JDU-BJP साथ हैं तो विजय सिन्हा और नीतीश के करीबी मंत्री अशोक चौधरी लड़ क्यों रहे हैं?
Bihar Election: विजय सिन्हा और अशोक चौधरी चोरी छिपे नहीं लड़ते हैं. न ही किसी बंद कमरे में. जो होता है, सबके सामने. कभी विजय सिन्हा बातों से हमला करते हैं, तो कभी अशोक चौधरी. फिर कई नेता बीच बचाव के लिए आते हैं. तो कुछ बस मजे लेते रहते हैं.

बिहार विधानसभा भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) एक साथ बैठते हैं. मगर एनडीए के दो बड़े नेताओं की बीच की ‘जंग’ चर्चा में है. नेताओं के नाम हैं, बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी मंत्री अशोक चौधरी. ये जंग ऐसी है कि कई लोग कहते हैं- ‘यही हाल रहा, तो बिहार में NDA गठबंधन टूट जाएगा.’ जबकि कई लोग इसे सिर्फ अपने-अपने लोगों को टिकट दिलाने का मामला बताते हैं.
अभी तो लड़ाई सामने से विजय सिन्हा और अशोक चौधरी में दिख रही है. ध्यान रहे, दिख रही है. लेकिन पर्दे के पीछे से बड़ी-बड़ी ताकतें इन्हें कवर फायर दे रही हैं. एक तरफ BJP के भूमिहार नेता (विजय सिन्हा) हैं. तो उनके सामने JDU के सबसे बड़े दलित नेता (अशोक चौधरी).
दिलचस्प बात है कि सबसे बड़े लड़ैया अशोक चौधरी पर JDU के सबसे बड़े भूमिहार नेता का हाथ है. नाम है, राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह. वहीं, विजय बाबू...एक यादव विधायक का टिकट बचाने में लगें हैं.
विधायक जी का नाम है, प्रहलाद यादव. इन्हीं को लेकर हर महीने विजय सिन्हा और और अशोक चौधरी भिड़ जाते हैं. मतलब झगड़ा मासिक इवेंट जैसा हो गया है. बिहार में इसे उठौना कहते हैं. इसी उठौना की कहानी जानेंगे.
विजय सिन्हा और अशोक चौधरी चोरी छिपे नहीं लड़ते हैं. न ही किसी बंद कमरे में. जो होता है, सबके सामने. कभी विजय सिन्हा बातों से हमला करते हैं, तो कभी अशोक चौधरी. फिर कई नेता बीच बचाव के लिए आते हैं. तो कुछ बस मजे लेते रहते हैं.
हाल फिलहाल का झगड़ा तो बिहार सरकार के कैबिनेट की मीटिंग में ही हो गया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तब तक जा चुके थे. ये गनीमत रही. फिर क्या. उनके जाते ही, तुरंत बाद डिप्टी सीएम विजय सिन्हा और ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी में तू-तू मैं-मैं चालू हो गया. वो भी बिना ब्रेक के.
आधिकारिक रूप से ये बताया जा रहा है कि मामला सरकारी जमीन का है. अशोक चौधरी के करीबी मंत्री हैं जमा खान. वो पिछली बार बीएसपी से चुनाव जीते थे. अशोक चौधरी उनको JDU में ले आए. जमा खान का दावा है कि वे हिंदू राजपूत रहे हैं. उनके पूर्वजों ने इस्लाम कबूल कर लिया था.
जमा खान अपने इलाके में मेडिकल कॉलेज बनाना चाहते हैं. इसके लिए जो जमीन चाहिए, वो कृषि विभाग के पास है. और कृषि विभाग है डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के पास. उन्होंने कृषि विभाग की जमीन देने से इंकार कर दिया है. बस इसी बात पर विजय सिन्हा की अशोक चौधरी से तनातनी हो गई. अपने मंत्री दोस्त जमा खान के सम्मान में अशोक चौधरी मैदान में उतर आए.
लेकिन ये मामला इकलौता नहीं. कुछ दिन बाद, अशोक चौधरी-विजय सिन्हा में हाथा पाई तक की नौबत आ गई थी. पटना के विधानसभा में JDU और BJP के संयुक्त विधायक दल की बैठक थी. इसी बैठक में विजय सिन्हा ने प्रहलाद यादव का मुद्दा छेड़ दिया. फिर क्या था. अशोक चौधरी आपे से बाहर हो गए. उन्होंने कहा कि इन सब बातों के लिए ये उचित फोरम नहीं है.

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प्रहलाद यादव की कहानीपिछले साल विधानसभा में जब तेजस्वी यादव नीतीश सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए, तो बहुमत साबित करने के दौरान महागठबंधन के कुछ विधायक पाला बदल कर NDA की तरफ चले गए. प्रहलाद यादव पाला बदलने वाले सज्जनों में से एक हैं. वे सूर्यगढ़ा से RJD के विधायक हैं. विजय सिन्हा ही उनको NDA में ले आए थे. बताया जाता है कि तब उन्होंने प्रहलाद यादव को टिकट का भी वादा कर दिया था. लेकिन उन्हें क्या पता था कि गरारी फंस जाएगी.
बात अब डिप्टी सीएम के मान सम्मान की है. प्रहलाद यादव हर दिन डिप्टी सीएम सिन्हा को उनके किए वादे की याद दिलाते रहते हैं. लेकिन पिछली बार सूर्यगढ़ा की सीट JDU के खाते में थी. अब भला JDU ये सीट क्यों ही छोड़े. जबकि विजय सिन्हा चाहते हैं कि सीट की अदला बदली हो जाए.
मोदी सरकार में मंत्री और JDU के सीनियर नेता ललन सिंह हाल में सूर्यगढ़ा गए थे. उन्होंने मंच से कहा कि लखीसराय का आंतक सूर्यगढ़ा का उम्मीदवार नहीं बनेगा. उनका इशारा प्रहलाद यादव की तरफ था. प्रहलाद सूर्यगढ़ा से 5 बार के विधायक हैं.
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इस बार ललन सिंह ने अपने बेटे को चुनाव लड़ाने का मन बनाया है. लेकिन उससे पहले ही परिस्थितियां उनके प्रतिकूल हो गई हैं. ललन सिंह ने कहा है कि सूर्यगढ़ा JDU की परंपरागत सीट है और आगे भी रहेगी. पार्टी ये तय करेगी कि अगला उम्मीदवार कौन होगा.
तो बात अब टिकट की रही नहीं. प्रहलाद यादव तो नेपथ्य में चले गए हैं. अब तो बस ये तय होना है कि इस लड़ाई में BJP के भूमिहार नेता की जीत होती है या फिर JDU के भूमिहार नेता की. क्या पता, तब तक विजय सिन्हा और अशोक चौधरी में एक राउंड और लड़ाई हो जाए.
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