कहानी शिल्पी-गौतम हत्याकांड की जिसमें पीके ने सम्राट चौधरी का नाम घसीटा है
साल 1999 में शिल्पी- गौतम हत्याकांड ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री Rabri Devi के भाई Sadhu Yadav का नाम इस मामले से जुड़ा था. बाद में CBI ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में दोनों की मौत को आत्महत्या करार दिया था.

3 जुलाई 1999. पटना के फ्रेजर रोड स्थित क्वार्टर नंबर 12. पार्किंग के पास एक कार में दो लाश मिली. अर्धनग्न अवस्था में. एक युवक था और एक युवती. पहचान शिल्पी जैन और गौतम सिंह के तौर पर हुई. दोनों पिछले 8 घंटे से लापता थे. क्वार्टर जिसके पास शव मिला, लालू यादव (Lalu Yadav) के साले और राजद नेता साधु यादव (Sadhu Yadav) का था. उनकी बहन राबड़ी देवी (Rabri Devi) तब बिहार की मुख्यमंत्री थीं.
आरोप लगा कि शिल्पी का गैंगरेप के बाद मर्डर हुआ और उसके दोस्त की भी हत्या हुई. साधु यादव का भी नाम आया. मामला CBI को गया और क्लोजर रिपोर्ट में इसे सुसाइड बताया गया. अब 26 साल बाद ये मामला फिर सुर्खियों में है. नए किरदारों की वजह से.
जनसुराज के नेता प्रशांत किशोर ने बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से पूछा है कि वो साफ करें कि इस मामले में वो आरोपी थे या नहीं. दरअसल आरोपियों में से एक का नाम राकेश कुमार है, पीके का कहना है कि राकेश कुमार ही सम्राट चौधरी हैं. लेकिन सम्राट कहते हैं कि वो कोई और राकेश है, जिसका हाजीपुर में आइसक्रीम का व्यवसाय था. बहरहाल इन आरोप प्रत्यारोपों को विराम देते हुए शिल्पी गौतम हत्याकांड की कहानी जानते हैं.
शिल्पी जैन और गौतम सिंह कौन थे?शिल्पी जैन पटना के बड़े कपड़ा कारोबारी उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी थी. पटना वीमेंस कॉलेज की स्टूडेंट रहीं. साल 1998 में मिस पटना का खिताब जीता. तब पटना एडिशन के हर अखबार में उनकी तस्वीर आई. कॉलेज पासआउट होने के बाद कम्यूटर कोचिंग करने लगीं. वहीं गौतम सिंह की शिल्पी जैन से पुरानी दोस्ती थी. गौतम के पिता बीएन सिंह लंदन में डॉक्टर थे. पूरा परिवार वहीं रहता. लेकिन 27 साल के गौतम पटना में अकेले रहते थे, वजह थी राजनीति.
दरअसल, गौतम राष्ट्रीय जनता दल के यूथ विंग से जुड़े हुए थे और उस वक्त सूबे में इसी पार्टी की सरकार थी. गौतम चुनावी राजनीति में एंट्री की फिराक में थे और इसके लिए वे साधु यादव के भरोसे थे. वही साधु यादव, जो तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी के भाई हैं. उनपर और उनके भाई सुभाष यादव पर डिफैक्टो सीएम होने के आरोप लगते रहते थे. ये सब जब हो रहा था उस वक्त लालू यादव चारा घोटाले के आरोप में जेल में थे.
3 जुलाई 1999 को क्या हुआ?3 जुलाई 1999. शिल्पी रोज की तरह रिक्शे से कंप्यूटर कोचिंग के लिए इंस्टीट्यूट जा रही थी. रास्ते में गौतम का एक दोस्त मिला. वो कार से था. उसने शिल्पी को कार से छोड़ने की बात कही. गौतम के उस दोस्त से शिल्पी परिचित थी. गौतम के फ्रेंड सर्किल में वो सब से मिल चुकी थी. यहां तक कि साधु यादव से भी. शिल्पी रिक्शे से उतर कर कार में बैठ गई. लेकिन उस लड़के ने इंस्टीट्यूट के बजाए कार दूसरी तरफ मोड़ दी. शिल्पी ने आपत्ति जताई. गौतम के दोस्त ने बताया कि वह फुलवारीशरीफ स्थित वाल्मी गेस्ट हाउस जा रहा है. गौतम वहीं है. शिल्पी मान गई. गाड़ी पटना के बाहरी छोर पर स्थित वाल्मी गेस्ट हाउस पहुंची. तब वहां रेसीडेंशियल इलाका न के बराबर था.
इधर, गौतम को जैसे ही खबर मिली कि शिल्पी को वाल्मी गेस्ट हाउस ले जाया गया है. वह फौरन वहां पहुंचता है. क्योंकि उसे पता था कि वाल्मी सत्ताधारी दल के कई नेता और उनके शागिर्दों के लिए अय्याशी का अड्डा था.
गेस्ट हाउस के भीतर क्या हुआ, ये पब्लिकली उस घटना से जुड़े किसी शख्स ने सामने आकर नहीं बताया. लेकिन उस दौर की तमाम मीडिया रपट, पुलिस सूत्र और घटना को कवर करने वाले रिपोर्ट्स के नोट्स के आधार पर जो चीजें सामने आईं वो कहानी हम आपको बता रहे हैं.
गेस्ट हाउस में गौतम को पीटा और शिल्पी का रेप हुआगौतम गेस्ट हाउस पहुंचा तो देखा कि शिल्पी के साथ जबरदस्ती की जा रही थी. उसके कपड़े उतरे हुए थे. और वह रो रही थी. गौतम की आंखों के सामने भी उसके साथ जबरदस्ती हुई. गौतम ने बचाने की कोशिश की, तो वहां मौजूद लोगों ने उसे मजबूती से जकड़ लिया. हाथ, पैर और जूतों से बुरी तरह से पिटाई की.
साधु यादव के क्वार्टर के पास मिली लाशशिल्पी जब ट्यूशन के टाइम से काफी देर बाद तक घर नहीं पहुंची तो परिवार वाले परेशान हो गए. तलाश शुरू हुई. जानने वालों के घरों के दरवाजे खटखटाए. पता नहीं चला तो शाम 7 बजे पुलिस स्टेशन पहुंचे. मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस जांच शुरू करती, इससे पहले रात लगभग साढ़े 9 बजे एक सूचना आई. पटना के गांधी मैदान के पास विधायकों के कई क्वार्टर्स हैं. उनमें एक क्वार्टर साधु यादव का था. उस वक्त साधु यादव MLC थे. क्वार्टर के बिल्कुल लगते हुए एक बंद पड़ी पार्किंग गैराज थी. उसका शटर बाहर से लगा हुआ था. किसी ने गांधी मैदान पुलिस थाने को खबर दी कि इस बंद गैराज में दो लोगों की लाश पड़ी है. पुलिस मौके पर पहुंचती है तो देखती है कि कार में एक युवक और एक युवती की लाश पड़ी है. गाड़ी का नंबर था BR-1J-5001. लाश की पहचान गौतम और शिल्पी के तौर पर हुई. गौतम सिर्फ पैंट पहने हुआ था. वहीं शिल्पी के शरीर पर केवल टीशर्ट था. वो भी गौतम का. बाकी कपड़े गाड़ी में जहां तहां बिखरे हुए थे.

गौतम और शिल्पी की डेडबॉडी जिस क्वार्टर के गैराज में मिली. वो साधु यादव का था. पुलिस घटनास्थल पर जांच कर रही थी, तभी लगभग आधे घंटे बाद साधु यादव अपने समर्थकों के साथ वहां पहुंच गए. और हंगामा शुरू कर दिया. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तब उसे पता नहीं था कि जो लाश अंदर है वो शिल्पी और गौतम की है. ऐसे में पुलिस के पहुंचने के आधे घंटे बाद ही साधु यादव का पहुंच जाना हैरान करने वाला था. क्राइम तक से जुड़े शम्स ताहिर खान के मुताबिक तब तक पुलिस ने किसी को इस बात की खबर नहीं दी थी. आज तक इस बात का भी खुलासा नहीं हो पाया कि पुलिस को लाश की सूचना देने वाला कौन था?
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बिना पोस्टमार्टम के ही पुलिस ने आत्महत्या बता दियागांधी मैदान थाने की पुलिस ने इसके बाद जो किया वो अनप्रोफेशनलिज्म की पराकाष्ठा थी. उन्होंने कार से दोनों लाशों को बाहर निकाला और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. जिस गाड़ी में लाश मिली उसको एक सिपाही ड्राइव करके थाने ले गया. इसके चलते उस गाड़ी के सारे फिंगर प्रिंट्स बदल गए. पुलिसिया कार्रवाई के दौरान दूसरे सबूतों की भी टैंपरिंग हुई.
उसी रात जल्दबाजी में शिल्पी और गौतम का पोस्टमार्टम हुआ. और शव का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया. गौतम के पिता तब लंदन में थे. उन्हें इस बात की जानकारी तक नहीं दी गई. जब वे पटना आए, तब तक उनके बेटे का अंतिम संस्कार हो चुका था. पुलिस के इस रवैये को लेकर सवाल उठे कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों बरती गई.
गांधी मैदान थाने की पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट आए बिना ही इस घटना को आत्महत्या बता दिया. तत्कालीन सिटी एसपी मनविंदर सिंह भाटिया ने कहा कि कार्बन मोनॉक्साइड पॉइजनिंग से दोनों की डेथ हुई है. यानी दम घुटने से. इसे मेडिकल साइंस की भाषा में asphyxiation बोलते हैं. उन्होंने ये भी दावा किया कि इस दौरान दोनों कार में यौन संबंध बना रहे थे.
पोस्टमार्टम और विसरा रिपोर्ट आने से पहले ही सिटी एसपी भाटिया के इन बयानों को लेकर विपक्ष ने हंगामा कर दिया. आरोप लगाया कि साधु यादव को बचाने के लिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं.
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पोस्टमार्टम और विसरा रिपोर्ट में क्या आया?गौतम और शिल्पी की पोस्टमार्टम पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) में हुआ. घटना के 25 दिन बाद 28 जुलाई 1999 को विसरा रिपोर्ट आई. इसमें दोनों की बॉडी में एल्युमीनियम फॉस्फाइड यानि (सल्फास) की गोली का अंश मिला. सल्फास बहुत जहरीला होता है. इसका इस्तेमाल अनाज को बचाने वाले प्रिजर्वेटिव के तौर पर होता है. इसके अलावा कार्बन मोनोऑक्साइड से डेथ को लेकर रिपोर्ट नेगेटिव आई.
इसके कुछ दिन बाद कुछ सैंपल्स को फॉरेंसिक जांच के लिए हैदराबाद स्थित Centre of DNA Fingerprinting and Diagnosis (CDFD) भेजा गया. रिपोर्ट में पता चला कि शिल्पी के इनरवियर पर एक से ज्यादा लोगों के सेमिनल स्ट्रेन (सीमेन के स्ट्रेन) हैं. मतलब एक से ज्यादा लोगों ने शिल्पी के साथ संबंध बनाए.
फॉरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद सियासी बवाल तेज हो गया. विपक्ष अब साधु यादव के खिलाफ सड़कों पर उतर आया. सरकार पर उनको बचाने का आरोप लगने लगा. दबाव बढ़ता देख तत्कालीन मुख्यमंत्री और साधु यादव की बहन राबड़ी देवी ने सितंबर 1999 में केस को CBI को ट्रांसफर कर दिया.
सीबीआई ने अपनी जांच शुरू की. लेकिन उनकी एक लिमिट थी. पुलिस ने जाने या अनजाने बहुत से सारे एविडेंस को खत्म कर दिया था. सीबीआई की जांच फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ी. एजेंसी ने गौतम के दोस्तों के ब्लड सैंपल लेने शुरू किए. ताकि इनरवियर पर पाए गए सीमेन को मैच कराया जा सके. गौतम के पांच दोस्त मनीष, राकेश, पंकज, एसपी सिंह और अशोक यादव के ब्लड सैंपल को CDFD भेजा गया. लेकिन किसी का डीएनए मैच नहीं हुआ. शिल्पी के एक चाचा सजल कुमार जैन का भी डीएनए टेस्ट हुआ. लेकिन सैंपल मैच नहीं हुआ. इस बीच CBI ने कई बार साधु यादव से अपना ब्लड सैंपल देने को कहा. लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. तर्क दिया उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है. अगर ब्लड सैंपल दिया तो उनके खिलाफ बड़ा गेम हो जाएगा.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) अपराधीकरण के खिलाफ अधिकार की गारंटी देता है. यानी आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. यह अधिकार आरोपियों को ऐसे सबूत देने के लिए बाध्य होने से बचाता है, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है. लेकिन कुछ विशेष मामलों में (खासकर आपराधिक) कोर्ट किसी व्यक्ति को ब्लड सैंपल देने का आदेश जारी कर सकती है. मगर सीबीआई ने इस मामले में किसी भी कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया.
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CBI ने सिंतबर 1999 से 2004 के आखिर तक मामले की जांच की. इस दौरान केंद्रीय एजेंसी साधु यादव से सैंपल देने का अनुरोध करती रही. और साथ में दूसरे एंगल को भी एक्सप्लोर करती रही. CBI शिल्पी और गौतम के दोस्त,परिवार और सगे संबंधियों से उनके दोस्त और दुश्मनों की जानकारी निकालने की कोशिश में जुटी रही. लेकिन एजेंसी के मुताबिक उनको कोई ऐसी लीड नहीं मिली जिससे हत्या का एंगल एक्सप्लोर किया जा सके. फॉरेंसिक जांच में शिल्पी के इनरवियर पर दो सेमिनल स्ट्रेन मिले थे. उनमें से एक तो गौतम का था. लेकिन दूसरा किसका था ये पता नहीं लग सका. फॉरेंसिक एक्सपर्ट के मुताबिक सेमिनल स्ट्रेन की एज आइडेंटिफाई नहीं की जा सकती यानी ये दोनों स्ट्रेन एक ही समय के थे या अलग-अलग ये पता लगाना मुमकिन नहीं था.
साल 2004 के आखिर में CBI ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट पेश की. क्लोजर रिपोर्ट में लिखा गया,
कई सवाल अनसुलझे रहे गए?मृतक शिल्पी जैन के इनरवियर में अज्ञात व्यक्ति के सेमिनल स्ट्रेन जरूर मिले. लेकिन उनके शरीर पर नहीं, जो दर्शाता है कि सिमेन के दाग पहले के थे. और संघर्ष के कोई निशान नहीं हैं. वैज्ञानिक साक्ष्य और घटनाओं की क्रोनोलॉजी स्पष्ट संकेत देता है कि यह आत्महत्या का मामला है. दोनों की मृत्यु एल्यूमिनियम फॉस्फाइड पॉइजनिंग के चलते हुई है. यह अंतिम रिपोर्ट धारा 173 CrPC के तहत माननीय न्यायालय के समक्ष दायर की जा रही है. प्रार्थना है कि इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया जाए. और मामले को बंद करने की अनुमति दी जाए.
CBI के इस फैसले से कई सवाल अनसुलझे रह गए. कोई अर्धनग्न होकर आत्महत्या क्यों करेगा. पुलिस को किसने बताया कि साधु यादव के आवास के गैराज में दो लाश पड़ी है? साधु यादव को किसने सूचना दी जो वह पुलिस के पहुंचने के तुरंत बाद वहां पहुंच गए? घटना स्थल से गाड़ी को टो (उठाकर) करके ले जाने के बजाए चलाकर थाने क्यों ले जाया गया? पुलिस को अंतिम संस्कार और पोस्टमार्टम कराने की इतनी जल्दी क्यों थी? और साधु यादव ने डीएनए जांच के लिए मना किया तो सीबीआई ने कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया.
शिल्पी के भाई ने केस खुलवाना चाहा तो किडनैपिंग हो गईसीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने पर जमकर हंगामा हुआ. शिल्पी के भाई प्रशांत जैन इस फैसले के खिलाफ थे. साल 2005 के आखिरी महीने में उन्होंने पटना हाईकोर्ट में रिट पिटिशन फाइल किया. लेकिन 5 जनवरी 2006 को उनको किडनैप कर लिया गया. पुलिस में FIR लिखवाई गई. लेकिन एक हफ्ते के बाद अपराधियों ने उन्हें खुद ही छोड़ दिया. इसके बाद प्रशांत जैन ने कभी उस रिट पिटीशन को फॉलो नहीं किया. यानी मामला हमेशा के लिए पूरी तरह से क्लोज हो गया.
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