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10 मिनट में खाना डिलीवर करने वाले बिजनेस मॉडल की हवा क्यों निकल रही है?

क्या फूड डिलीवरी ऐप्स का 10 मिनट डिलीवरी मॉडल फेल हो चुका है?

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फूड डिलीवरी मॉडल फेल हो रहा. (तस्वीरें- इंडिया टुडे)
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प्रदीप यादव
26 अप्रैल 2023 (Updated: 26 अप्रैल 2023, 11:51 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत में पिछले साल कई बड़ी कंपनियों ने दस मिनट में ग्रॉसरी और फूड डिलीवरी सेवाएं शुरू की थीं. इनमें जोमैटो, स्विगी से लेकर जेप्टो और ब्लिंकिट जैसे कंपनियां शामिल थीं. अब कहा जा रहा है कि ये बिजनेस मॉडल फेल हो चुका है. आगे बढ़ने से पहले समझते हैं कि 10 मिनट में ऑनलाइन डिलीवरी का कॉन्सेप्ट क्या है?

सबसे पहले जेप्टो का मॉडल समझते हैं. जेप्टो का 10 मिनट डिलीवरी मॉडल 'कैफे' फार्मेट की तरह काम करता है. जेप्टो पर आप चाय, कॉफी, बिस्कुट, सैंडविच समेत दूसरे डिब्बा बंद स्नैक्स वगैरह खरीद सकते हैं. लेकिन, जेप्टो 10 मिनट में खाने का सामान डिलीवर करने का दावा नहीं करती है. कंपनी सिर्फ 10 मिनट में ग्रॉसरी आइटम डिलीवर कर रही है. इसे देखते हुए पिछले साल फरवरी में जोमैटो ने इंस्टैंट सर्विस के जरिये 10 मिनट में फूड डिलीवरी शुरू की थी.

जोमैटो ने 'इंस्टेंट' सर्विस के जरिये 10 मिनट में बिरयानी, मोमोज, इंस्टेंट नूडल्स, ब्रेड ऑमलेट आदि जैसे फूड आइटम्स की डिलीवरी देना शुरू किया था. वहीं ब्लिंकिट देश की पहली कंपनी थी जिसने 10 मिनट में ग्रॉसरी डिलीवरी सेवा शुरू की थी. यह कंपनी पहले ग्रॉफर्स के नाम से जानी जाती थी. वहीं, स्विगी ने इंस्टामार्ट के नाम से अपनी क्विक सर्विस लॉन्च की थी. टाटा ग्रुप की बिगबास्केट ने भी 10-20 मिनट में किराने का सामान डिलीवर करने के लिए बीबी नाउ को लॉन्च किया था. इनके अलावा ओला डैश ने ताजी फल सब्जियां, स्नैक्स, कोल्ड ड्रिंक, जूस, रेडीमेड फूड, घर की देखभाल से जुड़े सामान फटाफट डिलीवर करना शुरू किया था.

10 मिनट डिलिवरी का बाजार कैसे चलता है?

जैसा कि हम सब जानते हैं कि मीलों दूर स्थित किसी वेयरहाउस से 10 मिनट के भीतर किसी भी सामान की डिलीवरी करना संभव नहीं हैं. इसके लिए इन कंपनियों ने नया तरीका ईजाद किया. इन्होंने मोहल्ले में किराने की दुकान खोली, लेकिन इन दुकानों में आप जाकर सामान नहीं खरीद सकते बल्कि ऑनलाइन ऑर्डर करने पर आपके सामान की होम डिलीवरी की जाती है. 

इन्हें आमतौर पर डार्क स्टोर या मिनी गोदाम कहा जाता है. इन दुकानों के भीतर ढेरों सामान अलग-अलग खानों में रखे रहते हैं. सभी खानों या सेक्शन्स पर कोडिंग होती है ताकि ऑर्डर मिलने पर सामान ढूंढने में समय बर्बाद न हो. यहां सारा काम कंप्यूटर से होता है. कंप्यूटर पर ऑर्डर आता है. सामान उठाने वाले शख्स को भी मशीन से ही इशारा कर दिया जाता है कि कौन-सा सामान कहां रखा है. बिलिंग भी कंप्यूटर पर हो जाती है. इससे समय की भारी बचत होती है. सामान की पैकिंग में कुल मिलाकर बमुश्किल 20-30 सेकेंड का वक्त लगता है. पैकिंग पूरी होते ही बाहर खड़े डिलिवरी एजेंट के पास मैसेज चला जाता है और एजेंट सामान उठाकर डिलीवरी के लिए निकल पड़ता है. यह सारा काम मुश्किल से 2 मिनट के अंदर हो जाता है और डिलीवरी पार्टनर्स 10 मिनट में सामान की डिलीवरी कर देते हैं.

अब हो ये रहा है कि कई कंपनियां दस मिनट में प्रोडक्ट्स की होम डिलीवरी के वादे पूरे नहीं कर पा रही हैं. कुछ महीने पहले इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें बताया गया था कि 10 मिनट डिलीवरी वाला कॉन्सेप्ट बहुत सफल नहीं रहा है. हाल ही में ब्लिंकिट में डिलीवरी पार्टनर्स के विवाद के बीच भारतपे के पूर्व एमडी और शार्क टैंक इंडिया सीजन 1 के जज रह चुके अशनीर ग्रोवर ने 10 मिनट डिलीवरी मॉडल पर सवाल खड़े किए थे. उनका कहना था कि ब्लिंकिट की दिक्कत डिलीवरी चार्ज घटाना नहीं है बल्कि इसकी सबसे बड़ी दिक्कत इसका बिजनेस मॉडल (10 मिनट डिलीवरी) है. 

ग्रोवर ने ट्विटर पर लिखा है, 

‘’ब्लिंकिट/जेप्टो की समस्या 50 रुपये की बजाय 15 रुपये का डिलीवरी पेआउट नहीं है. इसके बजाय 10 मिनट में सामान पहुंचाने का मॉडल दिक्कत वाला है क्योंकि इसका कोई इकोनॉमिक्स नहीं है. कम टिकट साइज और कम मार्जिन की दिक्कत कभी डिलीवरी की लागत करके नहीं सुलझाई जा सकती है."

इसी साल जनवरी में इकोनॉमिक टाइम्स की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया था कि जोमैटो अपनी 10 मिनट की डिलीवरी सर्विस जोमैटो इंस्टैंट को बंद कर रही है. इसका कारण रहा कि कंपनी को इस सर्विस से मुनाफा नहीं हो रहा था. हालांकि, जोमैटो ने कहा कि वह तत्काल बंद नहीं कर रही है बल्कि इसकी रीब्रांडिंग कर रही है. आपको बता दें कि हाल ही में ब्लिंकिट ने अपने डिलीवरी पार्टनर्स के पेआउट्स में कटौती कर दी है जिसके चलते कई डिलीवरी वर्कर्स हड़ताल पर चले गए थे. इस विरोध प्रदर्शन के चलते कंपनी को दिल्ली और आसपास के इलाकों में अपने कई डार्क स्टोर और छोटे वेयरहाउस बंद करने पड़े हैं. 

ब्लिंकिट के डिलीवरी पार्टनर्स का आरोप है कि कंपनी की तरफ से पेआउट्स में कमी से उनकी कमाई आधी हो जाएगी. उनका कहना है कि उन्हें पहले हर ऑर्डर की डिलीवरी पर 50 रुपये तक मिलते थे, जिसे पिछले साल घटाकर 25 रुपये कर दिया गया था. अब एक बार फिर इसमें बदलाव किया गया है. डिलीवरी पार्टनर का कहना है कि नए बदलाव से उन्हें हर डिलीवरी पर सिर्फ 12-15 रुपये मिलेंगे. अब यह खबर है कि ब्लिंकिट के करीब 1000 कर्मचारियों ने कंपनी का साथ छोड़ते हुए प्रतिद्वंद्वी कंपनियों जैसे स्विगी इंस्टामामर्ट, जेप्टो और बीबी नाउ को ज्वाइन कर लिया है.

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