The Lallantop
Advertisement

अमरीश पुरी के किस्से: जिन्हें एक प्रड्यूसर ने ये कहकर खारिज किया गया था कि उनका चेहरा पथरीला है

महान एक्टर अमरीश पुरी के 18 किस्से, जिनके बारे में स्टीवन स्पीलबर्ग ने कहा था, 'अमरीश जैसा कोई नहीं, न होगा'.

Advertisement
amrish puri
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के ओपनिंग सीन में अमरीश पुरी. 1935-2005.
pic
गजेंद्र
12 जनवरी 2022 (Updated: 12 जनवरी 2023, 10:23 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' और 'परदेस' में अमरीश पुरी न होते तो ये फिल्में किसी भी स्थिति में इतनी लोकप्रिय नहीं होतीं. शाहरुख ख़ान कभी शाहरुख ख़ान नहीं बन पाते, अगर बाऊजी के रूप में अमरीश उन्हें तमाचे न मारते. हीरो लोगों में चार्म आया तो अमरीश पुरी से.

'मि. इंडिया' में मोगैंबो का उनका वर्जन न होता तो कोई अनिल कपूर के अदृश्य मसीहा पात्र के लिए चीयर न करता. स्पीलबर्ग की 'इंडियाना जोन्स' का छुपा हुआ जादू, पुरी का मोलाराम का पात्र है. 'घायल' में वे बलवंतराय न बनते और 'घातक' में काशी के बड़बड़ाने वाले बाबूजी बनकर गले में कुत्ते का पट्‌टा न पहनते तो सनी देओल को ये दो बहुत ही औसत फिल्में हासिल होतीं. लेकिन अमरीश पुरी थे तो दोनों फिल्मों को अमरता मिल गई. जब तक सिनेमा है वो सब फिल्में याद की ही जाएंगी जिनमें अमरीश पुरी थे.
पुरी के अनुशासन की तुलना कर पाना कठिन है. हिंदी सिनेमा में उनकी एक भी लाइन ऐसी नहीं मिलेगी जिसमें उनका 100 फीसदी से ज्यादा एफर्ट नहीं लगा हुआ हो. वे एक्टिंग को प्रोफेशन मानकर भी बेहद गंभीर रहते थे और अपना जुनून होने की वजह से भी खुद को झोंके रखते थे. ये बेहद विचलित करने वाली बात है कि भारतीय रंगमंच और सिनेमा को उन्होंने जिंदगी के 35 साल दिए और कमर्शियल के साथ-साथ मेनस्ट्रीम में भी उनका योगदान बहुत ज्यादा रहा लेकिन उन्हें कभी भी हिंदुस्तान में बेस्ट एक्टर का एक भी अवॉर्ड नहीं दिया गया. कुछेक बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के अवॉर्ड जरूर मिले. जिन एक्टर्स का कद पुरी से बहुत कम है वे पद्मश्री ले लेकर बैठे हैं, पर उन्हें ऐसा कोई भी सिविलियन ऑनर नहीं दिया गया. वे हमेशा इसे लेकर नाराज भी रहे. एक बार एक पॉपुलर अवॉर्ड के मंच पर वे किसी को अवॉर्ड देने आए तो इसे लेकर कुछ कहा भी था.
इसीलिए वे अपने अधिकारों को लेकर बहुत सजग थे. निर्माताओं से अपनी फीस लेते हुए और पत्रकारों को इंटरव्यू देते हुए वे सख्त रहते थे. उन्होंने कभी अपना इस्तेमाल नहीं होने दिया. वे फिल्मों में एक्टिंग करने वाले कलाकारों के अधिकारों के लिए काम भी करते थे. जब लोग फिल्मों में आने के बाद खप जाते हैं तब अमरीश पुरी ने फिल्मों में एंट्री ली. वे करीब 40 साल के हो चुके थे. लेकिन वे दुरुस्त आए थे. जल्द ही अभिनय के मामले में वे पहली पंक्ति में पहुंच चुके थे. आज अभिनय हीरो-हीरोइन से हटकर चरित्रों के निर्वाह तक पहुंच चुका है. अब कैरेक्टर रोल ही मेन रोल है. आज पुरी ज़िंदा होते तो धड़ाधड़ बेस्ट एक्टर के अवॉर्ड उन्हें मिल रहे होते. 2005 की जनवरी में उनकी मृत्यु हो गई. वे 72 साल के थे.
ओम पुरी ने उन्हें याद करते हुए कहा था कि पुरी साब सिगरेट, शराब नहीं पीते थे. उनमें कोई ऐब नहीं था. वे अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखते थे. कसरत नियमित रूप से करते थे. फिर भी इतनी जल्दी चले गए. अभी उनमें काफी सिनेमा बाकी था. हालांकि 66 की उम्र में गुजर गए, ओम पुरी में भी कम से कम 20 साल का सिनेमा बाकी था, वो हम लोगों के हाथ से निकल गया.
अमरीश पुरी पर बहुत-बहुत बातें हो सकती हैं. इस बार जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी 18 बातें और किस्से जो उन्हें सजीव करते हैं:
#1: 'विरासत' (1997) में अनिल कपूर के पिता का अहम रोल अमरीश पुरी ने किया था. पहले यही रोल दिलीप कुमार को ऑफर किया गया था. राजेश खन्ना को भी. लेकिन दोनों ने मना कर दिया. अंत में पुरी को ये रोल गया जो डायरेक्टर प्रियदर्शन के साथ 'गर्दिश' और 'मुस्कुराहट' जैसी फिल्मों में पहले भी काम कर चुके थे.
#2: अमरीश पुरी हिंदी फिल्मों के सबसे महंगे विलेन थे. कहा जाता है कि एक फिल्म के लिए 1 करोड़ रुपये लेते थे. डायरेक्टर परिचित होता था तो फीस कुछ कम कर देते थे. एक बार 'मेरी जंग' और 'कालीचरण' जैसी फिल्मों के प्रोड्यूसर एन.एन. सिप्पी की मूवी उन्होंने साइन की. लेकिन तीन साल तक शूटिंग का अता-पता नहीं था. बाद में शुरू होने की स्थिति आई तब पुरी ने सिप्पी से उनके बढ़े मार्केट रेट के हिसाब से 80 लाख मांगे. सिप्पी ने मना किया तो उन्होंने फिल्म छोड़ दी.
#3: ओम पुरी और अमरीश पुरी को लोग भाई मान लेते थे हालांकि दोनों का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था. जब 2005 में अमरीश पुरी की मृत्यु हुई तो ओम पुरी ने उन्हें याद करते हुए कहा, "लोग अकसर सोच लेते थे कि हम भाई हैं. हम लोग भी या तो तुरंत इसका खंडन कर देते थे या लोगों की गलतफहमी बनी रहने देते थे. मैं पुरी साब पर धौंस जमाता था कि हम लोग भाई हैं और मेले में खो गए थे. मैं उन्हें कहा करता था, साब, अपनी जमीन जायदाद में से मेरा हिस्सा दे दो.
और वो अपनी धनी कड़क आवाज में ठहाका लगाकर कहते थे, अरे, चुप कर और चाय पी.
"
#4: 1985 में रिलीज हुई फिल्म 'जबरदस्त' में अमरीश पुरी और संजीव कुमार, सनी देओल, जया प्रदा जैसे एक्टर्स ने काम किया था. डायरेक्टर थे नासिर हुसैन. उनके भतीजे आमिर खान भी इस फिल्म में नासिर को असिस्ट कर रहे थे. बतौर असिस्टेंट ये आमिर की दूसरी फिल्म थी. तब भी आमिर प्रोडक्शन के जिस विभाग में थे वहां एकदम बारीकी से चीजों की लिस्ट बनाकर व्यवस्थित रूप से काम करते थे. एक दिन अमरीश पुरी का एक्शन सीन शूट हो रहा था. आमिर को एक्शन दृश्यों में निरंतरता (continuity) देखने का काम दिया गया था. अमरीश को नहीं पता था कि वे नासिर के भतीजे हैं.

अमरीश जब सीन शुरू करने को तैयार हुए तो आमिर ने उन्हें बता दिया कि पिछले सीन में उनकी पोजिशन क्या थी. पुरी ने सुना और सीन में खो गए. उनका ध्यान सोचने में इतना लगा हुआ था कि वे निरंतरता भूल रहे थे. लेकिन आमिर भी उतनी ही बार उनके पास जाकर उन्हें बताते कि वे कहां गलत कर रहे हैं. कुछ देर में पुरी ने आपा खो दिया. वे लगे आमिर पर चीखने. आमिर भी सिर नीचे करके पुरी को सुनते रहे और कुछ नहीं बोले. थोड़ी देर बाद पुरी शांत हुए. सेट पर सन्नाटा हो गया. तो नासिर हुसैन आए और उन्होंने अमरीश पुरी से कहा कि आमिर तो बस अपना काम कर रहे थे. बाद में पुरी को अहसास हुआ कि वे गुस्से में ज्यादा बोल गए. उन्होंने आमिर से माफी मांगी और उनके काम के प्रति समर्पण की तारीफ की.

#5: अमरीश पुरी और आमिर ने कभी साथ काम नहीं किया. 'दामिनी' में जरूर दोनों थे, लेकिन साथ में कोई सीन नहीं थे. पुरी ने इसमें वकील चड्‌ढा का रोल किया था, वहीं आमिर मेहमान भूमिका में थे. लेकिन एक फिल्म दोनों साथ कर सकते थे जो बेहद मजेदार साबित होती. वो फिल्म थी प्रियदर्शन की 'मुस्कराहट' जो 1992 में रिलीज हुई. इसमें पुरी ने बाहर से सख़्त, अंदर से नरम रिटायर्ड जस्टिस गोपीचंद वर्मा का रोल किया था. आमिर और पूजा भट्‌ट को दो अन्य प्रमुख भूमिकाओं में लिया जाना था. लेकिन बाद में निर्माताओं ने उन दोनों की जगह न्यूकमर जय मेहता और रेवथी को लिया.
#6: अमरीश पुरी ने ओम पुरी के साथ 24 से ज्यादा आर्टहाउस और कमर्शियल हिंदी फिल्में की थीं. लेकिन दोनों ने साथ में एक पंजाबी फिल्म में भी काम किया था. इसका नाम था 'चन परदेसी' जो 1979 में आई. इसमें अमरीश की कास्टिंग ओम पुरी ने की क्योंकि फिल्म के निर्माता पटियाला में ओम के होमटाउन से थे और मुंबई में किसी को जानते नहीं थे. इस फिल्म के बाद अमरीश-ओम साथ में फिल्मों में दिखते रहे.
#7: डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग जब जॉर्ज लुकस की कहानी पर हॉलीवुड का अपना बड़ा प्रोजेक्ट 'इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम' (1984) बना रहे थे तो विलेन के रोल में अमरीश पुरी उन्हें जमे. उन्होंने पुरी का अभिनय देखा था और कायल हो गए थे. बताया जाता है कि पुरी को कहा गया वे अमेरिका आएं और अपना ऑडिशन दें, जिस पर पुरी ने मना कर दिया. उन्होंने कथित तौर पर कहा कि अगर ऑडिशन लेना है तो भारत आकर लो. वे इस हॉलीवुड फिल्म की मसाला स्क्रिप्ट से भी प्रभावित नहीं थे और करीब-करीब मना कर चुके थे. लेकिन जब सर रिचर्ड एटनबरो ने उन्हें कहा कि स्पीलबर्ग अपनी फिल्मों में जो टेक्नीक यूज़ करते हैं, उससे उनकी फिल्में खास होती हैं तो पुरी ने वो फिल्म की. वे एटनबरो के डायरेक्शन वाली 'गांधी' (1982) में काम कर चुके थे.

'इंडियाना जोन्स..' में पुरी ने नरबलि देने वाले पुजारी मोलाराम का किरदार किया था.
इंडियाना जोन्स.. में अपने किरदार में अमरीश पुरी.
इंडियाना जोन्स.. में अमरीश पुरी.

हिंदी सिनेमा में मोगैंबो को उनका सबसे लोकप्रिय किरदार माना जाता है लेकिन मोलाराम ने विश्व भर के दर्शकों के बीच अपनी अमिट जगह बनाई. बाद में स्पीलबर्ग ने कहा था, "अमरीश मेरे फेवरेट विलेन हैं. दुनिया ने उनसे बेस्ट किसी को पैदा नहीं किया और न ही करेगा."

#8: अमरीश पुरी वीडियो या ऑडियो इंटरव्यू नहीं देते थे. कुछ मौकों पर उनकी फुटेज नजर भी आती है तो वो शूट के दौरान की रही है. वे अख़बारों या मैगजीन को इंटरव्यू देते हुए भी अपनी आवाज रिकॉर्ड नहीं करने देते थे. ताकि फिल्मों में उनकी आवाज की दुर्लभता बनी रहे. वे विनम्रता से रिकॉर्डर बंद करने के लिए बोल देते थे. इसके अलावा फिल्म मैगजीन्स उन्हें इंटरव्यू के लिए कॉल करती थीं तो पुरी स्पष्ट रूप से कह देते थे कि उन्हें कवर स्टोरी मिलेगी तो ही वे इंटरव्यू देंगे. अपने अधिकारों को लेकर वो बहुत सजग थे. इस जिद की वजह उनके संघर्ष थे. अमरीश पुरी कहते थे कि उन्होंने तिनका तिनका जोड़कर जीवन में सफलता पाई है, खुद को बेहतर किया है और वे एक्टिंग में जबरदस्त मेहनत करते हैं इसलिए फीस में या दूसरी चीजों में कभी समझौता नहीं करते.
#9: जब अमरीश पुरी 22 साल के थे तो उन्होंने एक हीरो के रोल के लिए ऑडिशन दिया था. ये वर्ष 1954 की बात है. प्रोड्यूसर ने उनको ये कहते हुए खारिज कर दिया कि उनका चेहरा बड़ा पथरीला सा है. इसके बाद पुरी ने रंगमंच का रुख किया.
#10: नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक के रूप में हिंदी रंगमंच को जिंदा करने वाले इब्राहीम अल्क़ाज़ी 1961 में अमरीश पुरी को थियेटर में लाए. बंबई में कर्मचारी राज्य बीमा निगम में अमरीश नौकरी कर रहे थे और थियेटर में सक्रिय हो गए. जल्द ही वे लैजेंडरी रंगकर्मी सत्यदेव दुबे के सहायक बन गए. शुरू में नाटकों में दुबे से आदेश लेते हुए उन्हें अजीब लगता था कि कम कद का ये छोकरा उन्हें सिखा रहा है. लेकिन जब दुबे ने निर्देशक के तौर पर सख्ती अपनाई तो पुरी उनके ज्ञान को मान गए. बाद में पुरी हमेशा दुबे को अपना गुरु कहते रहे. फिर नाटकों में पुरी के अभिनय की जोरदार पहचान बन गई.
अमरीश पुरी बेटी नम्रता, बेटे राजीव और वाइफ उर्मिला के साथ.
अमरीश पुरी बेटी नम्रता, बेटे राजीव और वाइफ उर्मिला के साथ.

#11: फिल्मों के ऑफर आने लगे तो पुरी ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम की अपनी करीब 21 साल की सरकारी नौकरी छोड़ दी. इस्तीफा दिया तब वे ए ग्रेड के अफसर हो चुके थे. पुरी नौकरी तभी छोड़ देना चाहते थे जब में थियेटर में एक्टिव हो गए. लेकिन सत्यदेव दुबे ने उनको कहा कि जब तक फिल्मों में अच्छे रोल नहीं मिलते वे ऐसा न करें. आखिरकार डायरेक्टर सुखदेव ने उन्हें एक नाटक के दौरान देखा और अपनी फिल्म 'रेशमा और शेरा' (1971) में एक सदह्रदय ग्रामीण मुस्लिम किरदार के लिए कास्ट कर लिया. तब वे करीब 39 साल के थे.
#12: अमरीश पुरी ने सत्तर के दशक में कई अच्छी फिल्में कीं. सार्थक सिनेमा में उनका मुकाम जबरदस्त हो चुका था लेकिन मुंबई के कमर्शियल सिनेमा में उनकी पहचान अस्सी के दशक में बननी शुरू हुई. इसकी शुरुआत 1980 में आई डायरेक्टर बापू की फिल्म 'हम पांच' से हुई जिसमें संजीव कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, राज बब्बर और कई सारे अच्छे एक्टर थे. इसमें पुरी ने क्रूर जमींदार ठाकुर वीर प्रताप सिंह का रोल किया था. बतौर विलेन उन्हें सबने नोटिस किया. लेकिन डायरेक्टर सुभाष घई की 'विधाता' (1982) से वो बॉलीवुड की कमर्शियल फिल्मों में बतौर विलेन छा गए. फिर अगले साल आई घई की ही 'हीरो' के बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. यहां से हालत ये हो गई थी कि कोई भी बड़ी कमर्शियल फिल्म बिना पुरी को विलेन लिए नहीं बनती थी.
#13: अपने बड़े भाई और जाने-माने एक्टर मदन पुरी की तरह अमरीश पुरी की आवाज भी शुरू से दमदार थी. लेकिन रंगमंच में आने के बाद उन्होंने अपनी आवाज पर ख़ास काम करना शुरू किया. वे रोज कुछ घंटे आवाज बेहतर करने के लिए अभ्यास करते थे. फिल्मों में बड़ा नाम हो गए तो भी रोज़ प्रैक्टिस करते थे. कभी-कभी तो दिन में चार घंटे तक वे रियाज़ करते थे.
#14: वे कसरत भी नियमित रूप से करते थे. इसी से जुड़ा एक किस्सा है. वे बंबई के अलीबाग़ में डायरेक्टर गोविंद निहलानी की फिल्म 'आक्रोश' की शूटिंग कर रहे थे. 1980 में रिलीज हुई इस फिल्म में पुरी ने सरकारी वकील दुसाणे का रोल किया था. ओम पुरी लहाण्या भीखू के केंद्रीय रोल में थे. नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल भी. बड़े ही कम बजट में ये महत्वपूर्ण फिल्म बनाई जा रही थी. कास्ट के सब लोग कमरे भी शेयर करके साथ में रह रहे थे. डायरेक्टर निहलानी और अमरीश पुरी एक ही कमरा शेयर कर रहे थे. एक बार ओम पुरी ऐसे ही उनके कमरे में घुसे तो देखा कि टेबल पर एक कटोरी ढक कर रखी हुई है. उन्होंने उठाया तो देखा कि वो मलाई से भरी हुई है. ओम बोले, "अच्छा! तो यूनिट के दूध की मलाई यहां आती है!" इस पर वहां मौजूद निहलानी ने झिझकते हुए कहा, "वो पुरी साहब एक्सरसाइज़ करते हैं ना तो थोड़ी सी लेते हैं."
#15: स्पीलबर्ग की 'इंडियाना जोन्स' में विलेन मोलाराम का किरदार करने के लिए पुरी को अपना सिर शेव करना पड़ा. फिल्म खत्म हो गई उसके बाद भी उन्होंने सिर पर बाल नहीं रखे. वे शेव्ड लुक में ही हमेशा रहे इसलिए कि आगे अलग-अलग फिल्मों में किरदारों के लिए अलग-अलग विग्स पहनें ताकि बिलकुल नेचुरल लग सकें. इस स्तर पर जाकर कौन अभिनेता सोचता है!
#16: नाटकों में अभिनय के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी ने अवॉर्ड दिया था. अमरीश पुरी ने 60 से ज्यादा प्ले किए जिनमें से कुछ का मंचन तो 400 से 500 बार किया गया. नाटक 'आधे अधूरे' में तो उन्होंने पांच किरदार निभाए थे - पति का, प्रेमी का, पत्नी के बॉस का और दो अन्य लोगों का. उनकी ख्वाहिश थी कि वे 'किंग लीयर', 'हैमलेट', 'ऑल माई सन्स' और 'अ व्यू फ्रॉम द ब्रिज' और 'लस्ट फॉर लाइफ' में केंद्रीय पात्र करें.
#17: 1998 में रिलीज हुई 'चाइना गेट' में अमरीश पुरी ने कर्नल किशन पुरी का रोल किया था. इसमें ओम पुरी और डैनी जैसे एक्टर्स भी थे. शूटिंग के दौरान फन भी खूब होता था. एक बार यूं हुआ कि शूट के बीच ओम पुरी को पता चला अमरीश पुरी ने कोई अवॉर्ड जीता है. तो उन्होंने माइक पकड़ा और घोषणा कर दी कि पुरी साब ने पूरी यूनिट के लिए मिठाई ऑर्डर की है. तब यूनिट में 100 से ज्यादा लोग थे और ये बिल अमरीश पुरी को महंगा पड़ने वाला था. लेकिन ओम पुरी को चुन-चुन कर कुछ गालियां देने के बाद उन्होंने किसी को भेजा और सबके लिए मिठाई मंगवाई.
#18: अमरीश पुरी और ओम पुरी हिंदी सिनेमा के दो दिग्गज एक्टर्स थे जिन्हें सदियों तक याद रखा जाएगा. दोनों में काफी अभिनय बाकी था और उससे पहले ही वे गुजर गए. इन दोनों के प्रेम के कुछ और किस्से हैं. जैसे कि ओम, अमरीश की आवाज की नकल बड़ी विश्वसनीय निकालते थे. एक बार अभिनेत्री मीता वशिष्ठ (दिल से, ग़ुलाम, दृष्टि, ताल) ने अपने यहां पार्टी में ओम पुरी और उनकी पत्नी नंदिता को बुलाया. ओम को पार्टी का टाइम नहीं पता था तो उन्होंने मीता को फोन किया. वो नहीं थीं तो उन्होंने अमरीश पुरी की आवाज में आंसरिंग मशीन पर संदेश छोड़ा, "अरे मीता, कभी हमें भी बुलाया करो!"

मीता ने जब ये सुना तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने तुरंत अमरीश पुरी को फोन किया ताकि न्यौता दे सके. जब मीता ने उनके मैसेज के बारे में कहा तो अमरीश पुरी ने कहा, "तुम्हारा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हुआ? वो ओम होगा!" पुरी की आवाज में ऐसा ही ओम ने नसीरुद्दीन शाह के साथ भी किया. एक बार फोन करके नसीर से कहा, "कभी घर पे बुलाया करो." इस पर नसीर ने जवाब दिया, "आप ही का घर है. कभी भी आ जाइए." फिर ओम पुरी ने अपनी आवाज में कहा, "कभी हमें भी बुलाया करो."

----- } ~ { -----


Story first published on Jan 13, 2017.

 

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement