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पाटलिपुत्र लोकसभा सीट: रामकृपाल की हैट्रिक कैसे रोकेंगी लालू यादव की बेटी मीसा भारती

बिहार के पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से तीसरी बार लालू यादव की बेटी मीसा भारती और रामकृपाल यादव आमने सामने हैं. देखना दिलचस्प होगा कि इस सियासी घमासान में पिछले दो चुनावों में थोड़े अंतर से चूक रहीं मीसा भारती हार की हैट्रिक रोक पाएंगी या फिर रामकृपाल यादव जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे.

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पाटलिपुत्र सीट से रामकृपाल यादव और मीसा भारती आमने सामने हैं. इंडिया टुडे
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आनंद कुमार
24 मई 2024 (Updated: 24 मई 2024, 03:27 PM IST)
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रंजन यादव और रामकृपाल यादव. एक वक्त लालू प्रसाद यादव के सबसे बड़े सिपहसालार और राज़दार. लेकिन ये रिश्ता बस लालू यादव के करीबी होने भर का नहीं है. इनका लालू यादव से एक और रिश्ता है. कभी साथ थे फिर विरोधी बनें. और एक लोकसभा सीट से लालू यादव और उनके परिवार के लोगों को चुनाव नहीं जीतने दिया. हम बात कर रहे हैं पाटलिपुत्र लोकसभा सीट की जो परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई. जिस पर पहली बार  लालू यादव चुनाव लड़े और रंजन यादव से हारे. जिनकी फिर से इन दिनों राजद में वापसी हो गई है. फिर एक और साथी थे रामकृपाल यादव, काफी करीबी माने जाते थे. इन्होंने लालू यादव की बेटी मीसा भारती को इस सीट से दो बार हराया.

इस सीट से एक बार फिर रामकृपाल यादव और मीसा भारती आमने-सामने हैं. रामकृपाल यादव जहां BJP के टिकट पर इस बार जीत की हैट्रिक पूरी करने के इरादे से उतरेंगे. वहीं मीसा भारती की कोशिश हार की हैट्रिक से बचने की होगी. 

रामकृपाल यादव की राजनीति 

रामकृपाल यादव के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1977 के छात्र आंदोलन से हुई. परिसीमन के पहले पटना लोकसभा क्षेत्र से रामकृपाल यादव तीन बार सांसद रह चुके हैं. 1993, 1996 में जनता दल और 2004 में राजद से रामकृपाल ने जीत दर्ज की. 2010 में उन्हें राजद ने राज्यसभा भी भेजा. उन्हें एक जमाने में लालू यादव का सबसे विश्वस्त सहयोगी और उनके बाद राजद का सबसे बड़ा नेता माना जाता था. 

2014 में पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर रामकृपाल यादव ने RJD छोड़कर BJP ज्वाइन कर लिया. और बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े. मीडिया में इस लड़ाई को चाचा-भतीजी की लड़ाई बताया गया. जिसमें चाचा ने पहली बार भतीजी को शिकस्त दी. इस जीत के बाद रामकृपाल को केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया गया. 

बिहार के सियासी गलियारों में इस बार रामकृपाल यादव के टिकट कटने की चर्चा थी. लेकिन BJP ने एक बार फिर से उन पर अपना विश्वास जताया. रामकृपाल यादव को 2019 के चुनाव में जीत मिली. लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. इसे पार्टी में उनकी कमजोर स्थिति से जोड़कर देखा गया. उनकी जगह पार्टी ने उजियारपुर से सांसद नित्यानंद राय को मंत्री बनाया. और अब नित्यानंद राय ही पार्टी के सबसे बड़े यादव फेस माने जाते हैं.
रामकृपाल यादव की सबसे बड़ी ताकत संसदीय क्षेत्र में उनकी उपलब्धता रही है. इंडिया टुडे से जुड़े पुष्यमित्र कहते हैं- 

पाटलिपुत्र में रामकृपाल यादव और मीसा भारती में सीधी लड़ाई है. इस सीट को जो गणित है उसमें कैंडिडेट का असर ज्यादा होता है. क्योंकि रामकृपाल यादव एक ऐसे उम्मीदवार हैं जो अपने वोटरों के बीच रहते हैं. वोटर्स के यहां कोई भी आयोजन चाहे श्राद्ध हो, शादी हो, मुंडन हो वो पहुंच जाते हैं. वोटरों से उनका सीधा कनेक्ट है. कोई वोटर परेशान है तो फोन करके उनसे मदद ले सकता है. पार्टी से इतर अपनी छवि के दम पर रामकृपाल जीतते रहे हैं और थोड़ी-थोड़ी वजहों से मीसा जैसी मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि की उम्मीदवार हार जाती हैं.

इसके अलावा रामकृपाल यादव को जीत के लिए मोदी फैक्टर से भी आस है. पिछले 12 मई को पटना में पीएम का रोड शो हो चुका है. जबकि 25 मई को पाटलिपुत्र के बिक्रम विधानसभा में भी उनकी रैली होनी है. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह भी मानते हैं, 

रामकृपाल के पक्ष में इस सीट पर भी मोदी फैक्टर का असर है.

मीसा भारती की राजनीति

वहीं दूसरी ओर RJD से तीसरी बार इस सीट से दावेदारी कर रही मीसा भारती की सबसे बड़ी पहचान लालू यादव की बेटी के रूप में हैं. वो इससे पहले  2014 और 2019 का चुनाव हार चुकी हैं. 
मीसा भारती इस बार महंगाई, बेरोजगारी, पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की अनदेखी, नीतीश कुमार की ओर से बार-बार पाला बदलना और भाजपा की ओर से युवाओं के समस्याओं को न सुलझाने के मुद्दे जोर-शोर से उठा रही हैं. 
मीसा भारती अपने प्रचार में भावनात्मक मुद्दों का भी सहारा ले रही हैं. पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में ही उनका ससुराल है तो अपने को यहां की बहू बताकर वो महिलाओं के बीच आंचल फैलाकर वोट की अपील कर रही हैं.

मीसा भारती की संभावनाओं के बारे में सहारा समय से जुड़े स्थानीय पत्रकार धर्मेंद्र आनंद ने बताया कि

अगर मीसा भारती की जगह राजद का कोई और कार्यकर्ता या नेता इस सीट से लड़ता तो उसके जीतने की ज्यादा उम्मीद थी. बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ इस बार काफी एंटी इंकम्बेंसी है.  लेकिन महागठबंधन का कार्यकर्ता पूरे मन से मीसा भारती के साथ काम नहीं कर रहा है. क्याोंकि वो मीसा भारती के बदले किसी और का चेहरा चाह रहा था. जैसे रीतलाल यादव जो कि दानापुर के विधायक हैं बिलकुल सुस्त पड़े हैं. इस बार यहां से उनको टिकट मिलने की उम्मीद थी. 
 

मीसा भारती से वोटर्स की एक बड़ी नाराजगी का कारण क्षेत्र से उनका गायब रहना है. पिछले दो चुनावों में हार के बाद क्षेत्र में उनकी सक्रियता नहीं के बराबर रही है. पुष्यमित्र बताते हैं,


मीसा भारती की छवि जनता के बीच  एक ऐसी कैंडिडेट के रूप में है जिससे आप संपर्क नहीं कर सकते, अपनी बात नहीं बता सकते, मदद नहीं मांग सकते.
 

राजद इस सीट पर जीत के लिए अपने सामाजिक समीकरण पर निर्भर है. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह बताते हैं कि यहां यादव वोटर्स सबसे ज्यादा हैं. लेकिन मुस्लिम वोटर्स उतने नहीं हैं. इस लिए वो ईबीसी और नॉन यादव ओबीसी को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.


जो एक चीज इस सीट पर मीसा भारती के पक्ष में जा सकती है और रामकृपाल यादव के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है. वो है बिहार विधानसभा चुनाव के चुनावी नतीजे. पाटलिपुत्र लोकसभा सीट में 6 विधासभा सीट हैं. और पिछले विधानसभा चुनाव में NDA गठबंधन यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई. सारी सीटें विपक्ष के खाते में गईं. इस चुनाव में दानापुर, मनेर और मसौढ़ी सीट पर RJD ने कब्जा किया. फुलवारी और पालीगंज सीट पर CPI(ML) को जीत मिली. जबकि बिक्रम सीट कांग्रेस के खाते में गई. लोकसभा चुनावों से कुछ दिन पहले बिक्रम के कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ सौरभ पाला बदल कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इसके काउंटर में कांग्रेस ने भाजपा के पुराने नेता अनिल शर्मा को शामिल किया. यह भी एक बार भाजपा के टिकट पर यहां से विधायक रह चुके हैं.

ये भी पढ़ें - बिहार की वो सीट जो सीएम नीतीश के मंत्रियों के लिए नाक की लड़ाई हो गई!

पाटलिपुत्र लोकसभा सीट का स्वरूप और जातीय समीकरण

पाटलिपुत्र लोकसभा सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई. इससे पहले पटना के लिए केवल एक लोकसभा सीट थी. परिसीमन के बाद इसे दो सीटों में बांटा गया. एक पाटलिपुत्र और दूसरा पटना साहिब.

2019 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर करीब 20 लाख वोटर हैं. सियासी जानकारों के मुताबिक इस सीट पर यादवों के बाद भूमिहार, ब्राह्मण, कोइरी, कुर्मी और दलित मतदाता प्रभावी संख्या में हैं.

पुष्यमित्र के मुताबिक-

रामकृपाल यादव अपने व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण यादव वोटों में सेंध लगाने में सफल दिखते हैं. वहीं अगड़ी जातियों और नीतीश कुमार के समर्थक माने जाने वाले कोइरी और कुर्मी वोटों का बड़ा हिस्सा भी उनके साथ जुड़ता है.

पिछले तीन लोकसभा चुनावों का परिणाम

पाटलिपुत्र सीट के गठन के बाद पहली बार इस सीट से लालू यादव ने भाग्य आजमाया था. उनके खिलाफ एनडीए से जदयू ने रंजन यादव को उतारा था. इस चुनाव में रंजन यादव ने लालू यादव को करीबी मुकाबले में लगभग 23 हजार वोटों से शिकस्त दी. आपको बता दें कि रंजन यादव छात्र जीवन से ही लालू यादव के करीबी रहे थे. 1996 में लालू यादव के चारा घोटाले में जेल जाने के बाद बाद रंजन यादव को प्रॉक्सी सीएम कहा जाता था. 

2014 के लोकसभा चुनावों में रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को लगभग 40 हजार वोटों से जबकि 2019 के चुनाव में लगभग 39 हजार वोटों से हराया था.

ये वो तमाम कीवर्ड्स थे जिनके इर्द गिर्द पाटलिपुत्र की राजनीति घूम रही है. देखना दिलचस्प होगा कि इस सियासी घमासान में पिछले दो चुनावों में थोड़े अंतर से चूक रहीं मीसा भारती हार की हैट्रिक रोक पाएंगी या फिर रामकृपाल यादव जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे.

वीडियो: पाटलिपुत्र: लालू यादव की बेटी मीसा भारती हार रही हैं या जीत, इस गरीब बस्ती ने सच बताया

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