारी-आपकी तरह खामियों से भरे हुए हैं. फर्क बस ये है कि वो लोग फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हैं. इस सीरीज़ में शायद ही ऐसा कोई कैरेक्टर है, जिसे नैतिकता के पैमाने पर कसा जा सके. मगर उन्हें गलत मानकर खारिज भी नहीं किया जा सकता. उनकी अपनी वजहें हैं. कुंठाएं हैं. वो भी अना और गुस्से से भरे हुए लोग है. उन्हें जहां पहुंचना है, उस रास्ते में इतने आगे बढ़ चुके हैं कि वापसी का रास्ता बंद हो चुका है. जमशेद इकलौता कैरेक्टर है, जो स्टारडम या पैसे के पीछे नहीं भाग रहा था. उसे अच्छा काम करना था.

सुमित्रा रॉय 'मदन कुमार' बनने का ऑफर जमशेद के पास लेकर जाती हैं. वो मना कर देता है. सुमित्रा पूछती हैं कि कामयाब ज़िंदगी क्यों छोड़ना चाहते हो. इस पर जमशेद कहता है-

''रॉय स्टूडियो मुझे कामयाबी नहीं फेम देगा. जब जो काम करने का मन करे, वो करने की आज़ादी और खुदमुख़्तारी हो. वो सक्सेस है.''

‘जुबली’ के अलग-अलग सीन्स में अपारशक्ति, सिद्धांत गुप्ता, अदिति राव हैदरी, वमिका गाबी और प्रोसेनजीत चैटर्जी.

जमशेद रोल नंदिश सिंह संधू ने किया है. इस सीरीज़ में जो फिल्म इंडस्ट्री है, वो उसका सबसे अच्छा एक्टर माना जाता है. इसलिए खन्ना थिएटर कंपनी से लेकर रॉय स्टूडियो सब चाहते हैं कि जमशेद उनके साथ काम करे. मगर उसका अपना फंडा है. बिनोद दास का रोल किया है अपारशक्ति खुराना ने. अपार ने अपने करियर में अधिकतर वन डायमेंशनल रोल्स किए हैं. हीरो का कॉमिक दोस्त. मगर 'जुबली' के हीरो वो खुद हैं. जो कई भावों से गुज़रता है. वो अपने बॉस श्रीकांत रॉय के सामने उनका सहमा हुआ कर्मचारी बन जाता है. मगर वहां से निकलते वो सुपरस्टार मदन कुमार है. मगर घर उसे बिनोद दास बनकर जाना है. और जितना समय वो खुद के साथ गुज़ारता है, उसमें वो अलग आदमी होता है. गिल्ट से भरा हुआ. इस रोल में अपारशक्ति खुराना ने अपना सब झोंक दिया है. मगर उनकी मेहनत दिखती नहीं है. यही चीज़ उनके फेवर में काम करता है. बड़ी आसानी से इसे उनका अब तक का सबसे अच्छा काम माना जा सकता है.

श्रीकांत रॉय का रोल किया है प्रोसेनजीत चैटर्जी ने. प्रोसेनजीत का किरदार सीरीज़ के पहले हाफ में ज़्यादा भारी है. आखिरी पांच एपिसोड में वो ज़्यादा नहीं दिखते है. मगर आप आंख मूंदकर भरोसा कर लेते हैं कि किसी फिल्म स्टूडियो का मालिक ऐसा होता होगा. वो जितना ही पावरफुल और चतुर है, उतना ही चार्मिंग. और प्रोजेनजीत का ये ट्रांज़िशन एक दम स्मूदली होता है. अदिति राव हैदरी ने सुमित्रा रॉय का रोल किया है. मगर इस किरदार के पास कुछ ज़्यादा करने को नहीं है. वो सीरीज़ में यहां-वहां नज़र आती रहती हैं. अधपका और बुरा लिखा हुआ रोल. हीरोइन बनने की हाराकिरी में लगी हुई नीलोफर का रोल किया है वमिका गाबी ने. उनका स्क्रीनटाइम कम है. मगर वमिका की परफॉरमेंस यादगार है. मैंने उन्हें पहली बार 'ग्रहण' से जाना था. और मैं अभी भी उसे वमिका का बेस्ट काम मानता हूं.

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‘जुबली’ में सिद्धांत ने एक रिफ्यूजी का रोल किया है, जो आगे चलकर हिंदी फिल्मों का सुपरस्टार बनता है.

'जुबली' सीरीज़ की खोज हैं सिद्धांत गुप्ता. इन्होंने जय खन्ना का रोल किया है. पार्टीशन के बाद पाकिस्तान से भारत आने वाले लड़का, जो रिफ्यूजी कैंप में रहता है. इस किरदार की इंट्रेस्टिंग बात ये है कि वो दिखता भारत भूषण जैसा है. उसका करियर राज कपूर स्टाइल में बढ़ रहा है. और प्रेम जीवन किसी आम लड़के जैसा. सिद्धांत की रैग्स टु रिचेज़ वाली स्टोरी है. मगर वो रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले लड़के की मजबूरी और सुपरस्टार वाला ऐंठ, दोनों में एक किस्म की तारतम्यता बनाकर रखते हैं. जो बहुत प्रभावशाली लगता है. कहानी और परफॉरमेंस दोनों के संदर्भ में. फिल्म फाइनेंसर शमशेर वालिया का रोल किया है राम कपूर ने. राम कपूर ने खूब एंजॉय करते हुए ये रोल किया है. जो एंटरटेनिंग बन पड़ा है.          

'जुबली' को बड़े सेंसिबल तरीके से लिखा गया है. आपको कमोबेश पता है कि क्या होने वाला है. क्योंकि सीरीज़ ने वो बात कभी आपसे छुपाई नहीं. मगर आप फिर भी देखना चाहते हैं. क्योंकि माहौल वैसा बन गया है. इंडिया में फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बना सबसे जहीन शो. जो आपका समय मांगती नहीं, कमाती है.

'जुबली' को एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम कर सकते हैं. 

वीडियो: सीरीज रिव्यू: कैसी है 'रॉकेट बॉयज़ 2'?

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