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मसालों के नाम पर फूड कलर तो नहीं खा रहे आप? जानें इसके क्या नुकसान हो सकते हैं

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में कॉटन कैंडी और गोभी मंचूरियन में आर्टिफिशियल फ़ूड कलर का इस्तेमाल बैन कर दिया है. ये फ़ूड कलर सेहत के लिए नुकसानदायक हैं. डॉक्टर से जानिए, इन्हें खाने से क्या नुकसान होता है? ये फ़ूड कलर किस चीज़ से बने होते हैं और इनके बेहतर विकल्प क्या हैं?

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फ़ूड कलर खाने का रंग अच्छा कर देते हैं

जब आप बाज़ार जाते हैं कुछ मज़ेदार खाने, पेट पूजा करने. तब वे चीज़ें आपका ध्यान ज़रूर खींचती हैं जो रंग-बिरंगी दिखती हैं. इनको देखकर ही खाने का मन कर जाता है. पर ये रंग-बिरंगी चीज़ें जितनी आकर्षित दिखती हैं, आपकी सेहत के लिए उतनी ही नुकसानदेह भी होती हैं. जैसे चाऊमीन अगर बहुत लाल या नारंगी दिख रहा है तो आपकी जीभ ज़रूर लपलपाएगी. पर ये रंग ज़बरदस्ती इसमें मिलाया गया है, उसे टेस्टी दिखाने के लिए. जबकि ये आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह है.

यही नहीं, पेस्ट्री, केक इन सब चीज़ों में भी फ़ूड कलर डाला जाता है. नीला, पीला, लाल, हरा. ये रंग पेस्ट्री और केक को देखने में तो अच्छा बना देते हैं, पर इनको खाकर आपकी तबीयत बिगड़ सकती है. अब ऐसा सारे फ़ूड कलर के साथ नहीं होता. कुछ हैं, जिनके बारे में हम आज आपको बताएंगे.

हाल-फ़िलहाल में कर्नाटक सरकार ने कॉटन कैंडी यानी वो गुलाबी रंग के बुड्ढी के बाल और गोभी मंचूरियन में आर्टिफिशियल फ़ूड कलर का इस्तेमाल बैन कर दिया. क्योंकि इनमें वो रंग डाला जा रहा था, जो कपड़ों की डाई में इस्तेमाल होता है. डॉक्टर से जानिए, ये फ़ूड कलर किस चीज़ से बना होता है? इनको खाने के क्या नुकसान हैं? कॉटन कैंडी और गोभी मंचूरियन में फूड कलर बैन क्यों हुआ? और इसके बेहतर विकल्प क्या हैं? 

फ़ूड कलर किस चीज़ से बना होता है?

ये हमें बताया न्यूट्रिशनिस्ट दीक्षा छाबड़ा ने.

दीक्षा छाबड़ा, न्यूट्रिशनिस्ट एंड फ़िटनेस एक्सपर्ट 

खाने में इस्तेमाल किए जाने वाले फ़ूड कलर को दो कैटेगरी में बांट सकते हैं. एक है ऑर्गेनिक तरीके से बना फ़ूड कलर. ये पौधों और जानवरों से लिया जाता है. फलों, सब्जियों, मसालों से ये रंग लिए जाते हैं. दूसरी कैटेगरी है आर्टिफिशियल फ़ूड कलर की, इन्हें लैब में बनाया जाता है. इनमें पेट्रोलियम अहम होता है. इससे अलग-अलग तरह के फ़ूड कलर बनाए जाते हैं. क्योंकि ये लैब में बनाए जाते हैं और ज़्यादा मात्रा में बनाए जाते हैं. इसलिए इन्हें इंडस्ट्रियल लेवल पर ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

इनको खाने के क्या नुकसान होता है?

लैब में बनने वाले आर्टिफिशियल फ़ूड कलर ज़्यादा नुकसान कर सकते हैं. इसको लेकर रिसर्च अभी भी चल रही है. फ़ूड कलर के ज़्यादातर टेस्ट जानवरों पर किए जाते हैं. ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा फ़ूड कलर इंसानों में कैसे रिएक्ट करेगा. उनसे किस तरह की एलर्जी, बीमारियां हो सकती हैं . 

हालांकि इस पर रिसर्च अभी भी चल रही है कि क्या इनसे कैंसर भी हो सकता है. चूंकि ये केमिकल से बनाए जाते हैं इसलिए इनका इस्तेमाल करना मना किया जाता है, ख़ासतौर पर रोज़ के खाने में. फ़ूड कलर का काम होता है खाने को और टेस्टी दिखाना. पर अगर खाना आर्टिफिशियल फ़ूड कलर से भरपूर होगा तो काफ़ी सारी एलर्जी हो सकती है. जैसे बच्चों में हाइपरएक्टिविटी, सांस से जुड़ी एलर्जी, स्किन एलर्जी भी हो सकती है.

फ़ूड कलर खाने को टेस्टी दिखाते हैं लेकिन इनका सेवन हानिकारक है

कॉटन कैंडी और गोभी मंचूरियन में फूड कलर बैन क्यों हुआ?

कॉटन कैंडी और गोभी मंचूरियन में सरकार को एक डाई मिली. इसका नाम रोडामाइन-बी है. रेहड़ी वालों और कुछ दुकानदारों ने इसका इस्तेमाल किया था. रोडामाइन-बी डाई का टॉक्सिसिटी लेवल काफी ज़्यादा है. टेस्ट किए गए 90 फीसदी सैंपल में यही डाई मिली. इसका इस्तेमाल लेदर, पेपर या प्लास्टिक को रंगने में होता है. यह खाने के लिए बिल्कुल भी नहीं है. यह डाई आसानी से मिल जाती है, लोग जागरूक भी नहीं हैं. यह सस्ती भी है इसलिए लोग इसे इस्तेमाल कर रहे थे. इसी वजह से सरकार ने इसे बैन कर दिया है.

इसके बेहतर विकल्प क्या है?

आर्टिफिशियल फूड कलर की रेंज काफी बड़ी है. इसमें कौन सा प्रोडक्ट नुकसान देगा, यह जानना मुश्किल है. बाज़ार में ये फूड कलर आसानी से मिल जाते हैं इसलिए हमें ऑर्गेनिक फूड कलर्स इस्तेमाल करने चाहिए. खाने में हल्दी, लाल मिर्च पाउडर और दूसरे मसालों को डालें. टमाटर, चुकंदर, पालक और गाजर का भी खाने में इस्तेमाल करें. इससे खाना अच्छा दिखेगा और उसमें पोषण भी होगा. जितना हो सके, ऑर्गेनिक फूड कलर वाली चीज़ें ही खाएं.

अगली बार जब आप कुछ खाएं, जिसमें खूब रंग डला हो तो सतर्क हो जाइए. अगर आप कुछ ऐसा बना रहे हैं, जिसमें रंग की ज़रूरत है तो नेचुरल रंगों का इस्तेमाल करें. आर्टिफिशियल फ़ूड कलर बिल्कुल भी इस्तेमाल न करें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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