The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Education
  • Delhi university considers to introduce manusmriti in llb course teachers body oppose

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जाएगी मनुस्मृति, शिक्षकों ने छेड़ दिया है विरोध

विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन ने कहा है कि मनुस्मृति के किसी भी हिस्से को लागू करना भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है. मांग की गई है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए.

Advertisement
Manusmriti in DU
फैकल्टी ऑफ लॉ की डीन ने प्रस्ताव का बचाव किया है. (फाइल फोटो- सांकेतिक)
pic
साकेत आनंद
11 जुलाई 2024 (Published: 09:12 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

दिल्ली यूनिवर्सिटी का फैकल्टी ऑफ लॉ अपने अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम में विवादास्पद धार्मिक ग्रंथ 'मनुस्मृति' को शामिल करने पर विचार कर रहा है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के सामने 12 जुलाई को संशोधित सिलेबस को पेश किया जाएगा. मनुस्मृति को न्याय शास्त्र (Jurisprudence) के पेपर में लाने पर विचार हो रहा है. इस संशोधन को अगस्त से शुरू होने वाले नए सत्र के लिए लाया जा रहा है. यूनिवर्सिटी के इस फैसले पर कई प्रोफेसर विरोध भी जता रहे हैं.

मनुस्मृति एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है, जिसे मनु नाम के व्यक्ति ने लिखा था. कब लिखा गया? इसको लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग राय है. इस धार्मिक ग्रंथ में जाति और महिलाओं को लेकर कई ऐसी आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं, जिसकी अक्सर आलोचना होती है.

समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, न्याय शास्त्र पेपर में ये संशोधन LLB के पहले और छठे सेमेस्टर के लिए हो रहे हैं. इनमें छात्रों के लिए दो किताबों को शामिल करने का प्रस्ताव है. जीएन झा की 'मनुस्मृति विद द मनुभाष्य ऑफ मेधातिथि' और टी कृष्णस्वामी अय्यर की 'मनुस्मृति स्मृतिचंद्रिका'.

रिपोर्ट बताती है कि इन बदलावों के सुझाव का फैसला पिछले महीने फैकल्टी ऑफ लॉ की कोर्स कमिटी की बैठक में लिया गया था. इस बैठक की अध्यक्षता फैकल्टी ऑफ लॉ की डीन प्रोफेसर अंजू वाली टिकू ने की थी.

बदलाव का विरोध

डिपार्टमेंट के इस फैसले का कई प्रोफेसर विरोध कर रहे हैं. सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) ने डीयू के कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखा है और कहा है कि मनुस्मृति के विचार महिलाओं और पिछड़े समुदाय के प्रति आपत्तिजनक हैं. और ये एक प्रगतिशील शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ होगा. मनुस्मृति के कई श्लोकों में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकार के खिलाफ लिखा गया है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली यूनिवर्सिटी के सिलेबस में 'ब्राह्मणीकरण', असमानता के चैप्टर हटे, किसने किया ये फैसला?

SDTF ने लिखा है कि मनुस्मृति के किसी भी हिस्से को लागू करना भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है. मांग की गई है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए. और इसे एकेडेमिक काउंसिल की मीटिंग में मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए.

डीन ने बचाव में क्या कहा?

इंडिया टुडे से जुड़ीं मिलन शर्मा ने प्रोफेसर अंजू वाली टिकू ने इस संशोधन पर बात की. प्रोफेसर टिकू ने कहा, 

"ये सिफारिश डीयू कमिटी की तरफ से दिया गया है. टॉपिक अचानक नहीं आ गया. हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज समेत कई विद्वानों से सलाह ली गई. 25 जून को स्टैंडिंग काउंसिल की मीटिंग हुई थी, तब किसी ने इसका विरोध नहीं किया था. अचानक अब सब जग गए हैं."

प्रोफेसर टिकू ने मनुस्मृति का बचाव करते हुए बताया कि जो कहा जा रहा है कि ये महिला सशक्तिकरण और उनकी शिक्षा के खिलाफ है और ये पिछड़ी जातियों के खिलाफ है, ये गलत है. उन्होंने कहा कि अगर हम अपने हमारे पुराने ग्रंथ के बारे में नहीं जानेंगे तो हम कैसे कोर्स की समझ का विश्लेषण कर सकते हैं.

एकेडेमिक काउंसिल से प्रस्ताव पारित होने के बाद ये एग्जिक्यूटिव काउंसिल के पास जाता है. सिलेबस को अंतिम मंजूरी वहीं से मिलती है.

डीयू में सिलेबस में बदलाव को लेकर ये विवाद पहली बार नहीं हो रहा है. पिछले साल भी वीडी सावरकर को सिलेबस में जोड़े जाने और अल्लामा इकबाल को हटाने पर विवाद हुआ था.

वीडियो: तारीख़ : नालंदा यूनिवर्सिटी को किसने जलाया?

Advertisement