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इन बेदर्द तरीकों से पीटा है कसाई मास्टरों ने हमें स्कूल में

जब टीचर डंडे से मारते और अगले पीरियड में दुखते हाथ से कॉपी में लिखना पड़ता था.

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आशीष मिश्रा
22 अक्तूबर 2016 (Updated: 22 अक्तूबर 2016, 12:04 PM IST) कॉमेंट्स
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स्कूल में सबसे बुरे क्या होता है?

पढ़ाई? नहीं! होमवर्क? नहीं! पीरियड्स? नहीं! पीटी क्लास? नहीं!

सबसे बुरे होते हैं मास्टर. एक-एक से बेदर्द मास्टर बैठे रहते हैं. हेडमास्टर से अपनी लड़ाई का बदला निकालते हैं. उनकी तनख्वाह नहीं बढ़ती, मार हम खाते हैं. कॉपी की किनारी मुड़ी हो तो कौन मारता है? बस्ते में लाद के ढाई किलोमीटर दूर से हम स्कूल जाते थे, चलते-चलते हिल-डुल के एक पेज मुड़ गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा, पर नहीं ये मारेंगे. आदमी के पास स्कूल में सफेद मोजा बस एक होता था, मां-बाप नहीं खरीद पाते थे इत्ती चीजें. किसी दिन गीला रह गया तो बिन मोज़े के चले गए, कौन सा प्रक्षेप्य का पथ परवलयाकार से वर्गाकार हो गया. पर नहीं ये मारेंगे. खोज के मारेंगे. मास्टर पढ़ाने को होता था कि मोजा झांकने को? तो हम बता रहे हैं हम को काहे-काहे से पीटा जाता था, और किस-किस तरीके से सजा दी गई.

1. डस्टर

डस्टर होता था न? आन्हां नहीं होता था, हमाई स्कूल में नहीं होता था, लेकिन सड़ा-गला डस्टर जिसमें भूसी भी न चिपकी हो, जाने कहां से बटोरकर रखे रखते थे. और उससे मारते थे, घुटने पर और हाथ के पीछे. कुछ तो क्या करते कि टेबल पर हाथ रखवाकर आड़े डस्टर से उंगली के पीछे मारते थे. भारी सा डस्टर पास से पकड़कर मारो तो खूब जोर और असर के साथ लगता था. कभी-कभी उसके कुंड किनारे बहुत जोर से लगते तो गहरे निशान भी पड़े रहते.

2. स्केल

हमारे मास्टरों के पास एक स्केल रहती, 30 सेंटीमीटर की लकड़ी की स्केल, उससे डंडे जैसे पीटते थे. हथेली के पीछे जहां उंगलियों का जॉइंट होता है, जो उभरा रहता है, वहां पर मारते थे. वहां मार दो तो ऐसा लगता कि अब प्लास्टर ही चढ़वाना पड़ेगा.

3. चाक

चाक का इस्तेमाल स्टाइल मारने के लिए ज्यादा करते थे. मान लो पढ़ा रहे हैं और आप अपनी पीठ भी खुजा लो तो हिलने के इल्जाम में दन्न से चाक आ लगती. यार बताओ गंधैली सी टाट होती थी तुम्हारी धूधुर सल्ट में घुस जाती थी, आदमी क्या करे? पीछे से कोई चिकोटी काट रहा है, थोड़ा हिल गए तो चाक मारके आंख फोड़ दोगे क्या?

4. रेनौल्ड्स 045

आप बोलो ये पेन है. लेकिन नहीं इसका भी इस्तेमाल ये मारने में करते थे. दो उंगलियों के बीच पेन रखाकर दबा देते थे. आदमी चिलक जाता था. लगता था गिलोटिन पर चढ़ा दिया है. दर्द नाक तक आ जाता था, लगता गले से कुछ पानी जैसा निकल जाएगा. जब ऐसे दबाते तो लगता दोबारा ये दर्द महसूस न करना पड़े, इसी दर्द से जान निकल जाए.

5. मुर्गा

मुर्गा तो सब बने ही होगे. हम बता रहे हैं, आठवीं में थे, बच्चू मैडम का पीरियड नहीं था. वो साइंस पढ़ाने की कोशिश करती थीं. गणित के पीरियड में आ गईं थीं, हम सोचे पढ़ा नहीं रहीं हैं तो हम टाइम पास कर लें. बुक क्रिकेट खेल रहे थे. हमको मुर्गा बना दीं. जाते-जाते दूसरे पीरियड वाले सर को भी कह गईं कि ये क्रिकेट खेल रहा था, हम लगभग एक घंटा दस मिनट तक दो पीरियड मुर्गा बने रहे थे. जांघ के पीछे भर आया था. अपनी टाई से आंसू पोंछ रहे थे. बच्चू मैडम हम कभी न भूलेंगे. आप सड़ी सी बात के लिए हमको मुर्गा बनाई थी. भगवान अपने तरीके से बदला लेता है. बच्चू मैडम बहुत धार्मिक थीं, लेकिन बाद में उनकी शादी एक अंडे के होलसेल व्यापारी से हो गई. हमको मुर्गा बनाने का फल था. और दूसरे जो मास्टर थे, जिनके सामने कुछ हुआ भी नहीं था फिर भी हमको मुर्गा बनाए थे, लालजी मौर्या. उनको बीछी खा ली थी.

6. कुर्सी

ये भी मुर्गा जैसा ही कुछ था. हमारे स्कूल में तो नहीं बनाते थे लेकिन बड़ा बेवकूफाना और बेइज्जती करने वाला था. आदमी को ऐसे बैठना पड़ता था. जैसे कुर्सी पर बैठा हो, बस नीचे कुर्सी नहीं रहती थी और पैर बहुत दुखने लगते थे.

7. बेंच पर खडा करना

ये भी हमारी स्कूल में नहीं होता था. वजह? टाट-पट्टी वाली स्कूल थी बेंच नहीं थी. इसमें आपको अपनी ही जगह पर बेंच पर खड़ा हो जाना पड़ता था. सब पढ़ते रहते और आप मुंह लटकाए बेइज्जती कराते, पैर दुखवाते खड़े ही रह जाते.

8. हवाई जहाज

इसमें आदमी को दोनों हाथ फैलाकर खडा होना पड़ता था. जब इतने से भी मन न भरता तो ये पापी लोग इस बात के लिए चिल्लाते कि एक भी हाथ नीचे न जाए और हाथ बराबर फैले रहें. थोड़ा भी हाथ हिलता था तो नीचे से छड़ी से मार देते थे. जबकि इनको पता होता है कि कोई जिमनास्ट या एथलीट ही ऐसे हाथ खोलकर खड़ा हो सकता है.

9. उठक-बैठक

इस वाले में सबसे ज्यादा बच्चे गिरते थे. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कहीं बच्चे मर गए. एक सवाल का जवाब गलत बता दो और और पूरे पीरियड उठक-बैठक लगाते रहो. सोचो दस-बारह साल का बच्चा तीस से पैंतीस मिनट तक लगातार उठक-बैठक कर रहा है. रुकता तो अलग मार पड़ती. पुशअप ही तो होती थी टेक्निकली, किसी पहलवान से ऐसी दंड बैठक कराओ वो चीं बोल जाए. फिर कोई बच्चा कैसे कर पाता रहा होगा?

10. हाथ खड़े कर खड़ा कर देना

आप अपनी जगह पर हाथ खड़े कर खड़े हो जाइए. सुनने में आसान लगता था पर इसमें भी हाथ कल्लाने लगते थे. नीचे करने का या सिर पर रख लेने का मन करता लेकिन नहीं करने देते.

11. विद्यावर्धनी

ये सबसे घटिया, बर्बर, सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली चीज है, इसी से सबसे ज्यादा दुखता था. बेशरम या बांस का डंडा. जिसे रामसड़ाका से लेकर विद्यावर्धनी तक जाने क्या क्या कहते. मास्टर कितने नीच होते थे, वो इस चीज से समझा जा सकता है कि वो बच्चे को पीटने के टाइम डंडे से कैसे खेलते. वो डंडे से पूरा जोर लगाकर आपके हाथ पर मारेंगे. और आप हाथ खोले खड़े रहिए. एक बार डंडा पड़े तो अपना हाथ भी दर्द के मारे न झटकिये. डंडे से बचने की कोशिश न कीजिए. वर्ना और मारेंगे. और गलती से अगर डंडा फिसल गया और निशाना चूक गया तो मास्टर साहब पर जीते ही उनके बाप आ जाते. फिर तो वो देह में जहां पाते वहां मारते. उनके हिसाब से डंडा फिसलवा देना सबसे बड़ा अपराध था. कुछ मास्टर पढ़ाने से ज्यादा इस चीज का ध्यान रखते कि क्लास में डंडा है या नहीं. मास्टरों की पूरी कोशिश रहती कि वो सीधा हाथ के गुलगुले हिस्से पर डंडे से मारें जहां मांस ज्यादा होता है. यहां मारने से कोई निशान नहीं बनता और घर से शिकायतें नहीं आतीं थीं. साथ ही यहां पर सबसे ज्यादा दुखता था. वहां मार पड़ते ही ठेंठा पड़ जाता था. मोटा मोटा सा और खूब गरम लगने लगता. लेकिन कभी अगर डंडा थोड़ा इधर-उधर हुआ या डर के मारे हाथ हिला तो अंगूठे के पास का हिस्सा ऊपर आ जाता. वो आता तो निशान पड़ना पक्का था. अंगूठे की हड्डी का जो हाल होता वो तो पूछिए ही नहीं. और जो चोट उंगली के जॉइंट पास लगती तो खूब मोटा सा फूल आता. बस खून भर नहीं निकलता. ऐसे मार खाने के बाद का वो वक़्त याद कीजिए कि जब आपको मार खाने के बाद अगले पीरियड में उसी भरे हाथ से सबक लिखना होता.
पढ़ाना अच्छा होता था, बहुत अच्छा. पढ़ना हर बच्चा चाहता है. कुछ कमजोर होते हैं, कुछ गलतियां कर देते हैं. कुछ शैतान हो सकते हैं. टीचर चिढ़कर सजा भी देते थे. कुछ तो थोड़ा-बहुत मारकर छोड़ देते थे. कुछ सिर्फ डांटते थे, लेकिन ये जो टीचर इतनी बर्बरता से मारते थे. उनके लिए सम्मान नहीं बचता. गलत हर कोई हो सकता है. टीचर भी. और टीचर की ऐसी कमियां जब सामने आती हैं. तो बच्चे का पढ़ना मुश्किल हो जाता है. तो तमाम बेदर्दी मास्टरों आपके लिए थम्स डाउन!!

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