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आजमगढ़ में 'यादव बनाम यादव': पिछली बार निरहुआ जीते, मगर इस बार का गणित अलग क्यों नजर आ रहा?

Azamgarh में साल 2022 के उपचुनाव में BJP के दिनेश लाल यादव ने सपा के धर्मेंद्र यादव को हरा दिया था. तब और अब में क्या बदल गया है? कैसे तीसरे उम्मीदवार ने चुनाव के समीकरण पिछले इलेक्शन से अलग कर दिए हैं.

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दिनेश लाल यादव बनाम सपा के धर्मेंद्र यादव. (फ़ोटो - सोशल)
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13 अप्रैल 2024 (Updated: 14 अप्रैल 2024, 11:25 IST)
Updated: 14 अप्रैल 2024 11:25 IST
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उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल संभाग. पूर्वांचल की आज़मगढ़ सीट. सपा का गढ़ कही जाती थी. मगर ज्यों ही 2022 में तत्कालीन सांसद अखिलेश यादव ने इस्तीफ़ा दिया, उपचुनाव में BJP के टिकट से दिनेश लाल यादव उर्फ़ 'निरहुआ' ने ये सीट निकाल ली. 24 में फिर लड़ाई है. सपा प्रमुख ने अबकी अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है. 25 मई, 2024 को छठे चरण में इस सीट पर वोटिंग तय हुई है.

अबकी बारी, किसका पलड़ा भारी?

आज़मगढ़ में अनुसूचित जाति, ओबीसी और मुसलमान, तीनों ही समुदाय 17 से 20 फ़ीसदी के आसपास हैं. राजनीति के लिहाज़ से यादव जाति के लोगों का प्रभुत्व रहा है. यहां पर 14 बार यादव जाति के सांसद चुने गए. 1962 में राम हरख यादव, '67 और '71 में चंद्रजीत यादव, '77 में राम नरेश यादव, फिर '89 में राम कृष्ण यादव. लंबी लिस्ट है. अक्टूबर, 1992 में सपा बनी, और पहले ही लोकसभा चुनाव में आज़मगढ़ जीत गई. साल 1996 में सपा के रमाकांत यादव सांसद चुनकर दिल्ली भेजे गए. '99 में फिर चुने गए. फिर 2004 में बसपा में चले गए, सांसद वही रहे. उपचुनाव हारे, तो 2009 के आम चुनाव से पहले BJP में चले गए और फिर जीत गए.

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पिछले दो लोकसभा चुनावों में यादव पिता-पुत्र ने सीट को वापस सपा के पाले में ला दिया. 2014 में मुलायम सिंह यादव ने BJP के रमाकांत यादव को हराया और 2019 में अखिलेश यादव ने दिनेश लाल यादव को. साल 2022 में विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश यादव ने इस्तीफ़ा दे दिया. तो सीट पर उपचुनाव हुए. BJP ने दिनेश लाल यादव को उतारा, सपा ने धर्मेंद्र यादव को. नतीजा - क़रीबी मुक़ाबले में दिनेश लाल जीत गए.

इस बार भी वही टक्कर है – ‘यादव बनाम यादव’. दिनेश लाल यादव बनाम धर्मेंद्र यादव.

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धर्मेंद्र यादव. तीन बार सांसद रहे हैं. सपा के टिकट से 2004 से 2009 तक मैनपुरी और 2009 से 2019 तक बदांयू के सांसद रहे. इंडिया टुडे से जुड़े राजीव कुमार ने दी लल्लनटॉप को बताया कि भले ही 2022 में पहली बार धर्मेंद्र आज़मगढ़ आए, मगर यहां ‘इटावा-सैफ़ई परिवार’ की स्वीकार्यता है. पहले मुलायम सिंह, फिर अखिलेश, अब उन्हीं के परिवार के धर्मेंद्र. क्षेत्र में उनकी छवि एक अप्रोचेबल नेता की है. ज़मीन पर दिखते हैं, लोगों की नज़र में हैं.

दिनेश लाल यादव. भोजपुरी फ़िल्म जगत की नामी शख़्सियत. मास अपील है. साथ में है भारतीय जनता पार्टी का रथ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लोकप्रिय चेहरा. स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि व्यक्तिगत तौर पर उनसे जनता को कोई शिकायत नहीं है. लेकिन सीधे मुक़ाबले में वो अखिलेश यादव को हरा नहीं पाए थे. जब धर्मेंद्र से भी जीते, तो कारण अलग था.

बसपा का अड़ंगा

मायावती ने पूर्व-प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को प्रत्याशी घोषित किया है. मूलतः मऊ के निवासी हैं. 1985 से बसपा से जुड़े हुए हैं. बूथ से लेकर मंडल, फिर ज़िले के अलग-अलग पदों पर रहे. महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के प्रभारी भी बनाए गए. पार्टी ने उन्हें साल 2012 और 2022 में मऊ सदर सीट से टिकट भी दिया, मगर जीत न पाए. एक बार फिर पार्टी ने भरोसा जताया है. 

हालांकि, इस बार हालात और हैं. राजीव बताते हैं कि इलाक़े में राजभरों की संख्या अच्छी-ख़ासी है. और, ये लोग ओम प्रकाश राजभर से नाख़ुश मालूम पड़ते हैं. इसका फ़ायदा बसपा को, और कुछ सपा को हो सकता है. इसीलिए भले भीम राजभर ने चुनाव न जीता हो, मगर वो यादव बनाम यादव की लड़ाई में डेंट तो डाल ही सकते हैं.

तीसरे कैंडिडेट ने कैसे बदले समीकरण?

आज़मगढ़ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं: गोपालपुर, सगड़ी, मुबारक़पुर, आजमगढ़ और मेहनगर. यहां से बीजेपी के खाते में एक भी विधानसभा सीट नहीं है. कह सकते हैं कि ग्राउंड पर BJP की पकड़ नहीं है. लोकल मुद्दों को लेकर जनता उनसे संतुष्ट नहीं है.

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साल 2022 में जो उपचुनाव हुए, सूबे की राजनीति कवर करने वाले उसमें सपा की हार का एक बड़ा कारण बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली को मानते हैं. शाह आलम गुड्डू जमाली की वजह से मुस्लिम समुदाय के वोट दोफाड़ हो गए. इसका सीधा फ़ायदा BJP प्रत्याशी निरहुआ को हुआ. उन्हें कुल 3,12,768 वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 मत और तीसरे स्थान पर रहे गुड्डू जमाली को 2,66,210 वोट पड़े. निरहुआ तो मात्र 8679 मतों से जीते, मगर जमाली के पक्ष में गया एक बड़ा हिस्सा उनका पारंपरिक वोटर नहीं था. त्रिकोणीय मुक़ाबला न होता, तो गाड़ी फंसने की बहुत संभावना थी.

अब गुड्डू जमाली सपा में आ गए हैं. इसीलिए कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोट एकमुश्त सपा की तरफ़ ही रहेगा. मगर ये केवल क़यास हैं. डिप्टी CM तो आज़मगढ़ में पूरे दमख़म से अपनी जीत का दावा कर आए हैं. कह रहे हैं सभी 80 सीटों पर जीतेगी BJP.

(ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे नवनीत के इनपुट्स के साथ लिखी गई है.)

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