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फिल्म रिव्यूः सूबेदार जोगिंदर सिंह

'बुज़दिल तो बार-बार मरता है लेकिन बहादुर सिर्फ एक बार मरता है. बहादुर बन!'

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सूबेदार जोगिंदर सिंह के रोल में गिप्पी ग्रेवाल.
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6 अप्रैल 2018 (Updated: 6 अप्रैल 2018, 06:13 PM IST) कॉमेंट्स
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बुज़दिल तो बार-बार मरता है लेकिन बहादुर सिर्फ एक बार मरता है. बहादुर बन...
फिल्म 'सूबेदार जोगिंदर सिंह' में ये बात एक सिपाही चीनी सेना से लड़ते हुए दूसरे सिपाही से कहता है. पूरी फिल्म इसी लाइन पर है. ये पता कैसे चलेगा. जब आप इसे देखने जाएंगे. तो ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ देखने क्यों जाएं, ये जान लीजिए:

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फिल्म ब्रिटिश इंडियन आर्मी के एक सैनिक की कहानी है, जिसका नाम है जोगिन्दर सिंह. सेना में इसका पद सूबेदार का है. इसलिए सूबेदार जोगिंदर सिंह. फिल्म की शुरुआत होती है एक युद्ध की कहानी सुनाने से. जो सूबेदार खुद सालों (साले मतलब बीवी के भाई. गलत ना समझ लेना) को इत्मिनान से सुना रहे हैं. उन सालों के जीजा जी छुट्टी में घर आए हैं. इसलिए सब उनसे जानना चाहते हैं कि देश के लिए लड़ना कैसा होता है. इन्हीं किस्सों में वो बताते हैं कि कैसे अपनी जान हथेली पर रखकर एक फौजी अपने देश के लिए लड़ता है. ये कहानी कुछ यूं शुरू होती है - पंजाब के मोगा जिले (फिल्म में जो वक्त दिखाया गया है, तब मोगा फरीदकोट ज़िले में एक तहसील हुआ करता था ) के एक गांव में पले-बढ़े जोगिंदर सिंह का भरा पूरा परिवार है. घरवालों को उनके फौजी होने पर गर्व है. जोगिंदर एक दमदार योद्धा हैं और पूरे गांव में उनकी बहादुरी के चर्चे हैं. जोगिंदर किसान परिवार से हैं, तो छुट्टी के दौरान अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ खेतों में काम करने जाते हैं. अपने घरवालों के साथ समय बिताते हैं. घर वापस आकर उनको खबर मिलती है कि सरहद पर चीनी सेना की दखलअंदाज़ी को देखते हुए सरकार ने सभी सैनिकों की छुट्टी रद्द कर वापस अपनी-अपनी पोस्ट पर पहुंचने को कहा है. ये न्यूज़ मिलते ही जोगिंदर सिंह सिख रेजिमेंट के अपने साथियों समेत अपनी पोस्ट पहुंच जाते हैं. वहां लेफ्टिनेंट हरपाल सिंह और कमांडर मान सिंह के निर्देश पर जोगिंदर सिंह अपनी पलटन के साथ सरहद पर तैनात हो जाते हैं. यहां से फिल्म आपको उस दुनिया में लेकर जाती जहां सैनिक रहते हैं. घरवालों से दूर, उन्हें याद करते हुए दिन के बाद रात और रात के बाद दिन अपनी ड्यूटी पूरी करते हैं. और लड़ते हैं. हमारे लिए. ताकि हम शांति से अपने घरों में सो सकें. और ये लड़ाई बाहर बस नहीं होती. एक सैनिक अपने अंदर ही अंदर भी लड़ रहा होता है. यही युद्ध की असल सच्चाई है. फिल्म में जोगिंदर सिंह का रोल किया है गिप्पी ग्रेवाल ने और वो इस किरदार में बहुत जंचे भी हैं. जिस तरह से फिल्म में उनकी आंखें बात करती हैं, वो इस फिल्म का हाई पॉइंट है. फिल्म आपको जोगिंदर सिंह के जीवन के तीन हिस्सों को दिखाती है - युवा फौजी जोगिंदर सिंह, जो बर्मा के मोर्चे पर लड़ता है, दूसरा वो जोगिंदर सिंह, जिसका खुद का एक परिवार है, एक बेटी है और आखिरी हिस्सा वो, जिसमें जोगिंदर सिंह खालिस फौजी बस होता है. गिप्पी ने इन तीनों हिस्सों में अलहदा नज़र आने के लिए मेहनत की है और वो नज़र आती है. इन तीनों हिस्सों को ढंग से उकेरने का क्रेडिट डायरेक्टर सिमरजीत सिंह को दिया जाना चाहिए. फिल्म में रोमैंटिक एंगल भी है. आप सूबेदार और सूबेदारनी की लव स्टोरी देखते हैं. जोगिंदर सिंह की वाइफ गुरदयाल कौर का रोल अदिति शर्मा ने किया है. जोगिंदर सिंह और गुरदयाल का आंखों-आंखों वाला है और वही बढ़ते-बढ़ते शादी में परिणित होता है. उनकी इस पूरी जर्नी पर फिल्माया गाना ‘नैना’ बहुत ही प्यारा बन पड़ा है. इसे आप हॉल से बाहर निकलने के बाद भी गुनगुनाते रहते हैं. इसे गाया है फिरोज़ खान ने और लिखा है मशहूर पंजाबी लिरिसिस्ट हैप्पी रायकोटी ने. एक बात अच्छी है, वो ये कि ये रोमैंस फिल्म को भटकाता नहीं है. बड़े ही कायदे से इन सीन्स को फिल्माया गया है और मज़ा बना रहता है. फिल्म में गिप्पी के अलावा और परफॉरमेंसे हैं, जिन्हें देखकर आपको मज़ा आएगा. जैसे कमांडर मान सिंह का ही किरदार. ये रोल गुगु गिल ने किया है. फिल्म में कमांडर मान सिंह को सूबेदार जोगिंदर सिंह का मेंटर बताया गया है. गिप्पी और गुगु के बीच फिल्माए कुछ सीन्स रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं. फिल्म इमोशनल लेवल पर आपको बहुत झकझोरती है. आप कुर्सी पर बैठे रहना चाहते हैं. फिल्म के आखिरी सीन तक. आप कुछ भी मिस नहीं करना चाहते. जो इसे वॉर मूवी समझकर देखना चाहते हैं, उन्हें निराश होना पड़ सकता है. क्योंकि फिल्म वॉर से ज़्यादा प्यार के बारे में हैं. इन सारी खूबियों के बावजूद एक बात दर्ज की जाए कि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं जो सिनेमा हॉल से बाहर आकर लंबे समय तक ज़हन में रहे. लेकिन फिल्म आपको निराश नहीं करती है. सिनेमा है. मनोरंजन है. बढ़िया है. जाकर देख आइए.

ये रिव्यू उपासना ने किया है.


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