फिल्म रिव्यू- गंगूबाई काठियावाड़ी
'गंगूबाई काठियावाड़ी' कुछ ग्लीचेज़ के साथ प्रॉपर संजय लीला भंसाली फिल्म है.
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ये फिल्म के सबसे कमज़ोर हिस्से से आने वाली तस्वीर है. मगर इस फ्रेम की खूबसूरती से इम्प्रेस हुए बिना नहीं रहा जा सकता.
देश के कई इलाकों में 'गंगा' नाम की लड़कियों को 'गंगू' या 'गंगूबाई' बुला लिया जाता है. वो लोकल बोलचाल का हिस्सा है. मगर इस फिल्म में गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी को तीन हिस्सों में तोड़कर दिखाया गया है. इन तीनों हिस्सों को 'गंगा', 'गंगू' और 'गंगूबाई' जैसे नामों से चिह्नित किया गया है. अब थोड़ा सा फैक्ट चेक कर लेते हैं. कई रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया जा रहा है कि सेंसर बोर्ड के आदेश पर फिल्म का एक हिस्सा काट दिया गया है. जिसमें गंगूबाई का किरदार देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु से मिलता है. ये गलत खबरें हैं. वो सीन फिल्म में है. और सबसे ज़रूरी सीन्स में से एक है.

गंगा से गंगू बनने के प्रोसेस में.
'गंगूबाई काठियावाड़ी' कुछ ग्लीचेज़ के साथ प्रॉपर संजय लीला भंसाली फिल्म है. जिन ग्लीचेज़ की हम बात कर रहे हैं, उसमें से एक है फिल्म का गाना 'ढोली दा'. इस गाने में गंगूबाई खुलकर नाचती है. मगर आखिर में लड़खड़ा जाती है. इस सीन की मदद से हमें गंगूबाई की वल्नरेबल साइड दिखाई जा रही थी. मगर ये भंसाली ब्रांड ऑफ सिनेमा से बिल्कुल अलग है. संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में इंप्रोवाइज़ेशन का स्कोप नहीं रखने के लिए जाने जाते हैं. उनका गेम प्लांड टू परफेक्शन वाला होता है. अगर ये सीन प्लांड नहीं था, तो भंसाली साहब को साधुवाद कि वो कुछ अलग करने की कोशिश कर रहे थे. और अगर प्लांड था, तो उस सीन में आलिया की परफॉरमेंस की तारीफ होनी चाहिए. वो गाना आप यहां देख सकते हैं-
'गंगूबाई काठियावाड़ी' में कई ऐसे सीन्स और डायलॉग्स हैं, जो आपको याद दिलाते रहते हैं कि आप एक सेक्स वर्कर की कहानी देख रहे हैं. फिल्म में आलिया और जिम सर्भ के बीच एक सीन है. इसमें जिम का किरदार खुद को जर्नलिस्ट बताकर इंट्रोड्यूस करता है. इसके जवाब में गंगूबाई कहती है- 'तुम जर्नलिस्ट, मैं प्रॉस्टिट्यूट'. एक दूसरे सीन में जब गंगूबाई स्टेज पर भाषण देती है, तो अपने इंट्रो में बोलती है-
''कुंआरी आपने रहने नहीं दिया और श्रीमति किसी ने बनाया नहीं.''
इस तरह की वजनदार लाइनों से फिल्म में हल्के-फुल्के मोमेंट्स क्रिएट किए जाते हैं. ये अन-अपोलोजेटिक ऐटिट्यूड इस फिल्म के फेवर में काम करता है. 'गंगूबाई काठियावाड़ी' कोई ऐसी कहानी नहीं है, जो आपने पहले सुनी या देखी नहीं हो. इस सब्जेक्ट के इर्द-गिर्द जो भी फिल्में बनाई गई हैं, सबमें कमोबेश एक सी ही कहानी होती है. हम उस कहानी को छोटा या कमतर नहीं बता रहे. हमारा कहना ये है कि 'गंगूबाई काठियावाड़ी' उसी चीज़ को थोड़े ग्रैंड लेवल पर ले जाती है. इसकी नायिका दुखियारी नहीं है. अपनी पिक्चर की हीरो है. डायलॉग और लात दोनों मारती है.
ये उसी स्पीच की फोटो है, जिसका ज़िक्र हमने ऊपर किया था.
फिल्म में आलिया भट्ट ने टाइटल कैरेक्टर प्ले किया है. आलिया काबिल एक्ट्रेस हैं. इस फिल्म में भी उनका काम बाकमाल है. मगर आप फिल्म देखते हुए उस रोल में तबू या माधुरी दीक्षित जैसी एक्ट्रेसेज़ को इमैजिन किए बिना नहीं रह पाते. उनके अलावा सीमा पाहवा ने शीला मासी का रोल किया है. शीला ही वो महिला है, जो जबरदस्ती गंगा को जिस्मफरोशी के धंधे में ले आती है. सीमा पाहवा को मिडल क्लास फैमिली की फनी बुआ-आंटी वाले रोल से कुछ अलग करते देखकर अच्छा लगता है. विजय राज ने फिल्म में रज़िया नाम का एक ट्रांसजेंडर कैरेक्टर प्ले किया है, जिसकी कमाठीपुरा में बहुत रौब है. मगर रज़िया फिलर टाइप कैरेक्टर बनकर रह जाता है. फिल्म में विजय के एक-दो सीन्स हैं, जिनमें उन्हें परफॉर्म करने का मौका मिलता है. मगर उसका स्क्रीनटाइम बहुत कम है. आप फिल्म में उन्हें और देखना चाहते हैं.

फिल्म में अपने सबसे पावरफुल सीन के दौरान आलिया भट्ट के साथ विजय राज.
अजय देवगन फिल्म में रहीम लाला नाम के किरदार में दिखते हैं, जो रियल लाइफ डॉन करीम लाला से प्रेरित है. वो छोटा होकर भी फिल्म के लिए ज़रूरी किरदार बनकर उभरता है. क्योंकि एक घटना की वजह से गंगू की कहानी बदल जाती है. उस बदलाव में रहीम लाला का बड़ा हाथ है.

गंगू का लाइफ चेंजिंग मोमेंट. यहां से गंगू के गंगूबाई बनने का सफर शुरू होता है. तस्वीर में दिख रहे हैं रहीम लाला के किरदार में अजय देवगन. मीनिंगफुल कैमियो.
'गंगूबाई काठियावाड़ी' काठियावाड़ी एक वेल मेड फिल्म है. जिसे बड़ी स्क्रीन पर देखना चाहिए. वैसे ही अपने यहां महिलाओं को इस तरह के किरदार में लेकर बेहद कम फिल्में बनती हैं. मगर फिल्म में कुछ चीज़ें ऐसी हैं, जो समझ नहीं आती हैं. सबसे पहली चीज़ है इसकी एब्रप्ट एंडिंग. फिल्म में गंगूबाई के लाइफ का सबसे हाइएस्ट पॉइंट है, जब वो सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की बात करने के लिए देश के पीएम से मिलती है. उसके बाद आपको दस मिनट लंबा मोंटाज दिखाया जाता है, जिसमें सिर्फ गंगूबाई कमाठीपुरा में घुमकर हाथ हिला रही है. ऐसा ही सीन 'राम लीला' के आखिर में भी था, जब राम और लीला की शवयात्रा निकलती है. मगर उस सीन के पीछे रज़ा मुराद की आवाज़ में वॉयस ओवर चल रहा होता है. जो फिल्म की कहानी को समराइज़ करता है. मगर यहां वैसा कुछ नहीं होता. ये पार्ट थोड़ा खटकता है.

फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के आखिरी लम्हों की तस्वीर. ऐसा ही सीन में हमें भंसाली की ही फिल्म 'राम लीला' में भी देखने को मिला था.
कुल मिलाकर 'गंगूबाई काठियावाड़ी' एक ऐसी फिल्म है, जो आलिया भट्ट के पोर्टफोलियो को मजबूत करती है. एक एक्टर और स्टार दोनों के ही तौर पर. इसे अच्छी परफॉरमेंस, सुंदर गानों और खूबसूरत विज़ुअल्स के लिए देखा जा सकता है. मगर इसमें ऐसी कोई बात नहीं है, जो इस फिल्म को 'देखा ही जाना चाहिए' वाली कैटेगरी में ले जा सके.