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मूवी रिव्यू: अतिथि भूतो भव

इसे बुरी फ़िल्म नहीं कहेंगे. पर अच्छी की श्रेणी में भी रखना सिनेमा के साथ नाइंसाफी होगी. ठीक फ़िल्म है. एक बार देखी जा सकती है.

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पढ़िए कैसी है फ़िल्म
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अनुभव बाजपेयी
23 सितंबर 2022 (Updated: 23 सितंबर 2022, 12:15 PM IST) कॉमेंट्स
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रिव्यू पर रिव्यू, रिव्यू पर रिव्यू कितने रिव्यू करें. पर काम तो करना ही है दोस्तों. ख़ैर, जोक्स अपार्ट, मज़ा भी आता है. आज देखी गई 'अतिथि भूतो भव'. आज इसी पर बात करेंगे. फ़िल्म ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है. लीड रोल में हैं प्रतीक गांधी और जैकी श्रॉफ.

अतिथि भूतो भव 

एक लड़का है श्रीकांत. स्टैंडअप कॉमेडी उसका पेशा है. खाना बनाना शौक़. तीन-चार सालों से एक रिलेशनशिप में है. एयरहोस्टेस गर्लफ्रैंड नेत्रा को शादी करनी है, पर उसे अभी नहीं करनी है. दोनों के बीच झगड़े होते हैं. पर इसी बीच कुछ ऐसा होता है, जो दोनों को एक हद तक क़रीब ला देता है. श्रीकांत को एक भूत दिखता है. जो उसका पोता है. सोचिए एक 55 साल का भूत है, 30 साल का लड़का उसका दादा है. जिसे वो लड़का नशे की हालत में अपने घर ले आता है. जब तक माखन यानी उस भूत का काम नहीं हो जाता, वो उसके घर से नहीं जाएगा. सबसे खास बात माखन को सिर्फ़ श्रीकांत ही देख सकता है. अब श्रीकांत भूत से किया गया एक वादा पूरा करने निकलता है. कुछ समझ आया. नहीं आया ना? तो इसके लिए फ़िल्म देखिए. नहीं तो फिर आप लोग कमेंट करेंगे कि रिव्यू के नाम पर पूरी कहानी ही बता दी.

जैसा कि आप जान चुके हैं कि फ़िल्म में भूत है, जो सिर्फ श्रीकांत को दिखाई देता है. जो कि शाहरुख की चमत्कार की याद दिलाता है. दूसरी ओर इसमें एक फ्लैशबैक भी चलता है जिसमें एक सरदार जी की प्रेम कहानी चलती है. ये देखकर सैफ़ की 'लव आजकल' याद आती है. माने ‘चमत्कार’ की रेखा जिस बिंदु पर ‘लव आजकल’ की रेखा को काटती है, उस बिंदु को 'अथिति भूतो भव' कहा जा सकता है. इसमें अजय देवगन की 'अतिथि तुम कब जाओगे' वाला भी थोड़ा-सा टेस्ट है. श्रीकांत और नेत्रा माखन से किया वादा पूरा करने लंबी यात्रा पर निकलते हैं, जो कि इरफ़ान खान की 'कारवां' की याद दिलाता है. ये यात्रा देखकर टीवीएफ 'ट्रिपलिंग्स' भी ज़ेहन में आता है. और भी कई सारे फ़िल्मों के रेफ्रेंसेज इस फ़िल्म में आपको देखने को मिलते हैं. इसका मतलब ये नहीं है, फ़िल्म इनमें से किसी मूवी की कॉपी लगे. पर आधे से ज़्यादा चीज़ें देखी हुई लगती हैं. बहुत-सी जगहों पर फ़िल्म बहुत ढर्रेदार हो जाती है. लीक से हटकर चलने की कोशिश करती भी है, पर चल नहीं पाती.

ब्रज नगरी में प्रेम

फ़िल्म कपड़ों से पहचानने की प्रथा और धर्म के कई सारे स्टीरियोटाइप तोड़ने की कोशिश करती है. कई सारे डायलॉग्स और सीन आज के समाज में जड़ हो चुकी कुछ पारम्परिक भ्रांतियों को तोड़ते हैं. फलाने धर्म का है तो इसके कोई ख़ास भगवान होने चाहिए. माखन सिख होकर भी हिन्दू देवी-देवताओं को ख़ूब मानता है. नस्लों पर प्रहार करने वाले जोक्स को फ़िल्म हल्के हाथ से ऐड्रेस करती है, खासकर सरदार वाले जोक्स. लड़की के स्वभाव को लेकर समाज में व्याप्त अवधारणाओं पर फ़िल्म व्यंग्य भी करती है. कुछ जगहों पर लग सकता है कि मूवी महिलाओं पर बने क्लीशेज़ का समर्थन करती है. पर ऐसा है नहीं. स्क्रिप्ट थोड़ी खिंची हुई है. इसमें ट्रिम करने की गुंजाइश थी.

चूंकि फ़िल्म में अच्छा-खासा ट्रैवल सीक्वेंस है, इसलिए बढ़िया-बढ़िया शॉट्स देखने को मिलते हैं. एक शॉट बहुत अच्छा लगता है, हालांकि इसका घुमाई से कोई सम्बंध नहीं है. उस सीन में श्रीकांत अपनी प्रेमिका को अंगूठी पहना रहा होता है. उसी समय एक सेकंड के लिए कैमरे का फोकस शिफ़्ट होता है और ब्लर बैकग्राउंड में बैठे भगवान एकदम से विज़िबल हो जाते हैं. इस एक शॉट में सिनेमा है. दो और शॉट हैं, जिनका कम्पोजिशन बहुत सुंदर है. एक जिसमें माखन और श्रीकांत दोनों दरवाज़े के बाहर खड़े हैं. दूसरा है जिसमें माखन सामने बैठा है, श्रीकांत और नेत्रा मिरर में दिख रहे हैं. संगीत फ़िल्म का उजला पक्ष है. हालांकि कई मौकों पर गानों की अति फ़िल्म को बोझिल बना देती है. पर सभी गाने कर्णप्रिय हैं. बैकग्राउंड स्कोर शिफ़्ट बहुत अच्छा है. आपको मुम्बई का बीजीएम दूसरी तरह का सुनाई देगा. रोड ट्रिप के दौरान दूसरा बीजीएम. मथुरा पहुंचने पर अलग बीजीएम. ये एक अच्छा प्रयोग है. लोकेशन के अनुसार गाने तो सुने थे. पर इसके अनुसार बैकग्राउंड स्कोर सुनकर अच्छा लगता है. इसके लिए म्यूजिक डायरेक्टर प्रसाद एस और फ़िल्म के डायरेक्टर हार्दिक गज्जर की तारीफ़ बनती है.

भूत तुम कब जाओगे

प्रतीक गांधी बढ़िया अभिनेता है. वो फ़िल्म में सहज लगे हैं. बस शराब पीकर जो कुछ वो स्क्रीन पर करने की कोशिश करते हैं, बनावटी लगता है. इस फ़िल्म के कोहिनूर हैं, जैकी श्रॉफ. माखन का किरदार उनके चरित्र से विपरीत था. तब भी उन्होंने इसके साथ पूरा न्याय किया है. प्रतीक गांधी की गर्लफ्रैंड बनी शर्मिन सेगल ने सही काम किया है. श्रीकांत की दोस्त बनी दिविना ने भी सधा हुआ अभिनय किया है. यंग माखन बने प्रभज्योत सिंह ने ठीक काम किया है.

फ़िल्म में कॉमेडी है. इमोशन है. प्रेम के कई पहलू हैं. अच्छे शॉट्स हैं. कुछ क्लीशेज़ हैं. फ़िल्म कहीं-कहीं पर उबाऊ भी है. इसे बुरी फ़िल्म नहीं कहेंगे. पर अच्छी की श्रेणी में भी रखना सिनेमा के साथ नाइंसाफी होगी. ठीक फ़िल्म है. एक बार देखी जा सकती है. ज़ी5 पर है, देख डालिए.

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