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शरीर पर लाल चकत्तों को हल्के में ना लें, Dermatomyositis हुआ तो जान का खतरा हो सकता है

डर्मेटोमायोसाइटिस (Dermatomyositis) एक ऑटोइम्यून बीमारी है. यानी इसमें आपका शरीर ही आपका दुश्मन बन जाता है. ये बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण बहुत आम हैं. जैसे स्किन पर लाल रंग के चकत्ते पड़ जाना. लोग इसे एलर्जी समझ लेते हैं. डॉक्टर से जानिए इसके बारे में.

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Dermatomyositis

फ़रवरी के महीने में दुखद ख़बर आई कि दंगल फ़िल्म में बबीता फोगाट का बचपन का रोल करने वाली एक्ट्रेस सुहानी भटनागर की मौत हो गई है. वो मात्र 19 साल की थीं. उनके माता-पिता ने तब बताया था कि वो डर्मेटोमायोसाइटिस (Dermatomyositis) नाम की बीमारी से जूझ रही थीं. ये एक ऑटोइम्यून बीमारी है. यानी इसमें आपका शरीर ही आपका दुश्मन बन जाता है. अक्सर ये बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण बहुत आम हैं. जैसे स्किन पर लाल रंग के चकत्ते पड़ जाना. लोग इसे एलर्जी समझ लेते हैं. डॉक्टर से जानिए डर्मेटोमायोसाइटिस बीमारी क्या है, ये किस कारण से होती है, इसका लक्षण, बचाव और इलाज क्या है?

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डर्मेटोमायोसाइटिस बीमारी क्या है?
(Dr. Mandeep Singh, HOD, Dermatology, Paras Health, Gurugram)
(डॉ. मनदीप सिंह, हेड, डर्मेटोलॉजी, पारस हेल्थ, गुरुग्राम)

ये एक बहुत रेयर बीमारी है. इस बीमारी की आशंका एक लाख लोगों में एक व्यक्ति को होती है. इसमें स्किन और मांसपेशियों में सूजन होती है. सबसे पहले स्किन के ऊपर रैशेज़ होते हैं. ये रैशेज़ बैंगनी या गाढ़े लाल रंग के होते हैं. मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. जिस जगह की मांसपेशी कमजोर हो जाती है, उसी हिसाब से व्यक्ति को समस्या आती है. जैसे अगर गले में दिक्कत होती है तो व्यक्ति खाना नहीं खा पाता. सांस की नली की मांसपेशी में बीमारी होती है तो सांस लेने में तकलीफ होती है. ज़्यादातर ये समस्या 40 से 60 साल की उम्र में होती है. ये बीमारी कभी-कभी बच्चों में भी हो जाती है. ऐसे बच्चों की मांसपेशियों में कैल्शियम जम जाता है. इससे काफी तकलीफ होती है.

कारण

इस बीमारी का कारण किसी को नहीं पता. कभी-कभी ये बीमारी वायरल इन्फेक्शन से हो जाती है और जेनेटिक भी हो सकती है. स्मोकिंग की वजह से भी ये बीमारी हो सकती है.

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लक्षण

सबसे पहले लाल, गाढ़े लाल या बैंगनी रंग के रैशेज़ दिखते हैं. ये रैशेज़ मरीज के चेहरे, कोहनी, घुटनों में आते हैं. कूल्हों और कंधों में दर्द होता है. लेकिन ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जिनमें ये लक्षण दिखते हैं. तो आप खुद इसका आंकलन न करें. बस अगर आपको ऐसी कोई समस्या है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए. वो कुछ टेस्ट करवाएंगे. इसमें ब्लड टेस्ट, चेस्ट एक्स-रे और कभी-कभी MRI भी होता है. 

इसके अलावा कभी-कभी बायोप्सी भी करवाई जाती है. बायोप्सी में अफेक्टेड एरिया की स्किन या मांस का टुकड़ा लिया जाता है. लैब में इस सैंपल की टेस्टिंग होती है. क्योंकि ये बहुत रेयर बीमारी है, इस वजह से लोग इसे कोई दूसरी बीमारी समझ लेते हैं. जैसे रूमेटाइड आर्थराइटिस और स्क्लेरोडर्मा.

बचाव और इलाज

ये बीमारी ठीक नहीं हो सकती. लेकिन इलाज करवाने से काफी हद तक कम हो जाती है. इलाज करवाने से स्किन के रैशेज़ कम हो जाते हैं और मांसपेशियों की ताकत कुछ हद तक लौट आती है. मौत बहुत ही कम मामलों में होती है. कैंसर होने के भी कुछ चांस होते हैं. इलाज में ज़्यादातर दवाइयों का इस्तेमाल होता है. जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स. इसके अलावा कुछ कैंसर और मलेरिया की दवाइयां होती हैं. ये सारी दवाइयां इस बीमारी के रिएक्शन को कम करती हैं. बच्चों में इस बीमारी की वजह से उनकी मांसपेशियों में कैल्शियम जम जाता है. इसको ठीक करने के लिए सर्जरी करनी पड़ती है.

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कुछ टेस्ट की मदद से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. बशर्त लक्षण देखकर सही समय पर आप डॉक्टर को दिखाएं और जांच करवाएं.

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