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कुछ ऐसे टैक्स, जिन्हें भरने से ही देश चलाने का पैसा जमा होता है

आसान भाषा में समझिए टैक्स का पूरा तियांपांचा

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सरकार लोगों से जो टैक्स वसूलती है उस पैसे से ही देश में विकास के काम आगे बढ़ाती है. (फोटो-पीटीआई)
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1 फ़रवरी 2022 (Updated: 31 जनवरी 2022, 17:18 IST)
Updated: 31 जनवरी 2022 17:18 IST
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जब भी टैक्स वसूली की बात आती हो लोग एक मिसाल देने लगते हैं. टैक्स ऐसे वसूला जाए जैसे मधुमक्खी फूलों से रस लेती है, फूल को नुकसान भी नहीं होता और रस भी मिल जाता है. ये मिसाल कहने में तो बहुत अच्छी है लेकिन टैक्स भरने में सबका अपना-अपना दर्द है. लेकिन यह टैक्स ही है जिससे देश चलता है. मतलब हम जो टैक्स भरते हैं उसके ऊपर ही देश के विकास की इमारत खड़ी होती है. यही वजह है कि सरकार हमेशा वक्त पर और माकूल टैक्स भरने की गुजारिश करती रहती है. आइए जानते हैं इस टैक्स का तियांपांचा आसान भाषा में.

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दो तरह के टैक्स जैसे जय और वीरू सरकार आम लोगों से दो तरह के टैक्स लेती है. एक डायरेक्ट यानी प्रत्यक्ष टैक्स और दूसरा इनडायरेक्ट यानी अप्रत्यक्ष टैक्स. इन्हें शोले के जय-वीरू की तरह समझिए.
# डायरेक्ट टैक्स वीरू की तरह है. पूरी तरह से बातूनी. जिसके बारे में सब जान जाएं. मतलब ऐसा टैक्स जो सरकार बताकर लेती है. इसमें ऐसे टैक्स होते हैं जिन्हें सरकार सीधे आम जनता से वसूल करती है. इनमें शामिल हैं. इनकम टैक्स, कॉर्पोरेशन टैक्स आदि. मतलब यह कि इस टैक्स को आम जनता सीधे सरकार की जेब में डालती है.
# दूसरी तरह का टैक्स जय की तरह का खामोश होता है. हम इसे कब भर देते हैं हमें भी पता भी नहीं चलता. ये वो टैक्स हैं जिन्हें हम सीधे सरकार को नहीं देते बल्कि उन्हें देते हैं जो हमें कुछ बेचते हैं. इसे बिक्री कर या सेल्स टैक्स कहा जाता है. यह वह टैक्स है जिसे इस्तेमाल की जाने वाले किसी सामान या सर्विस पर वसूला जाता है. अब सेल्स टैक्स को ही अब गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स या GST कहा जाता है. उसकी कहानी अलग है जिसे आपको तफ्सील से आगे बताऊंगा.
इनकम टैक्स मतलब जितनी इनकम, उतना टैक्स
जैसा कि इसके नाम से ही साफ पता चल रहा है कि जो भी कमाई है उसके ऊपर ही इनकम टैक्स लिया जाता है. आप पूछेंगे कि इसका कोई कानून है या सरकार हवा में यह टैक्स लेती है? तो जनाब जान लीजिए कि भारतीय संविधान की अनुसूची 7 में केंद्र सरकार को ऐसे लोगों से टैक्स वसूलने का अधिकार दिया गया है, जिनकी आमदनी कृषि के अलावा अन्य स्रोतों से है. ऐसे में सरकार के पास टैक्स वसूलने के लिए सबसे बड़ा वर्ग उन लोगों का है जो नौकरी-पेशा हैं. ऐसा इसलिए कि कंपनियों में नौकरी करने वालों की सैलरी फिक्स होती है और सरकार को भी पता होता है कि किसे कितने रुपए सालाना सैलरी मिल रही है. सरकार ने लोगों की कमाई के अधार पर ही टैक्स के अलग-अलग स्लैब बना दिए हैं.
मिसाल के लिए साल में 2 लाख कमाने वाले, 4 लाख कमाने वाले 5 लाख कमाने वाले आदि. ये एक तरह की सीढ़ियां हैं. जो जितनी ऊंची सीढ़ी पर है उसे उतना ज्यादा टैक्स भरना होगा. इस वक्त सरकार 2.5 लाख रुपए तक सालाना कमाई वालों से कोई इनकम टैक्स नहीं लेती. इससे ऊपर 5 लाख रुपए तक कमाने वालों से सरकार 5 फीसदी इनकम टैक्स लेती है. इनकम टैक्स के सिस्टम को दुरुस्त रखने के लिए हर साल रिटर्न भरने का प्रावधान है. साल में एक बार आपको एक आईटीआर फॉर्म में सरकार को आमदनी, खर्च, निवेश और टैक्स देनदारी के बारे में बताना होता है, इसे इनकम टैक्स रिटर्न कहते हैं. इसके साथ ही इसमें आप सरकार द्वारा निर्धारित टैक्स बचत के विकल्प के रूप में निवेश करने, जरूरी चीजों पर खर्च करने (री इम्बर्स्मेंट या बिल जमा करने पर टैक्स छूट के बारे में) और एडवांस टैक्स (अग्रिम कर) चुकाने की जानकारी भी देते हैं.
Income Tax 3
जो जितना ज्यादा कमाता है सरकार उस पर उतना ज्यादा टैक्स का बोझ डालती है.

देश के कानून के हिसाब से इनकम टैक्स रिटर्न हर बिजनेसमैन या नौकरीपेशा को भरना चाहिए. भले ही वह टैक्स स्लैब में आए या न आए. इनकम टैक्स रिटर्न भरने का मतलब सरकार को टैक्स चुकाना नहीं है. इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करके आप सरकार या इनकम टैक्स विभाग को बताते हैं कि आप इनकम टैक्स देनदारी के दायरे में आते हैं या नहीं. ज्यादा से ज्यादा लोगों के रिटर्न भरने का एक फायदा यह भी है कि सरकार को अंदाजा रहता है कि किस आयवर्ग में कितने लोग आते हैं. इससे सरकार को लोगों के खर्च, इनवेस्टमेंट और सेविंग के पैटर्न का पता चलता है. इनके आधार पर सरकार अपनी योजनाएं बना सकती है. हर सामान और सर्विस पर टैक्स मतलब GST क्या आपको पता है कि आप बिस्कुट का जो पैकेट खरीदते हैं उस पर भी सरकार को टैक्स भरते हैं? जी हां ये सच है. आप मार्केट से जो सामान एक तय एमआरपी पर खरीदते हैं, उस पर सरकार टैक्स लेती है. यह बात अलग है कि यह टैक्स सरकार हमसे सीधे नहीं लेती. बल्कि यह उन लोगों से लेती है जो ये चीजें बेंचते हैं. इस टैक्स का एक हिस्सा राज्य सरकार को दिया जाता है. अब जानिए GST की कहानी जब आइंस्टीन ने 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' खोजी तो कहा जाता था इसे बस आइंस्टीन ही समझते हैं. कुछ ऐसा ही नाजरा 2017 में देश भर में जीएसटी की घोषणा के बाद हुआ. नेता से लेकर अर्थशास्त्री तक, कुछ भी सही से बताने की हालात में नहीं नजर आ रहे थे. खैर देश की मोदी सरकार ने इसे जुलाई 2017 से ‘वन नेशन, वन टैक्स’ वाली अवधारणा के तहत लागू किया. इसका पूरा नाम है गुड्स एंड सर्विस टैक्स. हिंदी में कहते हैं वस्तु और सेवा कर. पहले एक्साइज ड्यूटी, वैट जैसे 17 अलग-अलग टैक्स राज्य और केंद्र सरकार लगाती थी, तो उनकी जगह सिर्फ एक जीएसटी कर दिया गया. मोदी सरकार ने इसके बाद खुद की खूब पीठ थपथपाई. तो इस जीएसटी में राज्यों के लिए क्या है, जो पहले अपने टैक्स से कमाई करते थे. इसके लिए जीएसटी को तीन तरह से बांटा गया – IGST, SGST और CGST
इसको लेकर बहुत से लोग खुश नजर आए कि चलो 17 टैक्सों से मुक्ति मिली. लेकिन जीएसटी में बनाए गए कई स्लैब्स अब भी लोगों को कंफ्यूज करते हैं. सरकार ने अलग-अलग प्रॉडक्ट और सर्विस पर अलग-अलग स्लैब में जीएसटी लगाया है. अब एक्सपर्ट्स कहते हैं कि जब इतने स्लैब ही बनाने थे तो जीएसटी बनाया ही क्यों. खैर जैसे पहले वाला सिस्टम परफेक्ट नहीं था, ये भी नहीं है. सिस्टम को लागू करने के बाद सरकार को कई झटके लगे लेकिन धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आई. हालांकि सिस्टम के बहुत ज्यादा केंद्रीकृत होने पर एक्सपर्ट्स अब भी सवाल उठा रहे हैं.
होता ये था कि पहले अलग-अलग इनडायरेक्ट टैक्स राज्य सरकारें और केंद्र सरकार वसूलती थीं और अपने हिसाब से उन्हें मैनेज करती थी. अब वसूली की व्यवस्था पूरी तरह से केंद्रीकृत हो गई है. सारा पैसा एक तरह से केंद्र सरकार के पास जमा होता है. एक बड़े भाई की तरह केंद्र सरकार हर राज्य को जीएसटी में उसके हिस्से का शेयर देती है.
मोदी सरकार 2017 में वन नेशन, वन टैक्स की अवधारणा के साथ जीएसटी को लेकर आई. फाइल फोटो.
मोदी सरकार 2017 में वन नेशन, वन टैक्स की अवधारणा के साथ जीएसटी को लेकर आई. फाइल फोटो.
कितनी तरह के GST है? IGST यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी. जब सामान एक राज्य में बनकर दूसरे राज्य में बिकता है. यानी अंतर्राज्यीय कारोबार होता है, तो IGST लगता है. ये टैक्स केंद्र के पास आता है. लेकिन अगर एक राज्य में चीज़ बनी और उसी राज्य में बिक गई, तो इसमें SGST यानी स्टेट जीएसटी और CGST यानी सेंट्रल जीएसटी दोनों लगेगा. अगर कुल जीएसटी 18 फीसदी है, तो 9 फीसदी SGST और 9 फीसदी CGST लगता है. SGST राज्यों के पास जाता है और सीजीएसटी केंद्र के पास आता है.
जीएसटी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोना काल में पेश आई. देश भर में लॉकडाउन था और जीएसटी का कलेक्शन भी तेजी से गिरा. इस सबके बावजूद राज्यों ने अपने हिस्से की रकम मांगना शुरू किया. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच काफी खींचतान देखी गई.
उम्मीद है कि सरकार ने इस बार अपने मनमाफिक टैक्स स्लैब बनाए और आपकी जेब में ज्यादा पैसा बचे. नहीं भी बचा तो कोई बात नहीं आखिर लग तो देश को चमकाने में ही रहा है.

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