इस साल आम खाने का शौक पड़ेगा जेब पर भारी, वजह जानकर बारिश को कोसेंगे
जानकारों का कहना है कि औसतन 10 फीसदी फसल बर्बाद होने का अंदाजा रहता है. लेकिन इस साल यह नुकसान 30-40 फीसदी पर पहुंचने की आशंका है.

इस साल आम के दाम सस्ते होने के आसार बेहद कम हैं. वजह आम की फसलों में हुई बर्बादी. हर फसल के लिए एक उपयुक्त तापमान और मौसम का रुख काफी मायने रखता है. जरूरत से ज्यादा या कम तापमान मिलना फसल के लिए कभी फायदेमंद नहीं हो सकता है. मौसम चक्र में असामान्य बदलाव भी फसल को चौपट कर देता है. कुछ ऐसा ही अप्रिय हुआ है हमारे फेवरेट फ्रूट आम की फसल के साथ. इस साल मौसम का मिजाज बार-बार तेजी से बदला है. इसका असर फसलों पर पड़ा है.
जानकारों का कहना है कि औसतन 10 फीसदी फसल की बर्बाद होने का अंदाजा रहता है. लेकिन इस साल यह नुकसान 30-40 फीसदी पर पहुंचने की आशंका है. मलीहाबाद जैसे कुछ इलाकों में तो बागान मालिकों को 80 फीसदी फसल बर्बाद होने का डर बना हुआ है.
मेरठ में सरदार वल्लभ भाई पटेल सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर आरएस सेंगर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि फरवरी-मार्च में एकाएक तापमान बढ़ने से मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य कीटों की सेहत पर बुरा असर पड़ा. उन्होंने कहा,
इससे पॉलिनेशन (पौधों के रीप्रोडक्शन का एक हिस्सा, जिसे परागण कहते हैं) क्रिया में व्यवधान पड़ता है. पॉलिनेशन में मधुमक्खी और तितलियां एक फूल के पराग को उठाकर दूसरे पौधे के प्रजनन वाले भाग पर छोड़ते हैं, जिससे नए बीज पैदा होते हैं. मौसम में असामान्य परिवर्तन के चलते पॉलिनेशन की प्रक्रिया में बाधा आने से नए फूलों का उत्पादन घटा. गिने चुने पेड़ों पर जो मंजरियां लगी थीं तापमान में गिरावट की वजह से वो ठीक से पक नहीं पाईं. यही नतीजा है कि बाजार में इस समय आम की आवक पहले जैसी नहीं दिख रही.
भारत में हर साल 23 लाख हेक्टेयर में 279 लाख टन आम का उत्पादन होता है. दुनिया भर में आम की होने वाली फसल का यह 55 फीसदी है. इस कुल उत्पादन का 23 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश में होता है. मात्रा के लिहाज से यह उत्पादन 48 लाख टन के आसपास बैठता है. राज्य में सबसे ज्यादा आम लखनऊ, सहारनपुर और मेरठ में होते हैं. उत्तर प्रदेश में होने वाली आम की कई वैरायटी की विदेशों में भी मांग है. सिंगापुर, मलेशिया, इंग्लैंड और दुबई जैसे देशों में यूपी का आम निर्यात हो रहा है.
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च में हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉक्टर वीबी पटेल टाइम्स ऑफ इंडिया को बताते हैं,
“सारा खेल बेमौसम की बारिश ने बिगाड़ा है. बिन मौसम की बरसात ने बीजों की फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया को ही चौपट कर दिया. थोड़े बहुत बौर जो पेड़ों पर बचे रह गए वो आम में तब्दील नहीं हो सके. आलम ये है कि इस समय पके आम से ज्यादा कच्चे आम हैं.”
वीबी पटेल ने कहा कि कुल बर्बादी कितनी है ये बता पाना अभी मुश्किल है. लेकिन इतना तय है कि नुकसान काफी अधिक हुआ है.
उत्तर प्रदेश में सभी आम उत्पादन वाले इलाकों में मौसम का असर पड़ा है. अमरोहा के एक किसान नदीम सिद्दीकी ने अखबार से कहा,
"फसल ने बारिश झेल ली, तूफान भी झेल लिया, मगर ओलों ने हालत खराब कर दी. आम के पेड़ों पर बौर लगने खत्म हुए थे और फल बनने की शुरुआत हुई थी. यह समय पौधों के लिए बेहद संवेदनशील होता है. लेकिन इसी समय ओले पड़ गए और 40-50 फीसदी फसल उसी समय बर्बाद हो गई."
मलीहाबाद का हाल भी कुछ ऐसा ही है. वहां के किसानों के मुताबिक 19 मार्च तक अच्छी खासी फसल थी. लेकिन 21 और 22 मार्च को हुई बारिश से आम के बौर बुरी तरह खराब हो गए. ज्यादातर पेड़ों पर या तो फूल पूरी तरह खत्म हो गए या तो बौर काले पड़ गए.
रिपोर्ट के मुताबिक मार्च और अप्रैल में आम को पकने के लिए 27 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है. कम या ज्यादा तापमान फसल के लिए नुकसानदायक होता है. तेज हवा, बादल वाले मौसम और ज्यादा नमी भी फसल के लिए बुरी मानी जाती है. एक किसाब ने बताया कि इस बार तापमान में बदलाव के कारण फसलों पर कीड़े लग गए. इससे भी पैदावार कम हुई है.
इस सबका सीधा मतलब ये है कि इस साल आम खाने हैं तो जेब से ज्यादा पैसे ढीले करने पड़ेंगे.
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