50 पैसे के पोस्टकार्ड में सरकार को 7 रुपये की चपत लगती है
डाकिये का इंतजार अब नहीं रहता, पढ़िए हमने चिट्ठी- पत्री क्या-क्या खो दिया है, आगे बढ़ते हुए.
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Source- wikimedia
पिछले हफ्ते मेरी एक दोस्त का बड्डे था. मन किया कि कुछ स्पेशल उसको गिफ्ट दे. समझ नहीं आ रहा था कि क्या. अचानक धांसू सा आइडिया खोपड़िया में आया. और हमने लिखा एक खत. अपनी दोस्त के नाम. नोटपैड को बनाया पोस्टकार्ड और व्हाट्सएप को पोस्ट ऑफिस. और इंटरनेट को जरिया. लेटर पढ़ के मेरी दोस्त खुशी से पागल हो गई. और कहा कि काश वो पुराना वक्त अभी होता जब हम चिठ्टी लिखा करते थे.
डाकिया अंकल का इंतजार होता था. मनी आर्डर से लेकर टेलीग्राम सब उसके झोले में होता था. मैं डाक, डाकिया और चिठ्टी को बहुत मिस करती हूं. मुझे लगता है हर इंसान इन्हें मिस करता होगा. क्योंकि आज ये हमारे लाइफ का हिस्सी नहीं रहा. आइए चले चलते हैं डाक बाबू के जमाने में और जानते हैं कि हमने क्या खोया और क्या पाया है उनकी जगह.
1. मनी ऑर्डर
पैसे भेजने का सबसे अच्छा और भरोसेमंद तरीका था. गांव में आज भी घर के आंगन में बैठी मां को मनी ऑर्डर का इंतजार होता है. ये 135 साल पुरानी सेवा है. जो कि साल 2015 में बंद हो गई. और किसी को पता तक नहीं चला. इसकी जगह इसी के इलेक्ट्रॉनिक वर्जन इंस्टैंट मनी ऑर्डर IMO ने ले लिया. इसे बढ़ावा मिला इंटरनेट और मोबाइल टेलीफोन से.
Source : Postalmuseum
2. टेलीग्राम
अंग्रेजी के एक्जाम में एक टेलीग्राम लिखना जरूर आता था. आजकल जैसे #sixwordstories ट्रेंड में है न. जिसमें 6 शब्दों में कहानी लिखनी होती है. वैसे ही 25 शब्दों में टेलीग्राम लिखना होता था. टेलीग्राम को 162 साल हो गए हैं. साल 2013 में इसका भी दम घुट गया और ये मर गया. इसकी जगह एसएमएस, ई-मेल और व्हाट्सएप ने ले ली और इसका काम तमाम कर दिया.
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3. पोस्ट बॉक्स
छुटपन में चिठ्ठी वाला लाल बक्सा देखकर बहुत डर लगता था. भइया ने एक बार कहा था कि बदमाशी करेगी न तो पापा तुम्हें इसी में बंद कर देगें. और तुम सांस नहीं ले पाओगी और मर जाओगी. एक वक्त था जब पोस्ट बॉक्स इलाके के हर नुक्कड़, गली, सड़क पर देखने को मिलता था. पर अब ऐसा नहीं है. रेयरली ही दिखता है वो लाल सा मुंह खोले बक्सा. कहीं दिख गया तो उसके लाल रंग को लाल रंग मत समझना क्योंकि वो पान के थूक से लाल हुआ पड़ता है.
Source : Kemmannu.com
4. पोस्टमैन
डाकिया डाक लाता था. खाकी कपड़ों में साइकिल पर सवार. डाकिया बाबू तो ईद का चांद हो गए हैं. और इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम हैं. एक वक्त था जब इनके झोले में हर तरह के इमोशन हुआ करते थे. साइंटिस्ट वाली खोपड़ी लगाकर फेसबुक वाला मत समझ लेना. किसी की नौकरी की ज्वाइनिंग लेटर तो किसी का मनी ऑर्डर. किसी के बच्चे के होने की खबर तो किसी के नानी बनने की खुशी. पर आज ये अंतिम सांसे ले रहा है. कूरियर वालों ने इसकी जगह पर डेरा-डंडा गिरा दिया है.
Source : Storypick
5. पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय
मेरे साथ एक लड़की काम करती है. पारुल. उसने इस साल जनवरी में अपने पापा को इनका बड्डे विश करने के लिए अंतर्देशीय में शुभकामनाएं लिखकर भेजा. वो आजतक अपने डेसटिनेशन पर पहुंचा ही नहीं. ये हाल कर के छोड़ा है हमने पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय का. कौन जहमत उठाए भाई चार शब्द लिखने के लिए. फोन कर बतिया लो. कोमा में है. पर वक्त नहीं लगेगा परलोक सिधारने में. एक दिन ऐसा आएगा जब सिर्फ बोलने के लिए पोस्टकार्ड शब्द रह जाएगा. भइया मेरी फोटू पोस्टकार्ड साइज में बना देना.पता एक पोस्टकार्ड की कीमत 7.50 रुपये होती है. पर हमें मिलती है 50 पैसे में. सरकार को एक पोस्टकार्ड में पूरे 7 रुपये की चपत लगती है.
अंतर्देशीय साल 1950 में शुरू हुआ था. एक अंतर्देशीय की कीमत एक पोस्टकार्ड के बराबर है. पर हमें 2.50 रुपये में मिलती है. मतलब सरकार को इसमें 5 रुपये का नुकसान हो रहा है.

Source : Indianstampghar
6. पोस्ट ऑफिस
कहीं भूले-भटके दिख गया तो बंजर हालत में. बोर्ड लटका हुआ. देश में कुल 1.5 लाख पोस्ट ऑफिस हैं. जिसमें से 90 पर्सेंट दूर-दराज के इलाकों में है. हमारे यहां का पोस्टल नेटवर्क सबसे बड़ा है. पर अफसोस वो भी आखिरी सांसे ले रहा है. इसकी जगह साइबर कैफे और कूरियर सर्विस सेंटरों ने ले ली है.
Source : Reuters